चकोतरा की खेती, फायदे तथा व्यापारिक लाभ।

चकोतरा एक फल है, जो उस निम्बू-वंश का सबसे बड़ी जातियों में से एक है। चकोतरा का फल जब कच्चा होता है तब हरा और पकने के बाद हल्का हरा या पीला हो जाता है। इसका स्वाद हल्का खट्टा-मीठा होता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्वी एशिया क्षेत्र की जन्मी हुई जाति है और भारत में इसकी खेती झारखंड में की जा सकती है।

परिचय:- चकोतरा एक फल है, जो उस निम्बू-वंश का सबसे बड़ी जातियों में से एक है। चकोतरा का फल जब कच्चा होता है तब हरा और पकने के बाद हल्का हरा या पीला हो जाता है। इसका स्वाद हल्का खट्टा-मीठा होता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्वी एशिया क्षेत्र की जन्मी हुई जाति है और भारत में इसकी खेती झारखंड में की जा सकती है।

इस फल में पोटैशियम और लाइकोपीन के साथ कई पोषक तत्व, विटामिन ए, विटामिन सी और उच्च मात्रा में फाइबर होते है। इसके अलावा इसमें कैल्शियम, शर्करा, सिट्रिक एसिड, बीटा कैरोटीन और फास्फोरस भी मौजूद होता है लेकिन सिट्रिक एसिड अधिक और शर्करा कम मात्रा में होती है।
चकोतरा

किस्में:- इसकी किस्मों में से कुछ किस्में मार्स सीडलेस, गंगानगर रेड, रूबी रेड, डंकन, फोस्टर, थाम्पसन, मार्श आदि है।

फायदे:- इस फल में पोटैशियम और लाइकोपीन के साथ कई पोषक तत्व, विटामिन ए, विटामिन सी और उच्च मात्रा में फाइबर होते हैं। इसके अलावा इसमें कैल्शियम, शर्करा, सिट्रिक एसिड, बीटा कैरोटीन और फास्फोरस भी मौजूद होता है लेकिन सिट्रिक एसिड अधिक और शर्करा कम मात्रा में होती है।

इसके कई फायदे है जैसे की यह वजन कम करने में, थकान दूर करने में, पेट संबंधी समस्याओं में, आंखों के लिए, कोलेस्ट्रॉल स्तर को कम करने में, बुखार, मलेरिया, शुगर, मूत्र समस्याओं में अच्छा होता है। इसके साथ ही यह गंभीर रोगों जैसे कि कैंसर, हृदय रोग, ट्यूमर के गठन से भी मदद करता हैं।

नुकसान:- इसमें कुछ ऐसे रसायन हैं जो कुछ दवाओं का असर को कम कर देते हैं या उनसे मिलकर रासायनिक यौगिक बना देते हैं जो शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है इसीलिए कोई दवाई के साथ इसे खाने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह ले लें।

जलवायु:- इसकी खेती के लिए उपोष्ण कटिबंधीय अर्द्धशुष्क जलवायु उपयुक्त होती हैं और यह ज्यादा ठंड और पाला नहीं सह सकते।

मिट्टी:- इस के लिए हल्की एवं मध्यम उपज बलुई दोमट मिट्टी और जलनिकास वाली लाल लैटराइट मिट्टी उपयुक्त होता है, जिसमें अम्लीय पी.एच. मान हो और जलनिकास प्रबंध हो।

खेत की तैयारी:- खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई कर खेत को समतल और भुरभुरा बना ले जिससे खेत में मौजूद खरपतवार खत्म हो जाये और फिर गड्ढो की खुदाई कर गड्ढो में खाद एवं वर्मी कम्पोस्ट डाल पौधों की रोपाई करना चाहिए।

खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई कर खेत को समतल और भुरभुरा बना ले जिससे खेत में मौजूद खरपतवार खत्म हो जाये और फिर गड्ढो की खुदाई कर गड्ढो में खाद एवं वर्मी कम्पोस्ट डाल पौधों की रोपाई करना चाहिए।
चकोतरा की खेती

खाद एवं उर्वरक:- प्रतेक पौधों के लिए तैयार गड्ढो के लिए प्रति वर्ष 20-25 किलो गोबर, 1-1.5 किलो यूरिया, 1-1.5 किलो फास्फोरस और 1/2-1 किलो पोटाश देना चाहिए। फलदार पौधे को प्रति पौधे 200 ग्राम ज़िंक सल्फेट और 100 ग्राम बोरान खाद देना चाहिए।

बुआई:- नए पौधे को जुलाई-अगस्त में सर्वप्रथम बीजों द्वारा नर्सरी में तैयार करने के बाद खेत में रोपा जाता है। इसे बीज और कलम विधि द्वारा 5X5 मीटर की दुरी में बोया जाता है।

सिंचाई:- चकोतरा के पौधों के विकास के लिए खेत में नमी की आवश्यकता होती हैं इसीलिए पहली सिंचाई पौधा रोपने के तुरंत बाद करें। उसके बाद खेत को नम रखने के लिए जरुरत पड़ने पर सिचाई देते रहे।

खरपतवार नियंत्रण:- खरपतवार की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार समय समय पर निराई गुड़ाई करना चाहिए जिससे पौधे के विकास में कोई बाधा ना हो।

कटाई-छटाई:- चकोतरा के पौधों के विकास और अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उसका देखभाल करना जरुरी है इसीलिए समय-समय पर पौधों की कटाई-छटाई करते रहना चाहिए।

फसल की कटाई:- जब फलों का रंग पीला और आकर्षक दिखाई दें और जब वे पूर्ण आकार में आ जाये तब फल को डंठल सहित तोड़ लेना चाहिए इससे फल अधिक समय तक ताजा रहता है। बारिश के दौरान फलों की तुड़ाई नहीं करनी चाहिए।

उपज और भंडार:- इसे साफ कपड़े से साफ करके छायादार स्थान पर सूखा दें और फिर उसे किसी हवादार बॉक्स में सूखी घास के साथ बॉक्स को बंद कर बाज़ार में बेचने के लिए भेज सकते है। चकोतरा के एक पौधे से प्रति वर्ष लगभग 2-3 हजार फल उपज प्राप्त होती है।

फसलबाज़ार

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