परिचय:- गाजर एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं औषधीय गुणों से भरपूर जड़वाली सब्जी की फ़सल है। गाजर की खेती भारत के सभी राज्यों में की जाती है। इसको कच्चा एवं पकाकर दोनों ही रूप में प्रयोग में लिया जाता है।
गाजर में प्रचुर मात्रा में कैरोटीन एवं विटामिन ए पाया जाता है। मुख्य रूप से गाज़र नारंगी तथा जामुनी रंग का होता है।
नारंगी रंग के गाज़र में कैरोटीन की अधिक मात्रा पाई जाती है। गाज़र के पत्ते जानवरों के लिए बहुत उत्तम चारा माना जाता है।

जलवायु:- गाजर के लिए ठंडी जलवायु उत्तम मानी जाती है। इसकी खेती 8 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान तक सफलतापूर्वक की जा सकती है।
जड़ों कि वृद्धि तथा रंग तापमान से बहुत प्रभावित होता है। 15-20 डिग्री तापमान पर जड़ों का आकार छोटा तथा रंग सर्वोत्तम होता है। अलग-अलग किस्मों पर तापमान का प्रभाव भी भिन्न होता है।
भूमि:- गाजर की खेती अमूमन अनेक प्रकार की मिट्टी में की जाती है। लेकिन दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है।
बुआई के समय खेत की मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए इससे जड़ें अच्छी बनती है, तथा जल जमाव वाले स्थान पर खेती नहीं हो सकती अतः जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
भूमि कि तैयारी:- दो बार खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से जोतना चाहिए। इसके बाद 3-4 बार देशी हल से जुताई करें।
प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल करें, जिससे मिटटी भुरभुरी हो जाए। गाज़र की खेती के लिए मिट्टी गहराई तक भुरभुरी होनी चाहिए।
उन्नत क़िस्में
पूसा केसर – इसका रंग लाल होता है पत्तियाँ छोटी एवं जड़ें लम्बी होती है। फ़सल को तैयार होने में 90 से 110 दिनों का समय लगता है। पैदावार 300-350 क्विंटल प्रति हेक्टेअर।
घाली – यह नारंगी रंग का होता है यह छोटी टॉप वाला होता है। इसमें कैरोटीन की अधिक मात्रा वाली पाई जाती है।
इसकी बुआई अगस्त से अक्टूबर तक कर सकते हैं। फ़सल 100-110 दिन में तैयार हो जाती है तथा पैदावार 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेअर है।
पूसा यमदग्नि – इसका विकास आई. ए. आर. आई के क्षेत्रीय केन्द्र द्वारा किया गया है। इसकी पैदावार 150-200 कुंतल प्रति हेक्टेयर है।
नैन्टस – इसकी जडें बेलनाकार तथा रंग नांरगी होता है। जड़ का मध्य भाग मुलायम तथा मीठा होता है। 110-112 दिन में तैयार होने वाले किस्म की पैदावार 100-125 क्विंटल प्रति हेक्टेअर है।
गाजर की सिंचाई एवं कीट नियंत्रण।
बुआई का समय:- मैदानी क्षत्रों में एशियाई क़िस्मों की बुआई अगस्त से अक्टूबर तथा यूरोपियन क़िस्मों की बुआई अक्टूबर से नवम्बर तक की जाती है।
बीज की मात्रा:- एक हेक्टेअर भूमि में रोपाई के लिए 6-8 कि०ग्रा० बीज आदर्श माना जाता है।
बुआई और दूरी:- इसकी बुआई क्यारियों में तथा मेरों पर भी की जा सकती है। इसकी बिजाई 30-40 सेमी की दूरी पर मेंड पर करते हैं।

सिंचाई:- बुआई के समय खेत में नमी का आभाव न हो इसका ध्यान रखना चाहिए। पहली सिंचाई बीज उगने के तुरंत बाद करें।
प्रारंभ में 8-10 दिन के अन्तर पर तथा कुछ दिनों बाद 12-15 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करते रहें।
खाद और उर्वरक:- एक हेक्टेअर खेत में लगभग 25-30 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद अन्तिम जुताई के समय दें इसके बाद पाटा लगा दें, जिससे खाद मिट्टी में अच्छे से मिल जाय।
30 किग्रा नाइट्रोजन तथा 30 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेअर की दर से बुआई के समय दें। बुआई के 5 से 6 सप्ताह बाद 30 किग्रा नाइट्रोजन को डालना चाहिय।
खरपतवार नियंत्रण:- फसल के साथ अनेक खरपतवार उग आते है जो भूमि में नमी और पोषक तत्वो की कमी कर देते हैं। जिसके फलस्वरूप पौधों का विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
अत: उचित समय पर निदाई-गुड़ाई आवश्यक है। बृद्धि करती हुई जड़ों के समीप हल्की निदाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।
कीट नियंत्रण
धब्बे वाला पत्ती का टिड्डा – रोकथाम हेतु 10-15 दिन के अंतराल पर नीम के काढ़े का छिड़काव करे।
रोग नियंत्रण
आद्र विगलन – यह रोग पिथियम अफनिड़रमैटम नामक फफूंदी से होता है। इसमें बिज के अंकुरित होते ही पौधे संक्रमित हो जाते है। पौधों का अचानक गिर पड़ना और सड जाना आद्र विगलन का प्रमुख कारण है।
रोकथाम – बिजाई से पूर्व पौधे को उपचारित करना अनिवार्य है।
खुदाई एवं पैदावार:- गाजर की जड़ों की खुदाई पूरी तरह विकसित होने के बाद करनी चाहिए। खेत में खुदाई के समय पर्याप्त नमी की आव्यशकता होती है। खुदाई फरवरी में करें बाजार भेजने से पूर्व जड़ों को अच्छी से तरह धो ले।