ड्रैगन फ्रूट खेती के तकनीक, वाणिज्यिक खेती एवं लाभ।

ड्रैगन फ्रूट की खेती विशेष रूप से थाइलैंड, वियतनाम, इज़रायल और श्रीलंका में लोकप्रिय है। यह फल समाज के विशेष वर्ग के मध्य काफ़ी लोकप्रिय हो रहा है, बाज़ार में इसकी क़ीमत 200 से 250 रुपये प्रति फल तक है।

परिचय:- ड्रैगन फ्रूट की खेती विशेष रूप से थाइलैंड, वियतनाम, इज़रायल और श्रीलंका में लोकप्रिय है। यह फल समाज के विशेष वर्ग के मध्य काफ़ी लोकप्रिय हो रहा है, बाज़ार में इसकी क़ीमत 200 से 250 रुपये प्रति फल तक है।

अच्छे दाम मिलने की वजह से भारत के किसानों में भी इसकी खेती का प्रचलन बढ़ा है। इसे कम वर्षा वाले क्षेत्र की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है।

ड्रैगन फ्रूट के पौधे का उपयोग सजावटी पौधे के साथ-साथ फलों के लिए भी होता है। ड्रैगन फ्रूट को ताजे फल के तौर पर खाने के साथ औद्योगिक क्रिया कलाप में भी इसका उपयोग होता है, जैसे:- जैम, आइस क्रीम, जैली, जूस और वाइन बनाने तथा सौंदर्य प्रसाधन में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
ड्रैगन फ्रूट

ड्रैगन फ्रूट के पौधे का उपयोग सजावटी पौधे के साथ-साथ फलों के लिए भी होता है। ड्रैगन फ्रूट को ताजे फल के तौर पर खाने के साथ औद्योगिक क्रिया कलाप में भी इसका उपयोग होता है। जैसे:- जैम, आइस क्रीम, जैली, जूस और वाइन बनाने तथा सौंदर्य प्रसाधन में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।

जलवायु:- खेती के दृष्टिकोण से 50 सेमी वार्षिक औसत की दर से बारिश तथा 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान इसके लिए उपयुक्त माना जाता है।

बहुत ज्यादा सूर्य प्रकाश इसकी खेती पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, अतः अधिक सूरज की रौशनी वाले इलाको में अच्छी उपज के लिए छायादार जगह में इसकी खेती उपयुक्त है।

मिट्टी:- इसे रेतिली दोमट मिट्टी से लेकर दोमट मिट्टी तक अनेक प्रकार के मिट्टियों में सहजता से उगाया जा सकता है।

बेहतर जिवाश्म तथा जल निकासी वाली बलुई मिट्टी इसकी उपज के लिए सर्वोत्तम है जिसका पी एच मान 5.5 से 7 हो।

खेत की तैयारी:- खेत की अच्छी तरह से जुताई करने के बाद मिट्टी में मौजुद सारे खरपतवार नष्ट कर दें।

इसके बाद जैविक कंपोस्ट उचित अनुपात में (परीक्षण के आधार पर) मिट्टी में दिया जाना चाहिए, जिसमें गोबर की सड़ी खाद तथा इससे निर्मित कंपोस्ट कॉमन है।

बुआई की विधि:- बुआई का सबसे सामान्य तरीका है, इसकी डालों को काटकर लगाना। बीज के जरिए भी इसकी बुआई की जाती है लेकिन बीज पनपने में लंबा वक्त लगता है।

बीज से लगाये पौधों में मूल पेड़ के गुण आने की संभावना भी कम रहती है। अतः बीज द्वारा रोपण को वाणिज्यिक खेती के अनुकूल नहीं माना जाता है।

इसलिए गुणवत्ता पूर्ण पौधे की छंटाई से ही ड्रैगन फ्रूट के सैंपल तैयार करने चाहिए। लगभग 20 सेमी लंबे सैंपल को खेत में लगाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।

ड्रैगन फ्रूट की रोपण, खाद एवं उर्वरक।

रोपण:- इन पौधों के रोपण हेतु सुखे गोबर, मिट्टी और बालू कको 1:1:2 के अनुपात में मिलये गए मिश्रण की सहायता से तैयार गड्ढों में रोपें।

गड्ढों का आकार 60*60 सेमी रखें गड्ढों में तैयार मिश्रण के साथ 100 ग्राम सुपर फास्फेट भी डालें।

दो पौधों के मध्य कम से कम 2 मीटर की दूरी रखें, एकड़ खेत में 1700 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए जाने चाहिए। पौधों को तेजी से बढ़ने में मदद करने के लिए लकड़ी का तख्त या कंक्रीट लगाया जा सकता है।
ड्रैगन फ्रूट की खेती

ध्यान रखना जरूरी है कि इन्हें रोपने से पहले छाया में रखा जाए ताकि सूरज की तेज रौशनी से इन सैंपल को नुकसान न पहुंचे।

दो पौधों के मध्य कम से कम 2 मीटर की दूरी रखें, एकड़ खेत में 1700 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए जाने चाहिए। पौधों को तेजी से बढ़ने में मदद करने के लिए लकड़ी का तख्त या कंक्रीट लगाया जा सकता है।

खाद एवं उर्वरक:- ड्रैगन फ्रूट के पौधों की वृद्धि के लिए जिवाश्म तत्व ही प्रमुख भूमिका निभाते हैं अतः रासायनिक उर्वरकों से बचें।

पौधों की सटिक वृद्धि के लिए 10 से 15 किलो जैविक खाद प्रति पौधें प्रति बर्ष दिय जाने चाहिए।

इसके बाद प्रत्येक साल दो किलो जैविक खाद की मात्रा बढा दें। रासायनिक खाद के रूप में, वानस्पतिक अवस्था में पोटाश:सुपर फास्फेट:यूरिया 40:90:70 ग्राम प्रति पौधे देने से विकास अच्छा होता है।

फल लगने के समय कम मात्रा में नाइट्रोजन और अधिक मात्रा में पोटाश दिया जाने से उपज अच्छी होती है।

फुल आने के ठीक पहले मतलब अप्रेल से फल आने के समय अर्थात जुलाई-अगस्त और फल को तोड़ने के दौरान मतलब दिसंबर तक रासायनिक खाद यूरिया:सुपर फास्फेट:पोटाश 50:50:100 ग्राम प्रति पौधे के अनुपात में दी जानी चाहिए। रासायनिक खाद प्रत्येक वर्ष 220 ग्राम बढ़ाया जाना चाहिए।

कीट एवं रोग:- ड्रैगन फ्रूट में अब तक किसी तरह के कीट लगने या पौधों में किसी तरह की बीमारी होने का मामला सामने नहीं आया है।

ड्रैगन फ्रूट के पौधे एक साल में फल देने लगते हैं, पौधों में मई-जून के महीने में फूल लगते हैं तथा अगस्त से दिसंबर तक फल।

फूल आने के एक महीने के बाद फल तोड़ा जा सकता है। एक पेड़ से एक मौसम में कम से कम छह बार फल तोड़ा जा सकता है।

फलों के रंग से आसानी से समझा जा सकता है, कच्चे फलों का रंग गहरे हरे रंग का होता जबकि पकने पर इसका रंग लाल हो जाता है।

रंग बदलने के तीन से चार दिन के अंदर फलों को तोड़ लेना चाहिए। यदी निर्यात किया जाना हो तो रंग बदलने के एक दिन के भीतर ही इसे तोड़ लिया जाना चाहिए।

फसलबाज़ार

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