अंगूर की खेती, पैदावार तथा व्यापारीक महत्व।

अंगूर विश्व की एक बहुत प्रसिद्ध फसल है। यह अधिकतर देशों में व्यापारिक तौर पर उगाई जाती है। यह बेल की फसल है, इसके पत्ते साल में एक बार झड़ते हैं । यह विटामिन बी और खनिज पदार्थ जैसे कैल्सियम, फास्फोरोस और आयरन से भरपूर होता है।

परिचय:- अंगूर विश्व की एक बहुत प्रसिद्ध फसल है। यह अधिकतर देशों में व्यापारिक तौर पर उगाई जाती है। यह बेल की फसल है, इसके पत्ते साल में एक बार झड़ते हैं। यह विटामिन बी और खनिज पदार्थ जैसे कैल्सियम, फास्फोरोस और आयरन से भरपूर होता है।

अंगूर, खाने के लिए और कुछ अन्य उत्पादों के निर्माण जैसे जैली, जैम, किसमिस, सिरका, जूस, बीजों का तेल और अंगूर के बीजों का अर्क बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

चीन अंगूर की खेती में प्रथम है। यह औषधीय गुणों से भी भरपूर है इसका इस्तेमाल शूगर को नियंत्रित करने, अस्थमा, हृदय रोग, कब्ज, हड्डियों के स्वास्थ्य आदि के लिए लाभदायक होती है।

यह त्वचा और बालों के लिए भी लाभदायक है। यह दो रंगों में पाई जाती है हरी तथा जामुनी।

अंगूर, खाने के लिए और कुछ अन्य उत्पादों के निर्माण जैसे जैली, जैम, किशमिश, सिरका, जूस, बीजों का तेल और अंगूर के बीजों का अर्क बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
अंगूर

मिट्टी:- इसे अनेक प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है। अंगूर की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी जिसकी पी एच 6.5-8.5 हो उपयोगी है। मिट्टी जल जमाव की समस्या से मुक्त होनी चाहिए।

उन्नत किस्में

पंजाब एम. ए. सी. एस. पर्पल – यह किस्म 2008 में ईजाद की गई है। इसमें एंथोसायनिन उच्च मात्रा में पाया जाता है। इसका फल छोटा होता है तथा इसमें बीज होते हैं।

पकने पर यह जामुनी रंग का हो जाता है। यह किस्म जून के पहले सप्ताह में पक जाती है। इसे जूस और नेक्टर बनाने के लिए उपयुक्त माना जााता है।

परलीट – यह 1967 में जारी की गई थी, यह अधिक उपज के लिए जानी जाती है।
इसकी शाखाएं बड़ी से मध्यम आकार की होती है।

अंगूरों का आकार मध्यम हल्के सुगंधित, छिल्का मोटा और सख्त होता है। औसतन पैदावार 25 किलो प्रति बेल है।

ब्यूटी सीडलेस – यह 1968 में ईजाद की गई है। यह दक्षिण पश्चिमी जिलों में अच्छे परिणाम देती है। मध्यम आकार की अच्छी तरह से भरी हुई शाखाओं का निर्माण करती है।

फल बीज रहित मध्यम आकार और नीले काले रंग के होते हैं। इसमें टी. एस. एस. की मात्रा 16-18 प्रतिशत होती है। जून के पहले सप्ताह में पकने वाले इस किस्म की औसतन पैदावार 25 किलो प्रति बेल होती है।

फ्लेम सीडलेस – यह 2000 में जारी की गई किस्म है। शाखाएं मध्यम बीज रहित फल जो सख्त और कुरकुरे होते हैं, पकने पर फल हल्के जामुनी रंग के। टी एस एस की मात्रा 16-18 प्रतिशत होती है।

सुपीरियर सीडलेस – इस किस्म की बेल का फैलाव मध्यम होता है। इसके गुच्छे बड़े आकार के होते हैं।बीज आकार में बड़े और रंग सुनहरा होता है। इसकी औसतन उपज 21.8 किलो प्रति बेल होती है।

थॉम्पसन सीडलेस – इसके गुच्छे बड़े होते हैं। अंगूर समान आकार के मध्यम लंबे, हरे रंग के और पकने पर पर सुनहरे और स्वाद में अच्छे होते हैं। यह देरी से पकने वाली किस्म है।

बिजाई का समय:- अंगूर की फसल की रोपाई इसके जड़ के कटिंग के जरिय की जाती है। अतः कटिंग की रोपाई दिसंबर से जनवरी महीने में की जाती है।

फासला:- रोपाई दो विधियों से निफिन और आरबोर विधि से की जाती है। निफिन विधि द्वारा रोपाई में 3*3 मीटर का फासला रखें और आरबोर विधि में 5*3 मीटर का फासला रखें।

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अंगूर की सिंचाई तथा कीट रोकथाम।

बीज की गहराई:- प्रत्येक कटिंग को 1 मीटर की गहराई में रोपित करें।

खाद तथा उर्वरक:- नई रोपित की गई बेलों में उचित मात्रा में खाद तथा उर्वरक की आव्यशकता होती है। सामान्यतः यूरिया 60 ग्राम, और म्यूरेट ऑफ पोटाश 125 ग्राम प्रति बेल अप्रैल-मई के महीने में डालें। तथा जून के महीने में यही मात्रा दोबारा डालें।

रूड़ी की खाद और एस एस पी की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन और पोटाशियम की आधी मात्रा छंटाई करने के बाद तथा नाइट्रोजन और पोटाशियम की आधी मात्रा फल बनने के बाद अप्रैल महीने में दें।

दो बार यूरिया से स्प्रे करें, पहली स्प्रे फूल खिलने के समय और दूसरी फल बनने के समय करें।

 नई रोपित की गई बेलों में उचित मात्रा में खाद तथा उर्वरक की आव्यशकता होती है। सामान्यतः यूरिया 60 ग्राम, और म्यूरेट ऑफ पोटाश 125 ग्राम प्रति बेल अप्रैल-मई के महीने में डालें। तथा जून के महीने में यही मात्रा दोबारा डालें।
अंगूर की खेती

खरपतवार नियंत्रण:- रासायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु मार्च में जुताई के बाद 1-15 मार्च के बीच दवा डालें।

अंकुरण के पहले 800 मि. ली. स्टाम्प प्रति एकड़ डालें। अंकुरण के बाद ग्रामोक्सोन 24 डब्लू.सी. एस. पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

सिंचाई:- छटाई के बाद फरवरी के प्रथम पखवाड़े में एक सिंचाई। मार्च के पहले पखवाड़े में दूसरी सिंचाई।

फल बनने पर 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई, मई के महीनें में एक सप्ताह के अंतराल पर तथा जून में 3-4 दिनों के अंतराल पर करें। इसके बाद आव्यशकता अनुसार सिंचाई करें।

कीट और रोकथाम

भुंडियां – ये ताजे पत्तों को खाने वाली किट है। पत्तों को खा कर यह बेल को पत्ते रहित कर देती है।

उपचार हेतु मैलाथियोन 400 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

थ्रिप्स और तेला – ये पत्तों और फलों का रस चूसते हैं। इससे पत्तों के ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।

उपचार हेतु मैलाथियोन 400 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

पीला और लाल ततैया – ये कीट पके फलों में छेद कर उन्हें खा जाते हैं।

सुरक्षा हेतु क्विनलफॉस 600 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें ।

बीमारियां तथा रोकथाम

पत्तों के ऊपरी धब्बा रोग – पत्तों के दोनों के तरफ तथा फूलों के गुच्छों पर सफेद रंग के धब्बे दिखने लगते हैं तथा पत्ते मुरझाने लग जाते हैं। और फिर सूखने लगते हैं।

बचाव के लिए कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम य की स्प्रे फूलों के विकसित होने से पहले तथा फलों के विकसित होने के समय करें।

पत्तों के निचली ओर धब्बे – पत्तों के ऊपर की ओर अनियमित आकार के पीले रंग के तथा निचलीपरत पर सफेद रंग की फंगस देखी जा सकती है।

उपचार हेेेतूू कटाई-छंटाई के दौरान मैनकोजेब 400-500 ग्राम की पहली स्प्रे करें।

तुड़ाई तथा छटाई:- फल तैयार हो जाने पर पूरे फल की तुड़ाई कर लें इसके बाद इसकी छटाई आवश्यक है।

छंटाई के बाद, 6 घंटों तक फलों को 4.4 डिगरी सेल्सियस तापमान पर ठंडा होने के लिए रखा जाता है। तथा लंबी दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए अंगूरों की पैकिंग कंटेनर में की जाती है ताकी फल ख़राब न हो।

फसलबाज़ार

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