परिचय:- गुलाब प्रकृति-प्रदत्त एक मनमोहक और खूबसूरत फूल है। इसकी आकर्षक बनावट, सुन्दर आकार, लुभावना रंग की वजह से लोग इसे अधिक पसंद करते है। लाल गुलाब को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।
वैज्ञानिक विधि से गुलाब की खेती करके लगभग पूरे साल फूल लिया जा सकता है। सामान्यतः यह शर्दी का पुष्प है। इस मौसम में गुलाब के फूल की छटा तो देखते ही बनती है।
इसके एक फूल में 5 पंखुड़ी से लेकर कई पंखुड़ियों तक होती है। यह अनेक किस्में तथा विभिन्न रंगों में उपलब्ध है, जिनकी मांग बाज़ारों में हर दिन बढ़ती जा रही है।
जलवायु:- गुलाब की खेती के लिए ठंड व शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। सर्दीयों के दिनों में उत्तर और दक्षिण भारत के मैदानी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में गुलाब की खेती की जाती है।
इसके लिए दिन का तापमान करीब 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट और रात का तापमान 12 से 14 डिग्री सेंटीग्रेट उत्तम रहता है।
गुलाब की खेती में पानी तथा हवा के आवागमन वाली मिट्टी की आव्यशकता होती है। अत्यधिक तापमान और कम तापमान दोनों ही गुलाब पे प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। अतः खेती में जलवायु का काफी महत्व है।
भूमि का चयन:- इसकी खेती लगभग हर प्रकार की मिट्टी पर की जाती है। परंतु ह्यूमस से परिपूर्ण दोमट, बलुआर दोमट या मटियार दोमट उपयुक्त मानी जाती है।
जिसका पी. एच. मान 5.5 से 6.5 हो। पौधों के विकास के लिए अच्छी जल निकाश वाली जगह उत्तम है। छायादार जगह में पौधों का विकास ठीक से नहीं हो पाता है।
किस्म का चयन:- उत्तम किस्म का चयन उसे रोपने वाले स्थान के अनुरूप करें। हर फसल की अलग-अलग जगहों के लिए अलग-अलग किस्म होती है। गुलाब की भी कई अलग-अलग किस्में हैं, जिनका चयन खेत के अनुसार सही से करना चाहिए।
पौधे को तैयार करना:- गुलाब की खेती टी-बडिंग विधि से की जाती है। इस विधि में जंगली गुलाब के कलम जून या जुलाई में लगाई जाती है।
कलम लग जाने के बाद इन कलमों को क्यारी में 15 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है। इसके बाद निकलने वाली शाखाओं को लगती हटा दिया जाता है।
इसके बाद इनमें अच्छी किस्म के गुलाब की टहनी लगाकर उसे पोलीथिन से ऊपर तक कसकर बांध दिया जाता है।
पॉलीथिन में उर्वरक मिली मिट्टी भरी रहती है इसके कुछ समय बाद इनमें टहनी निकल आती है। अगस्त महीने तक ये पौधे रोपने के लिए तैयार हो जाते हैं।
गुलाब की सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई।
समय और तरीका:- गुलाब के पौधे को भूमि से लगभग 15 सेंटीमीटर ऊपर लगाये। पौधे की रुपाई करते टाइम पॉलीथिन को काटकर हटा दें पॉलीथिन को हटाते समय पॉलीथिन में भरी मिट्टी नहीं टूटनी चाहिए।
इसके बाद खेत की मिट्टी को चारों तरफ से अच्छे से दबा दें। रुपाई के तुरंत बाद ही उसकी सिंचाई कर दें।
सिंचाई:- पौधे को खेतों में लगाकर तुरंत उसकी सिंचाई भी कर दें, नई कलम में नमी देने के लिए उसकी लगातार सिंचाई करते रहे।
सर्दियों के वक्त सप्ताह में एक बार वहीं गर्मियों के वक्त 4 से 5 दिनों के अंतर में पौधों की सिंचाई करते रहे।
गमलों में फूल उगाने के लिए हर साल इसके ऊपर की मिट्टी को करीब 2 से 3 इंच तक निकाल दें।तथा सड़ी हुई गोबर की देशी खाद भर दें।
निराई-गुड़ाई:- फूलों की ज्यादा से ज्यादा पैदावार के लिए समय-समय पर पौधों की निराई-गुड़ाई जरूरी है। इसकी निराई-गुड़ाई नवम्बर के बाद से शुरू कर दे। इस दौरान कलम में से शाखाएं सबसे ज्यादा बनती है।
इससे नई शाखाएँ ज्यादा बनती है तथा जिससे पैदावार भी ठीक होता है। पौधों को बार-बार पानी नहीं देना चाहिए। इससे जमीन कठोर हो जाती है तथा जड़ों तक हवा भी नही जा पाती।
निराई करने से जड़ों को हवा की उचित मात्रा मिल पाती है, जिससे पौधे का विकास और भी अच्छे से होता है। अतः नवम्बर महीने के बाद जनवरी तक पौधों का 3 से 4 बार निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है।
तुड़ाई और छटाई:- जब फूल की एक या दो पंखुडियां खिल जाए तो फूल को काटकर पौधे से अलग कर दें।
इसके लिए तेज़ धार वाले चाक़ू या ब्लेड का इस्तेमाल कर सकते हैं। फूल को काटने के तुरंत बाद पानी से भरे बर्तन में रखना अनिवार्य है।
इसके बाद उसे कोल्ड स्टोरेज में रख दें, जहाँ का तापमान करीब 2 से 10 डिग्री तक होना चाहिए।इसके बाद फूलों की ग्रेडिंग कर उसे बाज़ार में भेजें।
पैदावार:- गुलाब की खेती से किसानों को काफी मुनाफ़ा होता है। इसकी खेती करीब चार महीने में फूल देना शुरू कर देती है। एक एकड़ जमीन पर लगभग 30 से 40 किलो फूल मिल जाते हैं।
एक साल में एक एकड़ से लगभग 200 से 300 क्विंटल फूल प्राप्त हो सकते हैं। जिनकी सालाना कमाई लगभग 15 लाख तक पहुँच सकती है।