परिचय:- स्प्राउटिंग ब्रोकली, इसे हरी गोभी भी कहते हैं। यह एक गोभी वर्गीय सब्जी है, जिसकी खेती फूलगोभी के समान ही की जाती है। इसके बीज, पौधे तथा इसमें लगने वाले फूल भी गोभी के समान ही होते हैं।
ब्रोकली का खाने वाला भाग छोटी-छोटी बहुत सारी हरे फूल कलिकाओं का गुच्छा होता है जिसे हम सब्जी के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इसका रंग हरा होने के कारण इसे हरी गोभी कहा जाता है।
विगत कुछ वर्षो से हमारे देश में ब्रोकली की खेती बढ़ी है। प्रोटीन और विटामिन का अच्छा श्रोत होने के कारण बड़े-बड़े होटलों और पर्यटक स्थलों पर इस सब्जी की मांग बहुत है।
शहरों के समीप इसकी खेती करना बहुत अधिक लाभप्रद है। इसका बाजार भाव 60 से 90 रुपये प्रति किलोग्राम तक मिल जाता है। यह विटामिन ए का सर्वोत्तम श्रोत माना जाता है।
औषधीय गुण:- ब्रोकली में सल्फोराफेन नामक यौगिक अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है। यह यौगिक कैंसर में लाभदायक होता है तथा स्वस्थ लोगों में कैंसर की संभावना कम करता है।
यह हृदय रोगियों के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इसके खाने से रक्त में सीरम कालेस्ट्रोल की मात्रा घट जाती है।
जलवायु:- ब्रोकली ठन्डी जलवायु की फसल है। देश के अधिकतर भागों में इसकी खेती ठंढी जलवायु को ध्यान में रखते हुए रबी मौसम में की जाती है।
अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में जहाँ अधिक गर्मी नहीं परती इसकी खेती गर्मी के मौसम में भी की जा सकती है। अच्छी बढ़वार के लिए 10 से 18 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान आदर्श है।
भूमि का चयन:- ब्रोकली की सफल खेती हेतु अच्छी जल धारण क्षमता वाली उपजाऊ दोमट व बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है। जिसका पी एच मान 6.0 से 6.8 के बीच हो तथा जल निकास की उचित व्यवस्था हो ।
खेत की तैयारी:- पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से इसके बाद 2 से 3 जुताई देशी हल अथवा कल्टीवेटर से।
अन्तिम जुताई से पहले 10 से 15 टन प्रति हैक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद खेत में डाल कर मिट्टी में अ मिला दें और पाटा लगाकर खेत समतल बना लें।
उन्नत किस्में
ब्रोकली की अच्छी उपज के लिए क्षेत्र के अनुसार सही किस्मों का चुनाव अति आवश्यक है। बीज हमेशा किसी विश्वसनीय संस्था से ही खरीदें।
के टी एस- 1 (पूसा ब्रोकली) – इसका सिरा हल्के हरे रंग का, गुंथा हुआ 250-400 ग्राम वजन का होता है। 80 से 90 दिन में तैयार होने वाली इस किस्म की औसतन पैदावार 120 से 140 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।
के टी एस- 59 – सिरा गुंथा हुआ, फल हरे रंग का औसत पैदावर 90 से 100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर।
पालम समृद्धि – इल सिरा हरा, गुंथा हुआ, पीले धब्बों और पत्तियों से युक्त होता है। इसके फल फूलों का वजन 300 से 400 ग्राम जो 85 से 95 दिनों में तैयार होती है। औसत पैदावार 150 से 180 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।
ग्रीन स्प्राउटिंग ब्रोकली – सिरा गहरे हरे रंग का गुंथा हुआ, वजन 200 से 250 ग्राम। 90 से 100 दिन में तैयार होने वाली इस प्रजाति की औसतन पैदावार 120 से 150 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।
विदेशी संकर किस्में:- पैकमैन, कैप ओवन, बैकलस, ग्रीन लोफी, लैण्ड स्टार, ग्रीन मेल, ग्रीन डोम, शिगमरी आदि।
ब्रोकली की सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण।
बीज की मात्रा और बुआई का समय:- एक हेक्टेयर की पौध तैयार करने के लिए लगभग 350 से 450 ग्राम बीज पर्याप्त है।
नर्सरी में बीज की बुआई उत्तर भारत में सितम्बर से अक्टूबर तथा पहाड़ी क्षेत्रों में जुलाई से अगस्त में और अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल में की जाती है।
नर्सरी तैयार करना:- ब्रोकली की सफल खेती के लिए निरोग नर्सरी का होना अत्यन्त आवश्यक है। नरल नर्सरी खेत के किनारे पर लगाएं जहां धूप लगती हो।
सिंचाई की उचित व्यवस्था तथा कंकड़-पत्थर रहित मिट्टी हो। पानी का जमाव बिल्कुल न हो। प्रत्येक वर्ष नर्सरी का स्थान बदलें।
अच्छे से जुताई कारके उचित मात्रा में खाद और उर्वरक डालकर नर्सरी तैयार करें। बीज बोने के लगभग 4 से 5 सप्ताह में पौध खेत में रोपाई करने योग्य हो जाते हैं।
पौध रोपाई:- उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में रोपाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह, पहाड़ी क्षेत्रों में अगस्त के अन्तिम सप्ताह से मध्य अक्टूबर तथा अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में मई में की जाती है।
10 से 12 सेंटीमीटर या 4 से 5 सप्ताह के पौधो की खेत में रोपाई करनी चाहिए। ब्रोकली की रोपाई पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे के बीच का अंतर 40 सेंटीमीटर रख कर करते हैं, गहराई 3-4 सेमी रखें।
खाद एवं उर्वरक:- आमतौर पर 10 से 15 टन गोबर की सड़ी खाद रोपाई से 20 से 25 दिन पहले। इसके साथ 100 से 125 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 80 किलोग्राम फास्फोरस और 50 से 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से दे।
नाइट्रोजन डालने के बाद खेत में सिंचाई अवश्य करें। ब्रोकली में मुख्य पोषक तत्वों की कमी के अलावा (नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश) सूक्ष्म पोषक तत्व (बोरोन व मोलिब्डिनम) की कमी के लक्षण भी देखे गए हैं।
अतः रोपाई से पहले खेत की तैयारी के समय 10 से 15 किलोग्राम बोरेक्स और 500 ग्राम अमोनियम मोलब्डेट का प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना उचित है।
सिंचाई प्रबंधन:- पहली हल्की सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए। बाद में आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर हल्की सिंचाई करते रहें।
इस प्रकार 5 से 6 सिंचाई पर्याप्त होती हैं। प्रारंभिक वृद्धि अवस्था और सिरा विकास अवस्था में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण:- खरपतवार नियंत्रण के लिए बेसालिन या ट्राईफ्लूरेलिन नामक खरपतवार नाशक की 1.0 लीटर सक्रिय तत्व की मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से आखरी जुताई के समय खेत में छिड़काव करके मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें।
इसके अतिरिक्त 15 दिन के अन्तराल पर करें 2,3 निराई-गुड़ाई करें इससे खरपतवारों की रोकथाम के साथ-साथ भूमि में वायु संचार भी होता है। जिसका फसल वृद्धि पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
प्रमुख कीट एवं नियंत्रण:- कीट डायमण्ड बैक मोथ, कटुआ कीट, तंबाकू की सूड़ी, कैबेज तना छेदक।
नियंत्रण
रोपाई से पहले जुताई कर कुछ दिनों के लिए धूप में खुला छोड़ दें।
खरपतवारों व अन्य फसलों के अवशेषों को जलाकर या भूमि में दबाकर नष्ट कर दें। जिसके साथ उसमें छुपे अण्डों, सूड़ियों व प्यूपा अवस्थाओं को नष्ट किया जा सके।
एण्डोसल्फान या क्वीनालफॉस कीटनाशी की 2 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 10 दिनों के अन्तराल पर 2 से 3 बार छिड़काव करें।
फल कटाई:- फसल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य सिरा (मन हैड) बनकर तैयार होने के बाद 12 से 15 सेंटीमीटर लंबे डंठल के साथ कटाई करें।
मुख्य सिरा काटने के बाद पौधों के तनों से दूसरी छोटी-छोटी कलियां निकलती हैं, इन उप सिरों को भी 8 से 10 सेंटीमीटर लंबे डंठल सहित उचित समय पर कलियां खिलने से पहले कटाई करें।
पैदावार:- उन्नत सस्य विधियां अपनाकर खेती की जाये तो साधारण किस्मों से 75 से 100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा संकर किस्मों से 120 से 180 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार हो सकती है।