गिलोय की खेती, फायदे तथा व्यापारिक लाभ।

गिलोय एक जड़ी-बूटी है, जो भारत के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पायी जाती है। भारत में गिलोय को तीन अमृत पौधों में से एक माना जाता है। अमृत जिसका मतलब है अमरता का मूल क्युकी यह विभिन्न बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होता आया है। यह कई लम्बी टहनियों वाली शाखाओं के सहारे बड़े पैमाने पर फैल कर झाड़ी पर चढ़ता है।

परिचय:- गिलोय एक जड़ी-बूटी है, जो भारत के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पायी जाती है। भारत में गिलोय को तीन अमृत पौधों में से एक माना जाता है। अमृत जिसका मतलब है अमरता का मूल क्युकी यह विभिन्न बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होता आया है। यह कई लम्बी टहनियों वाली शाखाओं के सहारे बड़े पैमाने पर फैल कर झाड़ी पर चढ़ता है।

गिलोय जिस पेड़ के सहारे ऊपर चढ़ती है, उस पेड़ के कुछ गुण भी अपने अन्दर ले लेता है। इसकी पत्तियाँ हृदय के आकार की और फल लाल रंग की होती हैं। इन पर जब पत्ते नहीं होते तब फूल खिलते है, इनके फूल उभयलिंगी होते हैं, आमतौर पर नर फूल गुच्छे में और मादा फूल अकेले में खिलते हैं। इसका लाल रंग का फल होता है। इसका तना, जडें, फल और पत्ते सब में औषधि पाये जाते है। इस पर राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की तरफ से 30% तक की सब्सिडी दी जाती है।

फायदे:- गिलोय के रस में त्रिफला व शहद मिलाकर काढ़ा बना कर पीने से और गिलोय के रस में शहद व सेंधा नमक मिलाकर पीस कर काजल की तरह लगाने से आँखों की समस्या दूर हो जाती है।

गिलोय व सोंठ के चूर्ण सूँघने से या इसकी चटनी बना के दूध के साथ लेने से हिचकी ठीक हो जाती है।

हरड़, गिलोय तथा धनिया को 20 ग्राम प्रत्येक चीज़ को लेकर 1/2 लीटर पानी में उबालें और जब 1/4 पानी रह जाय तो इस काढ़ा में गुड़ डालकर सुबह और शाम पीने से बवासीर की बीमारी ठीक होती है।

गिलोय, अश्वगंधा, बलामूल, शतावर, अडूसा, दशमूल, पोहकरमूल तथा अतीस को बराबर भाग लेकर इसका काढ़ा बना कर 20-30 मिली काढ़ा को सुबह-शाम लेने से टीबी की बीमारी ठीक होती है।

गिलोय को इम्युनिटी बूस्टर कहा जाता है जिससे वायरस से होने वाली बीमारियों शरीर की रक्षा होती है। गिलोय नुकसानदायक बैक्टीरिया से लेकर पेट के कीड़ों को भी खत्म करती है।

इसके अलावा इससे डेंगू, पीलिया, अस्थमा, खून की कमी, मेटाबॉलिज्म सिस्टम, बुखार, खांसी, जुकाम और गैस्ट्रोइंटसटाइनल के समस्या में भी मदद करती है।

किसी विशेष बीमारी या समस्या में अपने डॉक्टर से बात करने के बाद ही इसका सेवन करे। अधिक मात्रा में इसका सेवन परेशानी बन सकती है।

जलवायु एवं मिट्टी:- इसकी खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु में जहाँ की मिट्टी मध्यम काली से लाल बलुई दोमट हो वहां की जाती है।

गिलोय को इम्युनिटी बूस्टर कहा जाता है जिससे वायरस से होने वाली बीमारियों शरीर की रक्षा होती है। गिलोय नुकसानदायक बैक्टीरिया से लेकर पेट के कीड़ों को भी खत्म करती है।
गिलोय की खेती

खेत की तैयारी:- सबसे पहले खेत की जुताई कर देना चाहिए जिससे खेत में मौजूद खरपतवार खत्म हो जाये। उसके बाद प्रति हेक्टेयर 10 टन उर्वरक और नाइट्रोजन की आधी खुराक (75 किलो ) अच्छी तरह खेत में मिला दे।

बुआई:- इसके लिए जून -जुलाई में तनों की कटाई कर दो गांठों सहित 6 -8 इंच की कटिंग बना के उसे 24 घंटों के अंदर, 3 * 3 मीटर की दुरी रखते हुए सीधे खेत में रोपा जाता है। एक हेक्टेयर खेत में पौधा रोपने के लिए 2500 कलमों की जरूरत पड़ती है। गिलोय के पौधे को उगाने के लिए किसी तरं की सहारे की जरुरत होती है जो की किसी लकड़ी की खपच्चियों या झाड़ी या पेड़ के इस्तेमाल से मिल सकता है।

गिलोय जिस पेड़ के सहारे ऊपर चढ़ती है, उस पेड़ के कुछ गुण भी अपने अन्दर ले लेता है इसीलिए सहारा देने के लिए किसी ऐसे पेड़ का इस्तेमाल अच्छा होता है जिसमे औषिधिक गन हो जैसे कि नीम।

सिंचाई:- शीत और गर्म मौसम के समय ज्यादा सिंचाई लाभकारी रहेगी। पौधे लगाने के शुरुआत में इसे अच्छे से पानी दे और इसकी देखभाल करे।

निराई गुड़ाई:- अच्छी बढ़त के लिए करीब दो से तीन बार निराई – गुड़ाई की जरूरत होती है जिससे कतारों में पौधों के बीच की दूरी को खरपतवार से मुक्त रखा जा सके अन्यथा यह गिलोय के पौधे के विकास को कम कर सकती है।

कटाई:- तने की कटाई पतझड़ के समय जब यह 2.5 सेंटीमीटर से ज्यादा का हो जाये तब करना चाहिए। तने की कटाई के बाद इसे छोटे टुकड़ों में कांट कर और छाया में सुखाना चाहिए और जूट के बोरें में भर कर ठंडे और हवादार भंडार गोदाम में रखना चाहिए। 2 साल में इसके पौधे से लगभग 1500 किलो ताजा तने प्राप्त हो जाते है।

फसलबाज़ार

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