परिचय:- कमरख अंग्रेजी में जिसे स्टार फ्रूट और वैज्ञानिक में कारामबोला के नाम से जाना जाता है, एक खट्टा-मीठा फल है जो आकार पांच-बिंदु वाले तारे के आकार के जैसा होता है। इस फल के गूदे में हल्का खट्टा स्वाद होता है और इसका छिलका भी खाने योग्य होता है।
इसका रंग पीला या हरा होता है और यह दो मुख्य प्रकार के हैं: एक छोटी, खट्टी और एक बड़ी, मीठी किस्म। इसे आम तौर पर कच्चा खाया जाता है, लेकिन पका के भी खाया जा सकता है या फिर गार्निश और जूस भी बनाया जा सकता है।
यह मूल रूप से उष्णकटिबंधीय दक्षिण पूर्व एशिया से है, जहां सदियों से इसकी खेती की जाती है। इसकी व्यावसायिक रूप से खेती भारत, दक्षिणी चीन, दक्षिण पूर्व एशिया, ताइवान और संयुक्त राज्य अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य में की जाती हैं।
फायदे:- कच्चा कमरख में 91% पानी, 7% कार्बोहाइड्रेट, 1% प्रोटीन है, और बहुत ही कम मात्रा में फैट होता है। इसके अलावा इसमें विटामिन बी, विटामिन सी, सोडियम, पोटेशियम, आयरन और कई महत्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट भी होता हैै। इसे खाने से शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है, पेट से जुड़ी समस्या, दिल के लिए, कैंसर क खतरा कम करने में और हानिकारक बैक्टीरिया को कम करने में मदद करता है।
नुकसान:- इसमें कैरमबॉक्सिन और ऑक्सालिक एसिड होता है जो किडनी खराब, किडनी स्टोन या किडनी डायलिसिस उपचार से पीड़ित व्यक्तियों के लिए हानिकारक होता है। उनके द्वारा कमरख खाने से हिचकी, उल्टी, मतली, मानसिक भ्रम और कभी-कभी मृत्यु भी हो सकती है।
जलवायु:- इसकी खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त है। मध्यम तापमान अच्छा और कम तापमान भी पौधों को नुकसान पहुंचा सकता है। अच्छी वृद्धि के लिए पौधों को धूप देने की और भारी हवाओं से बचने की जरुरत होती है।
मिट्टी:- कमरख की खेती के लिए लिए कोई विशिष्ट मिट्टी नहीं है लेकिन उस मिट्टी में अच्छी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ होने चाहिए और वह मिट्टी नम नहीं होनी चाहिए और जिसका pH मान 5.5-6.5 हो। मिट्टी अच्छी तरह से जल निकासी में सक्षम होना चाहिए।
खेत की तैयारी:- खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत से खरपतवार, कंकड़, पत्थर आदि भी हटा दे और फिर खेत को 2-3 बार जुताई कर दे जिससे मिट्टी चिकनी स्थिति प्राप्त कर लेगा। फिर खेत में लगभग 8*8 मीटर की दुरी रखते हुए गड्ढे खोदे और प्रत्येक गड्ढे को 5 किलो का मिट्टी और खाद के मिश्रण से भर दे। इन गड्ढों में पौधा रोपने के बाद उसे मिट्टी से कवर कर देना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक:- खेत में खाद एवं उर्वरक देने से पहले खेत का परीक्षण करना चाहिए जिससे हमें मिट्टी की जरुरत का पता चल सके और फिर उसमे आवश्यक अनुसार पोषक तत्व देना चाहिए। खेत को जैविक खाद उर्वरक दिया जाना चाहिए और जितनी जरुरत हो उतनी ही देनी चाहिए। बहुत अधिक मात्रा में उर्वरकों को भूमि को नुकसान पहुंचा सकते है। प्रति वर्ष 100 किलो गोबर प्रति पेड़ काफी होते है।
सिंचाई:- इसकी खेती गर्मियों में की जाती है इसीलिए अच्छे से पानी देने की जरुरत है। पहली सिंचाई पौध रोपने के तुरंत बाद देनी चाहिए और फिर गर्मियों में हर 15 दिन बाद और ठंढ में 1 महीने के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए। वर्षा के समय बार-बार सिंचाई की जरुरत नहीं होती लेकिन वर्षा का पानी खेत में जमा ना रहे इसलिए खेत में जल निकासी प्रबनध अच्छा करे। खेत में ज्यादा पानी होने से जड़ को नुकसान पंहुचा सकता है।
निराई:- खेत में नियमित रूप से हर 3-4 सप्ताह में निराई की जानी चाहिए। पौधों के चारों ओर 1 सेमी का दायरा खरपतवार रहित होना चाहिए नही तो वह पौधों के विकास को कम कर सकते है।
फल-फूल लगने का समय:- अगर इसकी पौधे को पुरे साल धुप और गर्मी मिले तो इसमें पुरे साल फल और फूल लग सकते है। दक्षिण भारत में जनवरी और सितम्बर- ओक्टुबर के महीने में और उत्तर भारत में नवंबर- मार्च के महीने में फल आते है।
फसल की कटाई:- जब कमरख के फल पक कर अपने रंग बदल दे तब उसकी कटाई आराम से करनी चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि फल को नुक्सान ना पहुंचे। कटाई के बाद धो कर साफ कर फिर बाजार में बेचने के लिए भेजना चाहिए।
उपज:- कमरख के के तैयार पेड़ से प्रति वर्ष लगभग 100 किलो फल प्राप्त हो जाते है। इसकी मांग स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में है जिस वजह से इसकी कीमत अच्छी मिलती है।