केला भारत के हर राज्य में उपजाया और प्रयोग में भी लाया जाता है। लगभग हर राज्य में एक शहर को उस राज्य के केले का राजधानी के रूप में देखा जाता है। और अनेक किसान केला की खेती एवं केले बेचकर करोड़पति भी बन जाते हैं।
आज जानते हैं उन्हीं में से कुछ किसान के विषय में जो अब एक करोड़पति हैं, और खेती अब भी केले की ही कर रहे हैं। 62 वर्ष के टेनूडोंगर बोलेरो और दूसरे हैं लक्ष्मण ओंकार चौधरी।
62 वर्षीय टेनू महाराष्ट्र के छोटे से गाँव से आते हैं। कभी यह अपने गाँव के चौराहे पर चाय बेचा करते थे। फिर धीरे-धीरे केला की खेती के तरफ उनका आकर्षण बढ़ा और आज वह कई एकड़ जमीन में खेती कर रहे हैं। कभी अपने गाँव में टेनया नाम से प्रसिद्ध चाय वाला आज टेनू सेठ के नाम से जाना जाता है।
वहीं लक्ष्मण ओंकार चौधरी शिक्षक थे 1974 से हीं केले की खेती कर रहे थे। पहले वह परंपरागत खेती हीं करते थे। जिनमें 18 महीनें में एकबार फल आता है।
फिर उन्होंने वैज्ञानिक तकनीक को अपनाया और खेती शुरू की। प्रारंभ में उनके पास 4 बीघा जमीन थी। आज उनके पास 4500 से भी ज्यादा केले के पेड़ हैं और उनका रकबा 50 एकड़ से ज़्यादा में फैला है। वह 1 साल में 13000 कुंतल से अधिक उत्पादन करते हैं।
केले की कीमत 1500 प्रति कुंतल के आसपास रहती है। उनकी सालाना टर्नओवर 2 करोड़ के आसपास रहती है। उत्तर भारत उनके उत्पादों का प्रमुख बाजार है।
केला की खेती में भारत के अग्रणी राज्य।
केले के उत्पादन में महाराष्ट्र तथा गुजरात अग्रणी है। महाराष्ट्र के जलगाँव को महाराष्ट्र के केले की राजधानी के रूप में देखा जाता है। बिहार का हाजीपुर भी केला की खेती में अग्रणी है। लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि किसानों की असल चुनौती पैदावार है। यदी पैदावार बढ़े तो आमदनी भी बढ़ती है। इसके लिए केले के पेड़ को तैयार करने की वैज्ञानिक तकनीक के साथ कृषि और अर्थव्यवस्था की सटीक जानकारी के साथ बाजारों में पहुँच भी आवश्यक है।
श्री सिंह बताते हैं की सरकार को किसानों की मदद, बेहतर सिंचाई, बेहतर सड़क, कोल्ड स्टोरेज, बैंक के द्वारा वित्तीय मदद, और उचित कीमत जैसे उपायों पे ध्यान देना चाहिए फिर एक किसान को अनुदान की आवश्यकता नहीं रह जायेगी।
वो अपनी मेहनत और सरकारी योगदान के साथ-साथ इसका श्रेय, उन वैज्ञानिकों और कंपनियों को भी देना चाहते हैं जिन्होंने पैदावार बढ़ाने के लिए नई तकनीकों का ईजाद किया।
सर्वप्रथम भवरलाल जैन, जिन्होंने सिंचाई में मदद देने वाली मोटर कंपनी की नींव रखी। जो बूंद- बूंद पानी का इस्तेमाल सिंचाई में कर पाने में सक्षम है। तो 1990 के दशक में केले की ऐसी प्रजाति बनाई जो एक तने से 3 फसल देने में सक्षम हो और यहीं से महाराष्ट्र में केले की खेती का नया दौर प्रारंभ हो गया।
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Kela ki kheti ki jankari achhi hai…..lekin Aman agar ye jankari chote chote kisano ke pass milkar smjhaoge to jyada asardar hoga…..kyunki har kisan jyda padhe likhe nhi hote hai or wo abhi bhi paramparagt kheti krte hai or jitna hota hai usi me khush rhne ki kosis krte hai……isliye yha jankari achhi hai but agar ye daily kisi ek kisan ko milkr smjahoge to jyda asar krega or kisano ka benifit bhi bhut jyda ho skta hai
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