परिचय:- बाजार में फूलों की मांग गेंदा की खेती के लिए काफी फायदे का सौदा है। गेंदा की कुछ प्रजातियाँ जैसे- हज़ारा तथा पाँवर प्रजातियाँ पूरे वर्ष भर फूल दे पाने में सक्षम है। यह प्रजातियाँ व्यापारीक खेती की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इसकी खेती में कम लागत तथा अधिक मुनाफ़ा है। ढाई महीनें में तैयार होने वाली इस फसल से महीनें में दो फसल ली जाती है।
एक बीघा में एक हजार से डेढ़ हजार रुपये की लागत लगती है। जबकी पैदावार 3 क्विंटल तक लिया जा सकता है। बाज़ार में इसकी क़ीमत ₹70 से ₹100 प्रति क्विंटल है।
सिंचाई की भी अधिक जरूरत नहीं होती, मात्र दो से तीन सिंचाई करने से ही खेती लहलहाने लगती है, जबकि पैदावार ढाई से तीन कुंटल तक प्रति बीघा तक हो जाती है।
गेंदा फूल बाजार में 70 से 80 रुपये प्रति किलो तक बिक जाता है, त्योहारों और वैवाहिक कार्यक्रमों में जब इसकी मांग बढ़ जाती है तो दाम 100 रुपये प्रति किलो तक के हिसाब से मिल जाते हैं।
गेंदा की खेती से किस्मत बदलने वाले कुछ किसान हैं:- छत्तीसगढ़ के बालोद जिला के एक किसान के युवराज पटेल दूसरे है अशोक पटेल। गेंदे की खेती से उन्हें हर महीने 10 हजार रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ हो रहा है।
जलवायु और भूमि:- इसकी खेती शरद ऋतु में होती है। परंतु यह पाले को बर्दास्त कर पाने में समर्थ नहीं है। उत्तर भारत में मैदानी क्षेत्रो में इसे शरद ऋतू में तथा उत्तर भारत के ही पहाड़ी क्षेत्रो में गर्मियों में इसकी खेती की जाती है।
गेंदा की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी आदर्श है। उचित जल निकास वाली भूमि जिसका पी.एच. मान 7.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
उन्नतशील प्रजातियां
मुख्य रूप से गेंदा की चार प्रकार की किस्मे पायी जाती है।
अफ्रीकन गेंदा – क्लाइमेक्स, कोलेरेट, क्राउन आफ गोल्ड, क्यूपीट येलो, फर्स्ट लेडी, फुल्की फ्रू फर्स्ट, जॉइंट सनसेट, इंडियन चीफ ग्लाइटर्स, जुबली, मन इन द मून, मैमोथ मम, रिवर साइड ब्यूटी, येलो सुप्रीम, स्पन गोल्ड आदि, ये व्यापारिक खेती के लिए उपयोगी है।
मैक्सन गेंदा – टेगेट्स ल्यूसीडा, टेगेट्स लेमोनी, टेगेट्स मैन्यूटा आदि प्रमुख है।
फ्रेंच गेंदा – बोलेरो गोल्डी, गोल्डी स्ट्रिप्ट, गोल्डन ऑरेंज, गोल्डन जेम, रेड कोट, डेनटी मैरिएटा, रेड हेड, गोल्डन बाल आदि है। इन प्रजातियों का पौधा फ़ैलाने वाला झड़ी नुमा होता है, पौधे छोटे होते है देखने में अच्छे लगते है।
संकर किस्म – नगेटरेटा, सौफरेड, पूसा नारंगी गेंदा, पूसा बसन्ती गेंदा आदि।
गेंदा फूल के खेत की तैयारी एवं निराई-गुड़ाई।
खेत की तैयारी:- गेंदे के बीज को पहले पौधशाला में उगाया जाता है। पौधशाला में सड़ी हुई गोबर की खाद डालकर जुताई करें।
मिट्टी को भुरभुरा बनाकर उसमें रेत भी मिलाएं, क्यारियाँ बनाकर उसमें गेंदें की बीज डालें। गोबर की खाद छानकर बीज को ऊपर से ढक दें।
जब बीज जमना प्रारंभ हो जाए तो सिंचाई कर दें। 8-10 सेंटीमीटर के हो जाने के बाद पौधों को पौधशाला से उखाड़कर तैयार खेत में लगायें।
बीज बुआई:- गेंदे की बीज की मात्रा चयनित किस्मों के आधार पर लगाई जाती है। संकर किस्मों का बीज 700 से 800 ग्राम प्रति हेक्टेयर तथा सामान्य किस्मों का बीज 1.25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है।
जलवायु की भिन्नता के अनुसार भारत में इसकी बुआई अलग-अलग समय पर होती है। उत्तर भारत में इसे दो समय पर बीज बोया जाता है पहली बार मार्च से जून तक और दूसरी बार अगस्त से सितम्बर।
पौध रोपाई:- इसकी रोपाई समतल क्यारियो में की जाती है। पौधों के मध्य की दूरी किस्मों पर निर्भर करती है।
अफ्रीकन किस्मों की रोपाई में 60 सेंटीमीटर लाइन से लाइन तथा 45 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी रख कर करते है।
वहीं अन्य किस्मों की रोपाई में 40 सेंटीमीटर पौधे से पौधे तथा इतनी ही लाइन से लाइन की दूरी रखते है।
खाद एवं उर्वरक:- 250 से 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी करते समय इसके साथ 120 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा 80 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर उपयुक्त है।
विधि – फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा खेत की तैयारी करते समय, बची हुई नत्रजन की आधी मात्रा दो बार में बराबर मात्रा में, पहली बार रोपाई के एक माह बाद तथा शेष रोपाई के दो माह बाद देना चाहिए।
निराई-गुड़ाई:- गेंदा के खेत को खरपतवारो से साफ़ सुथरा रखना अनिवार्य है। इसके लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहें तथा पौधों पर 10 से 12 सेंटीमीटर ऊंची मिट्टी चढ़ा दे। जिससे कि पौधे फूल आने पर न गिरे।
पैदावार, कीट एवं रोग नियंत्रण।
रोग और नियंत्रण
गेंदा में मुख्य रूप से अर्द्धतन, खर्रा , विषाणु रोग तथा मृदु गलन रोग लगते है।
अर्ध पतन रोग के नियंत्रण हेतु बुआई से पहले बीज को रैडोमिल 2.5 ग्राम प्रति कार्बेन्डाजिम, 2.5 ग्राम प्रति केप्टान, 3 ग्राम प्रति थीरम से उपचारित करके बुआई करें।
खर्रा रोग के नियंत्रण हेतु किसी भी फफूंदी नाशक का छिड़काव 15-20 दिनों के अंतराल पर करें।
विषाणु एवं गलन रोग के नियंत्रण लिए मिथायल ओ डिमेटान 2 मिली लीटर या डाई मिथोएट 10 मिली लीटर प्रति 10 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।
कीट नियंत्रण:- गेंदा में मुख्य रूप से कलिका भेदक, थ्रिप्स एवं पर्ण फुदका कीट लगते है ।
नियंत्रण हेतु फास्फोमिडान / डाइमेथोएट 0.05 प्रतिशत के घोल का छिड़काव 10 से 15 दिन के अंतराल पर दो-तीन छिड़काव करना चाहिए।
क़यूनालफॉस 0.07 प्रतिशत का छिड़काव भी आवश्यकतानुसार कर सकते हैं।
तुड़ाई और कटाई:- फूलो को हमेशा प्रातः काल ही काटना चाहिए तेज धूप न पड़ने से फूल ख़राब हो जाते हैं। फूलों को तेज चाकू से तिरछा साफ़ पात्र या बर्तन में रखें।
कटाई करने के बाद फूलों को छायादार स्थान पर फैलाकर रखें। कटाई पूर्ण रूप से फूलों को खिलने के बाद ही कर।
कटे फूलो को अधिक समय तक रखने हेतु 8 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर तथा 80 प्रतिशत आद्रता रखें।
पैदावार:- गेंदे की उपज भूमि की उर्वरा शक्ति एवं फसल की उचित देखभाल पर करें। आमतौर पर उपज के रूप में 125 से 150 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होते है।
कुछ उन्नतशील किस्मों से पुष्प उत्पादन 350 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होते है। जिसकी बाज़ार में क़ीमत ₹70 से ₹100 प्रति किलो है।