परिचय:- अनानास विश्व प्रसिद्ध तथा महत्वपूर्ण फलों में से एक है। इसकी खेती मुख्य फसल या अन्तर फसल के रूप में की जा सकती है। यह स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण फसल है।
इस फल में सभी प्रकार के लवण तथा विटामिन ए, बी एवं सी पाये जाते हैं। इसका सीधे उपयोग में लाने से अनेक अलग प्रकार जैस सिरप, पेस्ट्री फैक्ट्री, रस, जैम, स्क्वैश, नेक्टर इत्यादि में किया जाता है।

अनानास के सघन बागवानी के फायदे:- अन्य फसलों के उपज में वृद्धि होती है। खरपतवार में कमी आती है। सघन पौधे होने के कारण फलों को धूप से क्षति नहीं होती है। पौधो की संख्या में वृद्धि सघन रहने से तेज हवा का प्रभाव कम, वाष्पीकरण में कमी।
क्षेत्र:- भारत में अनानास की वाणिज्यिक खेती केवल चार दशकों से बड़े पैमाने पर प्रारंभ किया गया है। अनानास की खेती मध्यम वर्षा और अनुपूरक सुरक्षात्मक सिंचाई के साथ आंतरिक मैदानी इलाकों में व्यावसायिक तौर पर विकसित किया जा सकता है।
जबकी उच्च वर्षा वाले प्रायद्वीपीय भारत और उत्तर-पूर्वी के पर्वतीय क्षेत्रों में से नम तटीय क्षेत्रों में इसकी खेती की जा रही है।
छोटे पैमाने पर इसकी खेती गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, बिहार और उत्तर प्रदेश में अपनी पहचान बनाने लगी है।
वहीं बड़े पैमाने पर इसे मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, केरल , कर्नाटक और गोवा में उगाया जाता है।
मृदा:- अनानस को किसी भी प्रकार मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है जिसका पी एच मान 5.5 से 6.0 हो आदर्श माना जाता है। यह रेतीले जलोढ़ या लेटराइट मिट्टी में अधिक विकसित होता है।
जलवायु:- भारी वर्षा वाला क्षेत्र अनानास के विकास के लिए सबसे अच्छा होता है। जहाँ वर्षा 500 मिली मी खेती की जा सकती है। हालांकि आदर्श वर्षा प्रति वर्ष 1500 मिली मी है।
फल के लिए कम तापमान, चमकदार धूप और कुल छाया हानिकारक होता है।
मौसम:-यह मूल रूप से एक नम उष्णकटिबंधीय है। यह मैदानों में और ऊंचाई, दोनों में अच्छी तरह से बढ़ता है।
यह न तो बहुत ही उच्च तापमान और न ही बहुत ठंढ सहन कर पाता है। अनानस फरवरी से अप्रैल तक फूल और जुलाई से सितंबर तक फल लगने का मौसम है।
सिंचाई:- अनानास के पौधे को अधिक नमी की आव्यशकता होती है, इसलिए जाड़े में 10 दिनों पर एवं गर्मी में 6-7 दिनों में सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।
अनानास की रोग से सुरक्षा, खाद एवं उर्वरक।
खाद एवं उर्वरक:- प्रति हेक्टेयर 200 कुंतल गोबर की सड़ी हुई खाद अथवा कम्पोस्ट डालना चाहिए। इसके अतिरिक्त 680 किग्रा अमोनियम सल्पफेट, 340 किग्रा फास्फोरस तथा 680 किग्रा साल में दो बार डालना चाहिए।
खाद दो बार पहली बार मानसून के आने पर तथा दूसरी बार बरसात के खत्म होने पर डालना चाहिए।

किट तथा रोग से सुरक्षा:- अनानास बहुत ही सख्त पौधा होता है, जिस पर कीड़े एवं बीमारियों का कम प्रकोप होता है।
इसमें मुख्यत: मिली बग और जड़ सड़न रोग होने की संभावना होती है।
रोकथाम के लिए परामर्श अनुसार उचित कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए।
जड़ सड़न से बचने के लिए रोपने के पहले पुत्तलों की जड़ों के पास से पीली पत्तियों को हटा दे। इसके बाद उन्हें उपचारित करने हेतु पोटाशियम परमैगनेट के 5 प्रतिशत या एगेलौल के घोल में छोटे सिरे को डुबोकर 4-5 दिनों तक धूप में सुखाये।
खरपतवार नियंत्रण एवं मिट्टी चढाना:- खरपतवार नियंत्रण हेतु हाथ से निंदाई-गुड़ाई करें, अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में जिनमे हरियाली एवं घास बहुत अधिक होती है, वहां रासायनिक रूप से नियंत्रण हेतु प्रोमोसिका तथा डाईयूराॅन की दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा उपयोग करें।
रसायन का प्रयोग करते समय नमी पर्याप्त होनी चाहिये। निंदाई के साथ-साथ पौधों में मिट्टी चढायें जिससे कि पौधे उचित फल-भार ग्रहण कर सकें।
वर्ष में दो से तीन बार निदाई-गुड़ाई तथा मिट्टी चढाना आवश्यक है। मिट्टी चढाते समय यह ध्यान रखें कि मिट्टी में हृदय वाला भाग न दबे, प्रत्येक सिंचाई के बाद हल्की गुड़ाई अवश्य करें।
कांट-छांट:- अनानास के पौधे के भूस्तरीय और स्लिप्स को समय-समय पर काटते रहें अन्यथा इनकी वृद्धि से पौधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
भूस्तरीय जड़ों के अच्छे विकास के लिए पहली फसल के बाद मिट्टी को चढ़ाया जाना चाहिए।
कटाई और तुड़ाई:- सामान्यतः पौधों को रोपने के लगभग 15 से 18 महीने बाद फूल आते है। पुष्पन के 4-5 महीने बाद फल लगने लगते है।
फल 80 प्रतिशत तक परिप्कव हो जाने के बाद इसे तोड़ा जा सकता है। लेकिन खाने के लिए पूरी तरह से पकने के बाद ही इनका प्रयोग करें।
भंडारण:- अनानास के फलों को अधिक समय तक भंडारित नहीं किया जा सकता है। तोड़ने के 4 से 5 दिनों के अंदर ही इसका उपयोग कर लेना चाहिए।
आज के बदलते परिवेश में अनानास एक नगदी फसल के रूप में अपनी जगह बनाने में सफल है। जिसकी सफलता किसानों को अपने आर्थिक स्थिति को सुदृढ करने में अत्यंत महत्वपूर्ण है।