बादाम की खेती, पैदावार एवं व्यापारिक लाभ।

बादाम की खेती प्रमुख रूप से पर्वतीय जगहों में जैसे की हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर आदि में की जाती है। लेकिन अब जैसे जैसे समय आगे बढ़ रहा है बादाम की मांग बढ़ रही है। जिस कारण से तकनीकियों का इस्तेमाल करके इसकी खेती मैदानी क्षत्रों में भी बादाम की खेती होने लगी है। बादाम की तरह बादाम की फूल की भी काफी मांग है।

परिचय:- बादाम की खेती प्रमुख रूप से पर्वतीय जगहों में जैसे की हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर आदि में की जाती है। लेकिन अब जैसे जैसे समय आगे बढ़ रहा है बादाम की मांग बढ़ रही है। जिस कारण से तकनीकियों का इस्तेमाल करके इसकी खेती मैदानी क्षत्रों में भी होने लगी है। बादाम की तरह बादाम के फूल की भी काफी मांग है।

बादाम के फायदे:- वैसे तो बादाम हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है लेकिन अधिक मात्रा में बादाम खाने से यह हमें नुक्सान भी पंहुचा सकता है। एक दिन में 2-3 बादाम से ज्यादा नही खानी चाहिए।

वैसे तो बादाम हमारे स्वसत के लिए अच्छा माना गया है लेकिन अधिक मात्रा में बादाम खाने से यह हमें नुक्सान भी पंहुचा सकता है। एक दिन में 2-3 बादाम से ज्यादा नही खानी चाहिए।
बादाम

इसमें काफी पोषक तत्व पाये जाते है जैसे की प्रोटीन, विटामिन ई, कैल्शियम, फास्फोरस, फाइबर, एंटी ऑक्सीडेंट्स, हेल्दी फैट, विटामिन डी आदि जो हमारे सेहत के लिए अच्छे होते है।बादाम खाने से डाइबिटिज में, हड्डियों और मसल्स को मजबूत करने में, कैंसर रोकने में, दिल की बीमारियों का खतरा कम करने में, बालों और त्वचा निखारने में मदद मिलती है।

जिन लोगो को ब्लड प्रेशर की परेशानी, गॉल ब्लेडर में दिक्कत, किडनी में पथरी, पाचन संबंधी समस्या, माइग्रेन (सिरदर्द की समस्या ), और अगर वजन ज्यादा है, तो उन्हें बादाम बिलकुल नहीं खानी चाहिए।

बादाम की किस्में:- बादाम की किस्मे को जगह के अनुसार शुष्क शीतोष्ण, ऊँचे पर्वतीय, मध्य पर्वतीय, निचले पर्वतीय और घाटी में बांटा गया है।

शुष्क शीतोष्ण:- नी-प्लस– अल्ट्रा, थिनशैल्ड एवं टैक्सास को उगाया जाता है।

ऊँचे पर्वतीय औरमध्य पर्वतीय:- निकितस्काई, मर्सिड, आई एक्स एल, व्हाईट ब्रान्डिस, नॉन पेरिल, क्रिस्टोमोरटो, नौ णी स्लैक्शन, वेस्ता और जेन्को आदि को उगाया जाता है।

निचले पर्वतीय और घाटी जगहें:- काठा, ड्रेक, पीयरलैस आदि. को उगाया जाता है।

बादाम की खेती का समय, जलवायु एवं उपज।

उपयुक्त जलवायु:- बादाम की खेती को प्रमुख रूप से सूखे गर्म उष्णदेशीय जलवायु की जरुरत होती है लेकिन फल को पकने के लिए गर्म शुष्क मौसम अच्छा होता है। वैसे तो कहा जाता है कि बादाम की खेती अधिक ठण्ड और धुन्ध में की जा सकती है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रीष्म मौसम बादाम की खेती के लिए अच्छा नही है।

बादाम की खेती को प्रमुख रूप से सूखे गर्म उष्णदेशीय जलवायु की जरुरत होती है लेकिन फल को पकने के लिए गर्म शुष्क मौसम अच्छा होता है।वैसे तो कहा जाता है कि बादाम की खेती अधिक ठण्ड और धुन्ध में की जा सकती है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रीष्म मौसम बादाम की खेती के लिए अच्छा नही है।
बादाम की खेती

बादाम को 7-24 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छे से विकास कर सके। इसके फल को आराम से उगने के लिए 750-3,210 मीटर समुद्र तल से उंचा लगाना चाहिए।
इसकी खेती के लिए साल में 0.75-1.1 मीटर्स वर्षा अच्छा होता है।

भूमि का चयन:- बादाम की खेती के लिए समतल, बलुई दोमट वाली चिकनी गहरी उपजाऊ मिट्टी के साथ जल निकासी व्यवस्था की जरूरत होती है।
इसके अलावा खेत में कार्बनिक पदार्थ और मिटटी में हवा का मिश्रण सरंचना अच्छी होनी चाहिए।

पौधे की तैयारी:- इसका पौधा तैयार करने के लिए बीज और ग्राफ्टिंग के तरीको का प्रयोग किया जाता है।इसकी ग्राफ्टिंग के लिए बादाम, आलूबुखारा और आड़ू के बीजू पौधे मूल के रूप में प्रयोग किया जाता है।

पौधा रोपण:- बादाम की खेती के लिए हमें सबसे पहले गड्ढों तैयार करके उसमे गोबर और केचुए की खाद भर देना है। हमें इस बात का ध्यान रखना है की एक गड्ढे का आकार 1×1×1 मीटर होना चाहिए जबकि दो पौधे की बीच की दुरी और दो पंक्ति के बीच की दुरी 6*7 हो। बादाम का बीजू स्वस्थ और जड़ तथा पत्ती रहित होना चाहिए।

तैयार गड्ढों में इसका पौधा नवम्बर-दिसम्बर के महीने में लगाने चाहिये। एक हैक्टर में 5-7 डब्बे मधुमक्खी के रखने चाहिये, जिससे की सुचारू रूप से परागण हो सकें।

सिंचाई:- गर्मियों के हर 10 दिन पे और ठण्ड में 20-30 दिन पे पौधे में पानी देते रहना चाहिए।ऊँची-नीची कृन्दाओं में टपक विधि का इस्तेमाल करना चाहिए।
पौधे चारों तरफ मिटटी के ऊपर भूसा,पत्तियों,और अन्य कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थो का इस्तेमाल कर सकते है जिससे पानी का वाष्पोत्सर्जन कम होता हो और खरपतवार कम निकले।

निराई गुड़ाई:- पहली निराई 10-15 दिन बाद, दूसरी निराई 25-35 दिन बाद, तीसरी निराई 45 दिन बाद, खरपतवार सघनता के अनुसार, 2-3 बार हाथ से निराई कर देना अच्छा रहेगा।

रोग व कीट रोकथाम:-
चेपा:- यह कीट मार्च-मई के महीने में सक्रिय होता है और इसके कारण पत्ते मुड़कर और पीले हो जाते है और गिर जाते हैं।

रोकथाम:-रोगोर 30 ईसी 800 मिलीलीटर को 400लीटर-500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़क दे और अगर जरुरत पड़े तो दोबारा भी छिड़क दे।

छेदक कीट:- यह एक बहुत ही खतरनाक कीट है, जो कि मध्य मार्च में सक्रिय होता है और हरे पत्तों को खाता है।

रोकथाम:- 400लीटर-500 लीटर पानी में डरमेट 20 ईसी 1 लिटर को मिलाकर फल तुड़ाई के बाद जून के महीने में छिड़क दे।

काला चेपा:- यह कीट अप्रैल से जून महीने में सक्रिय होता है।

रोकथाम:- 400लीटर-500 लीटर पानी में मैलाथियोन 50 ईसी 800 मिलीलीटर को मिलाकर छिड़क दे।

छोटे धब्बे:- पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।

रोकथाम:- पत्तों के गिरने या कलियों के सूखने के समय थीरम या ज़ीरम 0.2 प्रतिशत का छिड़क दे।

बैक्टीरियल और गोंदिया:- यह रोग मुख्य तने, शाखाओं, टहनी, पत्तों, कलियों और फलों को नुकसान पहुंचाता है।

रोकथाम:- इसके लिए सुनिश्चित करें कि बादाम का पौधा उपयुक्त भूगौलिक स्थान और पर्यावरण के आधार पर लगाया गया है और फूल खिलने से पहले पौधे पर कॉपर छिड़क दे और गर्मियों में पौधे की सिधाई करें।

जड़ सड़न:- यह रोग खेत से पानी बाहर जाने की अच्छी व्यवस्था न होने के कारण होता है।

रोकथाम:- खेत से पानी बाहर जाने की अच्छी व्यवस्था कर देना चाहिए।

गमोसिस:- यह रोग वैक्टीरिया की वजह से या कॉपर तत्व की कमी के कारण से होता है।

रोकथाम:- जिस भाग में यह रोग हुआ है उस भाग को छीलकर अगल कर और चौबटिया पेस्ट लगा देना चाहिए। पतछड़ और बसंत ऋतु में एक एक छिड़काव बोर्डोमिश्रण का करें।

फसल तोड़ाई और उपज:- इसके पौधे रोपने के तीसरे साल से यह फल देना शुरू कर देता है। फूल आने के 7-8 महीने बाद बादाम को तोड़ा जा सकता है। बादाम तुड़ाई के लिए पतझड़ में तैयार हो जाता है।

फल तोड़ने के बाद उससे छाव में सुखाना चाहिए फिर गिरी को फली से अलग कर दें।
बाजार में बादाम का भाव 600 रुपये से 1000 रुपये प्रति किलोग्राम है। बाजार में बादाम की कीमत मांग और आपूर्ति के साथ भिन्न हो सकती है।

फसलबाज़ार

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