परिचय:- शकरकंद का वनस्पति नाम इपोमोएआ वतातास है। यह मिठा होता है तथा इसमें स्टार्च की अधिक मात्रा पाई जाती है।
शकरकंद में वीटा कैरोटिन बड़ी मात्रा में पाई जाती है तथा इसे एंटीऑक्सीडेंट एवं अल्कोहल के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
इसकी कंद का उपयोग खाद्य के रूप में किया जाता है, इसलिए इसे मीठी आलू भी कहते हैं। खाद्य त्वचा चिकनी पतली लम्बी या गोलाकार हो सकती है।
यह तीन रंग बैंगनी, सफेद और भूरा हो सकता है। बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा इसके प्रमुख उत्पादक राज्य है।
जलवायु:- शकरकंद की खेती के लिए तापमान 21 से 27 डिग्री आदर्श है। इसे शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु वाले स्थनों पर सफलतापुर्वक उगाई जाती है। वर्षा 75 से 150 सेंटीमीटर वार्षिक उत्तम माना जाता है।
भूमि:- अच्छी जल निकास वाली दोमट या चिकनी दोमट मिटटी आदर्श है। इसकी खेती के लिए भूमि का पी. एच. 5.8 से 6.7 के मध्य उपयुक्त माना जाता है।
उन्नत किस्में
गौरी – यह 1998 में विकसित की गई थी, 110 से 120 दिन में तैयार होने वाली इस किस्म के कंद का रंग बैंगनी लाल होता है।
इनके गूदे का रंग बीटा केरोटिन के कारण पिला होता है। इसे खरीफ तथा रवि फसल के मौसम में उगाया जाता है।
श्री कनका – यह 2004 में विकसित की गई थी, दूधिया रंग के छिलके वाले इस कंद का गूदा पिला दिखाई देता है। यह 100 से 110 दिन में तैयार होकर 20 से 25 टन प्रति हैक्टर पैदावार देता है।
एस टी 13 – इसके गूदे का रंग बैंगनी-काला होता है। यह चुकंदर के जैसा दिखाई देता है। इसमें बीटा केरोटिन नहीं होता तथा मिठास भी कम होती है।
किन्तु एंटीऑक्सीडेन्ट के रूप में यह फायदेमंद है। 110 दिन में तैयार होने वाली इस किस्म की पैदावार 14 से 15 टन प्रति हैक्टर है।
एस टी 14 – 2011 में विकसित इस किस्म के कन्द का रंग हल्का पीला और गूदे का रंग हरा पीला होता हैं।
इनमें उच्च मात्रा में बीटा केरोटिन पाया जाता है, 110 दिन में तैयार होने वाले इस किस्म की पैदावार 15 से 71 टन प्रति हैक्टर है।
सिपस्वा 2 – यह किस्म अम्लीय मिटटी के लिए उपयुक्त है।
अन्य किस्में – पूसा सफेद, पूसा रेड, पूसा सुहावनी, एच-268, एस-30, वर्षा और कोनकन, अशवनी, राजेन्द्र शकरकंद-35, 43 और 51, करन, भुवन संकर, सीओ-1, 2 और 3, और जवाहर शकरकंद-145 और संकर किस्मों में एच-41 और 42 इत्यादि है।
शकरकंद खेत की तैयारी एवं समय।
खेत की तैयारी:- प्रथम जुताई मिटटी पलटने वाले हल से उसके बाद 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से। जुताई करके मिटटी को भुरभुरा और हवादार बना लेनी चाहिए।
खेत में प्रति हेक्टेयर 170 से 200 क्विंटल गली सड़ी गोबर खाद आखरी जुताई से पहले डालकर मिट्टी में अच्छी तरह से मिला लें।
समय:- शकरकंद की खेती वर्षा ऋतु में जून से अगस्त तथा रबी के मौसम में अक्टूबर से जनवरी में की जाती है।
उत्तर भारत में शकरकन्द की खेती रबी, खरीफ तथा जायद तीनों मौसम में की जाती है। इसकी खेती लता तथा कन्द दोनों माध्यम से की जाती है।
नर्सरी तैयार करना:- एक हैक्टर खेत के लिए लगभग 84,000 लताओं के टुकड़ों की आवश्यकता होती है।
एक टुकड़े की लम्बाई 20 से 25 सेंटीमीटर रखें तथा एक साथ 2 से 3 टुकड़े ही लगाएं। कटिंग हमेसा लता के मध्य व ऊपरी भाग से ले।
कन्द का प्रयोग कर रहे हो तो इसके लिए दो नर्सरी तैयार करनी पड़ती है।
प्राथमिक नर्सरी – खेत में फसल लगाने के दो महीने पहले ही प्राथमिक नर्सरी को तैयार कर ले। एक हैक्टर क्षेत्र के लिए प्राथमिक नर्सरी 100 वर्गमीटर क्षेत्रफल की रखें।
स्वस्थ कन्द को 60*60 सेंटीमीटर मेड़ से मेड़ की दूरी और 20*20 सेंटीमीटर कन्द से कन्द की दूरी पर लगा दें। इस तरह 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के लिए लगभग 100 किलोग्राम पर्याप्त है।
कंद की बुआई के समय 1.5- 2 किग्रा यूरिया प्रति नाली छिड़काव करें। तथा जल की उपलब्धता बनाये रखें।
40 से 50 दिनों में लता तैयार हो जाएंगे जिसे 20-25 सेमी के टुकड़ों में काटकर खेत में लगाया जा सकता है।
द्वितीय नर्सरी – द्वितीय नर्सरी 500 वर्गमीटर क्षेत्रफल में बनायें। मेड़ों के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
15 व 30 दिन बाद 5 किलोग्राम यूरिया का छिड़काव अवश्य करें नमी बनाए रखें। इस प्रकार से 45 दिनों में दूसरी नर्सरी तैयार हो जाती है।
इससे 20 से 25 सेंटीमीटर लम्बी लताएं शीर्ष व मध्यम भाग की कटिंग कर ली जाती है जो यह मुख्य खेत में लगाने के लिए उपयुक्त है।
लताओं को लगाने से पूर्व की तैयारी:- नर्सरी से लताओं को काटने के बाद उसको दो दिनों तक छाया में रखें।
जड़ों के अच्छे विकास के बाद लताओं को बोरेक्स दवा 0.05 प्रतिशत के घोल में 10 मिनट तक डुबोकर उसे उपचारित करें उसके बाद मुख्य खेत में लगाएं।
विधि:- शकरकंद लगाने की तीन विधियाँ है। टीला विधि, मेड़ विधि तथा नाली विधि और समतल विधि।
इन तीनों विधियों का अपना महत्व है, टीला विधि का प्रयोग जल जमाव वाले क्षेत्रों में तथा मेड़ व नाली विधि ढलाव वाले भूमि के लिए उपयुक्त है।
समतल विधि हर जगह के लिए है, एक माह बाद जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है।
लता रोपण:- लताओं को लगाते समय मध्य भाग तक मिट्टी से दबा देना चाहिए, जिससे जड़ का विकास तीव्र गति से हो।
लताओं की कटिंग हमेशा 3 गांठ से ऊपर होनी चाहिए, इनके बने कन्द गुणवत्तापूर्ण होते हैं।
दुरी – कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें तथा पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखें।
खरपतवार नियंत्रण एवं कन्द की खुदाई।
खरपतवार नियंत्रण:- अगर खेत में कुछ खरपतवार उगे तो मिट्टी चढ़ाते समय निकाल देना चाहिए। उसके बाद इसकी समस्या नहीं आती है।
खाद और उर्वरक:- शकरकंद की खेती में कार्बनिक खाद्य प्रचुर मात्रा में दें, ईससे मिटटी की उत्पादकता सही व स्थिर बनी रहती है।
केन्द्रीय कन्द अनुसंधान संस्थान के मुताबिक प्रथम जुताई के समय 5 से 8 टन सड़ी हुई गोबर की खाद भूमि में मिला देनी चाहिए।
रासायनिक उर्वरकों में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन व 25 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करनी चाहिए।
नाइट्रोजन की आधी मात्रा फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा शुरू में तथा शेष नाइट्रोजन को दो हिस्सों में बांटकर एक हिस्सा 15 दिन में दूसरा हिस्सा 45 दिन टाप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करें।
अम्लीय भूमि में चूने का प्रयोग कंद विकास के लिए अच्छा रहता है। इनके अलावा मैगनीशियम सल्फेट, जिंकसल्फेट और बोरॉन 25:15:10 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करने पर कन्द फटने की समस्या नहीं आती हैं व एक समान व आकार के कंदों का विकास होता है।
कीट और रोग नियंत्रण
शकरकंद का घुन – यह शकरकन्द का सबसे खतरनाक कीट है। यह खेतों से लेकर घरों में रखे गये कन्दों को भारी नुकसान पहुंचाता है।
प्रौढ कीट लताओं व कन्दों में महीन सुराख बना देते हैं तथा सूडी प्रौढ़ कीट द्वारा बनाये गये सुराख में ही अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं। प्रभावित कन्द का स्वाद कड़वा तथा बदरंग हो जाता है।
सुरक्षा हेतु लता का चुनाव पहली बार बोई गई खेत या स्वस्थ फसल में ही करें। परिपक्व लताओं का ही चुनाव करें तथा ध्यान रहे कि जिस खेत से लताएं प्रयोग कर रहे हैं उनमें संक्रमण न हो।
लगाने से पहले फेनथियान या फॅनीट्रोथियान या मोनोक्रोटोफास 0.05 प्रतिशत के घोल से उपचारित करें रोपण के 2 महीने बाद दोबारा मेड़ बनायें।
नर कीट को इकट्ठा करके मार दे, फसल कटने के बाद जो अवशेष को जला देना चाहिए या खेत से दूर फेक देे।
कन्द की खुदाई:- कन्द की खुदाई किस्म पर निर्भर करती है। जब कन्द तैयार हो जाए तो सबसे पहले लताएं काट ले तथा उसके बाद बिना कन्द को क्षति पहुंचाये खुदाई करें।
पैदावार:- शकरकंद पैदावार किस्मों के अनुसार अलग-अलग होती है चूंकि सामान्य रूप से औसत पैदावार 15 से 25 टन प्रति हैक्टर तक देखी गयी है।