काजू की व्यापारिक खेती, पैदावार एवं फायदे।

जब भी हम ड्राई फ्रूट्स की बात करते है तो हमारे दिमाग में पहला नाम काजू का ही आता है। वैसे तो इसकी व्यापारिक और प्रमुख खेती गोवा, केरल, महाराष्ट्र, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बंगाल, उड़ीसा एवं कर्नाटक में की जाती है, लेकिन झारखंड में कुछ जिले जो उड़ीसा और बंगाल के पास है वहाँ पर भी इसकी खेती की जा सकती है।

परिचय:- जब भी हम ड्राई फ्रूट्स की बात करते है तो हमारे दिमाग में पहला नाम काजू का ही आता है। वैसे तो इसकी व्यापारिक और प्रमुख खेती गोवा, केरल, महाराष्ट्र, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बंगाल, उड़ीसा एवं कर्नाटक में की जाती है, लेकिन झारखंड में कुछ जिले जो उड़ीसा और बंगाल के पास है वहाँ पर भी इसकी खेती की जा सकती है।

काजू के फायदे:- काजू में काफी पोषक तत्व पाये जाते है जैसे की पोटैशियम, कॉपर, जिंक, सीलियम, आयरन, मैगनीशियम आदि जो हमारे सेहत के लिए अच्छे होते है।

 काजू के फल को तोड़ा नहीं जाता है सिर्फ गिरे हुए फल को जमा किया जाता है। जमा किये गये फल को  धुप में सुखा कर जूट के बोरों में भर दे और किसी ऊँची जगह पे रख दे। 
हर साल , हर पौधे से 8 किलो के आसपास का नट मिल जाता है। एक हेक्टेयर में 10 से 15 क्विंटल के आसपास का नट मिल जाता है। जिनको प्रसंस्करण के बाद खाने वाले काजू मिलते है।
काजू

काजू खाने से हमारे हड्डि मजबूत करने में, पाचन शक्ति में, दिल की बीमारियों में, यादाश्त तेज करने में और ब्लड प्रेशर को नियंत्रण करने में मदद मिलती है।

इन सभी कारणों के वजह से इसकी खेती किसानों के लिए बहुत लाभदायक होती है। सही दिशा न मिलने के कारण उनका काफी नुकसान भी हो जाता है।

किस्में:- अलग-अलग राज्यों के लिए उच्च काजू की संस्तुति राष्ट्रीय काजू अनुसंधान केंद्र ने किया है। काजू की प्रमुख किस्में टी. -40 , बी.पी.पी. -1, बी.पी.पी. -2, वेगुरला -4, उल्लाल -2, उल्लाल -4 आदि है।

जो किस्में उड़ीसा, मध्य प्रदेश, बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक के लिए अच्छा है, उनकी खेती झारखंड राज्य में भी हो सकती है।

भूमि और जलवायु:- काजू की फसल उष्णकटिबन्धीय है। यह गर्म जलवायु में अच्छे से उपजता है। जिन जगहों पर पाला पड़ता है या ठण्ड होती है वहाँ पे काजू के फसल पे प्रभाव पड़ता है।

700 मी. ऊंची जगह जिसका तापमान 200 सें.ग्रे. से ज्यादा होता है वहां काजू की खेती अच्छी होती है। साल में 60-450 सेंटीमीटर तक वर्षा होने वाले जगहो को उपयुक्त माना गया है।

वैसे तो काजू कई तरह के मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन समुद्र तटीय वाले लाल और लेटराइट मिट्टी उपयुक्त माना गया है।

काजू की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी झारखंड के पूर्वी, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला खरसावाँ जिले का है।

पौधे की तैयारी:- मई-जुलाई का महीना पौधा तैयार करने के लिए सही समय होता है। काजू के पौधे को साफ्ट वुड ग्राफ्टिंग या फिर भेंट कलम के जैसे तैयार किया जा सकता है।

खेती का समय:- काजू के पौधे का रोपण वर्षा के समय करना चाहिए और उसके बाद थाला बनाना चाहिए और समय-समय पर थालों में खरपतवार की निराई-गुड़ाई भी करते रहना है। थालों में सूखी घास भी बिछा देना चाहिए जिससे पानी संरक्षण भी हो सके।

काजू के खेत की तैयारी एवं उपज

खेत की तैयारी:- खेत की तैयारी के लिए सबसे पहले खेत की सफाई कर के 2-3 बार जुताई कर लेनी चाहिए। खेत की झाड़ियों को जड़ समेत उखाड़ कर उसे नष्ट कर देना है, जिससे काजू के पौधे को उगाने में कोई परेशानी न हो।

काजू के पौधे को 700-800 सेंटीमीटर के दूरी पर वर्गाकार तरीके से लगाना चाहिए, और खेत तैयार होने के बाद अप्रैल-मई में 60*60*60 सें.मी. की दूरी पर गड्ढे कर बना देने है।

अब हमे गड्ढो को 15 दिन से 20 दिन तक खुला छोड़ देना है उसके बाद 2 किलोग्राम डी. ए. पी. के मिश्रण या रॉक फ़ॉस्फेट, 5 कि.ग्रा. गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिट्टी में मिलकर गड्ढे में भर देना है।

पौधा रोपण हम बीज रोप के या पौधा रोप के दोनों तरीको से काजू का पौधा लगा सकते है। बीज के तरीके से खेती करने के लिए हमें एक गड्ढे में दो बीज रोपना है, और जब वह 5 साल बाद पौधा का रूप ले ले तो उससे अलग-अलग रोप देना है।
काजू की खेती

हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि गड्ढे के पास पानी जमा न हो और दो पौधे के बीच की दुरी 4*4 या 5*5 मीटर हो।

पौधा रोपण:- पौधा रोपण हम बीज रोप के या पौधा रोप के दोनों तरीको से काजू का पौधा लगा सकते है। बीज के तरीके से खेती करने के लिए हमें एक गड्ढे में दो बीज रोपना है, और जब वह 5 साल बाद पौधा का रूप ले ले तो उससे अलग-अलग रोप देना है।

पोधा रोपण के तरीके से खेती करने के लिए ग्राफ्टिंग है जो कि जुलाई-अगस्त के महीने में होता है और इस तरीके से हमें 2 साल में पौधा मिल जाता है।

खरपतवार नियंत्रण:- हर साल पौधे को 10 से 15 किलोग्राम गोबर और सही मात्रा में रासायनिक खाद भी डाल देना चाहिए। पहले साल हर पौधा में 300 ग्राम यूरिया, 70 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश, 200 ग्राम रॉक फास्फेट डालना है।

दूसरे साल इसका दुगुना खाद डालना है और तीसरे साल के बाद पौधो को 600 ग्रा. रॉक फास्फेट,1 कि.ग्रा. यूरिया और 200 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश हर साल मई-जून और सितम्बर-अक्टूबर के महीने में आधा-आधा देना चाहिए।

काट-छांट:- काजू के पौधे को शुरुआत में ढांचा अच्छा देना चाहिए और अच्छी छांट-काट के द्वारा पौधे को अच्छा ढांचा के उपरांत उपज तोड़ने के बाद कैंची से कीट ग्रसित, शाखाओं को काट देना चाहिए।

पौधा संरक्षण:- काजू के पौधे में टी मास्कीटो बग की परेशानी ज्यादा देखी जाती है। इसके नवजात और वयस्क नई कोपलों, मंजरों, फलों से रस चूस जाते है और इससे बहुत नुक्सान पहुँचता है।

कभी कभी तो यह परेशानी बहुत ज्यादा बढ़ जाती और हमे पुरे खेत में एक खास छिड़काव करना परता है। इसको नियंत्रण में करने के लिए एक स्प्रे अनुसूची बनाया गया है, जो कुछ इस तरह है।

पहला स्प्रे छिड़काव – कल्ले लगते समय, मोनोक्रोटोफास- 0.05% का छिड़काव करें।

दूसरा स्प्रे छिड़काव – फूल लगते समय, कर्वेरिल- 0.1% का छिड़काव करें।

तीसरा स्प्रे छिड़काव – फल लगते समय, कार्वेरिल- 0.1% का छिड़काव करना चाहिए।

फसल तोड़ाई और उपज:- काजू के फल को तोड़ा नहीं जाता है सिर्फ गिरे हुए फल को जमा किया जाता है। जमा किये गये फल को धुप में सुखा कर जूट के बोरों में भर दे और किसी ऊँची जगह पे रख दे।

हर साल, हर पौधे से 8 किलो के आस-पास का नट मिल जाता है। एक हेक्टेयर में 10 से 15 क्विंटल के आस-पास का नट मिल जाता है। जिनको प्रसंस्करण के बाद खाने वाले काजू मिलते है।

फसलबाज़ार

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