चीकू की खेती, फायदे तथा व्यापारिक लाभ।

चीकू जिसे सपोटा भी कहा जाता है भारत का लोकप्रिय फलों में से एक है जो सपोटेसी के परिवार से है। एक कच्चे फल की बाहरी त्वचा सख्त होती है और यह अपने तने से सफेद रस छोड़ता है जबकि पके फल की त्वचा ढीली होती है और यह अपने तने से सफेद रस नहीं छोड़ता है।

परिचय:- चीकू जिसे सपोटा भी कहा जाता है भारत का लोकप्रिय फलों में से एक है जो सपोटेसी के परिवार से है। इस कच्चे फल की बाहरी त्वचा सख्त होती है और यह अपने तने से सफेद रस छोड़ता है जबकि पके फल की त्वचा ढीली होती है और यह अपने तने से सफेद रस नहीं छोड़ता है।

फलों के अंदर का गूदा हल्के पीले रंग से लेकर भूरे रंग का होता है, जिसकी बनावट पके हुए नाशपाती के समान होती है और प्रत्येक फल में 1-6 बीज होते हैं जो काले रंग के कठोर और चमकदार होते हैं। चीकू शीतल, पौष्टिक और मीठे होते हैं और इसका इस्तेमाल खाने के साथ-साथ जैम व जैली आदि बनाने के लिए भी किया जाता है।

चीकू

यह दक्षिणी मेक्सिको और मध्य अमेरिका के मूल निवासी है और भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया आदि देशों में भी बड़ी मात्रा में उगाया जाता है। भारत में इसको कर्नाटक, केरला, तामिलनाडू, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में उगाया जाता है।

फायदे:- इस फल में भरपूर मात्रा में विटामिन-बी, सी, ई, कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। इसके इस्तेमाल से इम्यूनिटी मजबूत करने में, वजन कम करने में, हड्डि मजबूत करने में, कब्ज को दूर करने में, आँखों के लिए, तनाव कम करने में, सर्दी और खांसी के लिए फायदेमंद माना जाता है।

किस्में:- देश में चीकू की 41 किस्में हैं, जिसमें काली पट्टी, भूरी पट्टी, पीली पट्टी, ढोला दीवानी, झूमकिया, बारामासी और क्रिकेट वाल आदि किस्में अधिक उगाई जाती है।

जलवायु:- चीकू उष्ण कटिबन्धीय फल है और यह गर्म जलवायु और 1.25 -2.50 मीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रो में अच्छे से उगाया जा सकता है। इसकी खेती और इसके फल को अच्छे से विकास करने के लिए 11°- 38° सेल्सियस तापमान और 70% आर एच आर्द्रता वाली जलवायु अच्छी मानी जाती है। ऐसी जलवायु में 2 बार उपज प्राप्त हो सकता है जबकि शुष्क जलवायु में केवल 1 बार उपज प्राप्त होता है। यह पाले के प्रति अधिक संवेदनशील होती है इसीलिए शुरूआती समय में इसे इससे बचा के रखे।

मिट्टी:- इसकी खेती के लिए उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी.एच. मान 6-8 हो उपयुक्त होता है। खेत में जल निकास का अच्छा प्रवंधन होना चाहिए।

प्रवर्धन की विधि:- चीकू का प्रवर्धन बीज, वायु लेयरिंग, इनारचिंग और ग्राफ्टिंग के जरिये किया जा सकता है लेकिन व्यवसायिक खेती के लिए इनारचिंग का तरीका उत्तम है। इसके लिए खिरनी (रायन) मूल वृन्त का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह पौधे की उत्पादकता, शक्ति और दीर्घायु के लिए अच्छा होता है।

नए बीजो को वर्षा ऋतु में क्यारियों में बोया जाता है और 1 साल बाद जब पौधे बड़े होते है तो इन्हे मिट्टी के साथ ही छोटे गमले, 10-15 सेंटीमीटर व्यास या पोलीथीन की थैलियों में लगा दिया जाता है। जब यह पेंसिल जितने मोटे हो जाते है तो इन पर भेट कलम बांधने का का काम किया जाता है।

इसको लगाने के लिए दिसंबर से जनवरी का महीना और अच्छा होता है जिससे पौधे खेत में रोपने के लिए अगले साल जून से जुलाई तक तैयार हो जाते है।

पौधा रोपण:- अप्रैल से मई में रेतीली मिट्टी में 606060 सेंटीमीटर और भारी मिट्टी में 100100100 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे तैयार कर उसमे 10 किलो गोबर, 1.5 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश, 3 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट, 10 ग्राम फोरेट धूल या 1 किलो नीम की खली भर दे। 1 महीने बाद मानसून में पौधों को 2 पंक्ति के बीच की दुरी 8 मीटर और 2 पौधों के बीच की दुरी 8 मीटर रखते हुए रोप दे।

चीकू की खेती

खाद एवं उर्वरक:- अधिक उपज प्राप्त करने के लिए प्रतिवर्ष प्रति पौधा 50 किलो गोबर, 500 ग्राम फास्फोरस, 1000 ग्राम नाइट्रोजन और 500 ग्राम पोटाश आवश्यक होती है। इनकी खुल मात्रा में से आधा मानसून के शुरुआत में गड्ढ़ों में डाल दे और बचे हुए सितंबर से अक्टूबर में डाल दे।

सिंचाई:- पहली सिंचाई पौध रोपने के तुरंत बाद और फिर हर 3 दिन पर सिंचाई करे। पौधा जब थोड़े बड़े हो जाये तो 10-15 दिन पर और सर्दियों के मौसम में 30 दिन के अंतराल पर पानी दे। सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली का इस्तेमाल पानी की बचत होती है। इससे सर्दियों में 3 घंटा 30 मिनट और गर्मियों में 5 घंटा 40 मिनट तक चलने की जरुरत होती हैं।

अंन्तर फसल:- अन्तर फसल के लिए केला, टमाटर, पपीता, बैंगन, फूलगोभी, गोभी, दलहनी और कददू आदि चीकू का पौधा रोपने के शुरुआती समय में लगाई जा सकती है।

चीकू की खेती में होने वाले कीट, रोग एवं रोकथाम।

फल में छेद, पत्तियों के गिरने और फल से गोंद के निकलने पर क्यूनालफ़ोस (0.05%) या कार्बराईल (0.2 %) का छिड्काव करे और उसके बाद फलो को कोमल कपड़े या बटर पेपर से ढक देते हैं।

अग्रिम कलिका और पत्तियों के नीचे सफेद आटे का महीन चूर्ण दिखने में फेंनथोइड (0.05%) या डाईमेक्रोन की 30 मिली लीटर मात्रा 16 लीटर पानी में मिला के छिडके और अंडे और कीट इकट्ठा करके नष्ट कर दे।

पीले भूरे रंग का कीट जिसके ऊपर काले धब्बे और लंबे बाल हो, की उपस्थिति पर क्यूनालफोस 25 ई सी या क्लोरोपायरीफास 20 ई सी या फोसेलॉन 35 ई सी की 2 मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल छिडके।

पत्ती में कई छोटे, सफ़ेद केन्द्रों के साथ गुलाबी भूरे धब्बे पड़ जाने पर 15 दिनों के अंतराल पर डाईथेन जेड- 78 (0.2 %) छिडके। सूटी मोल्ड कवक मिली बग कीट से स्रावित मधु पर विकसित होता है और धीरे-धीरे पूरी पत्ती पर फैल जाता है। इससे बचाव के लिए 100 ग्राम स्टार्च या मैदा को 20 लीटर गरम पानी में मिला कर ठंडा होने के बाद छिडके।

फसल की कटाई:- जलवायु के आधार पर चीकू के फल वर्ष में दो बार जनवरी से फरवरी तक और फिर मई से जुलाई तक आते है। उपयुक्त प्रबंध के बाद प्रति हेक्टेयर 15 से 23 टन फल प्राप्त किये जा सकते है। फल पकने के बाद उसका रंग हरे से भूरे हो जाता है तब उसे तोड़ लेना चाहिए। फलों को जल्दी पकाने के लिए उसे ईथोफेन या इथल रसायन के (1000 पी पी एम) घोल में डूबाकर, 20° से 25° सेल्सियस तापमान पर रात भर रखे।

फसलबाज़ार

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