परिचय:- सीताफल को शरीफा और अंग्रेजी में कस्टर्ड एप्पल और शुगर एप्पल भी कहा जाता है। यह अन्य फलों से अलग होता है जिसमें बाहर से गांठदार खंडों से बना एक मोटा छिलका होता है जो की पहले नीले-हरे रंग का और फिर हल्का हरा होता है और अंदर से फल सफेद और मुलायम होता हैं।
यह ठंड के मौसम में मिलता है और खाने में बहुत ही मीठा और स्वादिष्ट फल होता हैं। सीताफल में औषधीय गुण भी होते हैं जिस वजह से इसका इस्तेमाल औषधि के रूप मे किया जाता हैै। इसके अलावा सीताफल से स्वीट डिश और आइस- क्रीम बनाने के लिए भी किया जाता है और इसके बीज को सुखाकर तेल निकाल के ऑईल पेंट और साबुन बनाया जाता है।
यह फल एनोना स्क्वामोसा का है और वेस्ट इंडीज और अमेरिका में उष्णकटिबंधीय जलवायु का मूल निवासी है। ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार, मैक्सिको, चिली, इजरायल, ब्राज़ील, स्पेन व फिलीपींस आदि देशों में इसकी खेती को जाती है और भारत में मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखंड, आंध्रप्रदेश व आसाम आदि राज्यों में मिल जाता हैं।
फायदे:- सीताफल में पोटैशियम, विटामिन ए, विटामिन सी, राइबोफ्लोविन, कॉपर, आयरन, फाइबर और मैग्निशियम मौजूद होता है। जिस वजह से इसे खाने से अस्थमा में, दिल की बीमारियों में, आंखों की रोशनी को बढ़ाने में, गर्भवती महिलाओं के लिए, दिमाग के लिए, ब्लड प्रेशर को कम करने और डायबिटीज के मरीजों के लिए भी काफी फायदेमंद होता है।
किस्में:- इसके कुछ उत्तम उपयुक्त किस्में बालानगर, लाल सीताफल, मेमथ, अर्का सहान आदि है।
जलवायु:- यह सभी उष्णकटिबंधीय व उपोष्णकटिबंधीय जगहों पर उगाया जा सकता है। शुष्क जलवायु में इसकी खेती के लिए अच्छा होता है और लंबे समय तक तेज सर्दी बुरा होता है क्योंकि ठंड मे इसके फल कड़े हो जाते हैं और पकते नहीं। फूल आने के समय शुष्क मौसम लेकिन 40 ° से कम तापमान होना चाहिए क्योंकि इससे ज्यादा में फूल झड़ कर गिर जाते है।
मिट्टी:- इसकी खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन दोमट मिट्टी जिसका पी.एच. मान 5.5-7 हो उपयुक्त होता है। खेत में जल निकास का अच्छा प्रवंधन होना चाहिए।
पौधा रोपण:- सीताफल का पौधा कलम के तरीके से लगाना चाहिए जिससे फल 2 वर्ष बाद से आना शुरू हो जाये इसके लिए किसी रजिस्टर्ड नर्सरी से एक तने वाले, कम ऊँचाई वाले, सीधे तथा स्वस्थ पौधे खरीदे। पौधे जुलाई-अगस्त या फरवरी-मार्च में शाम के समय गड्ढे तैयार कर उसमे रोपेे।
खाद एवं उर्वरक:- इसे अनुपजाऊ या कमजोर मिट्टी में भी लगाया जा सकता है लेकिन अच्छा उत्पादन के लिए समय समय पर आवश्यक मात्रा में जैविक तथा रासायनिक उर्वरक डाले। पौधारोपण के समय 10 किलो गोबर,
50 ग्राम अमोनियम सल्फेट, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 25 ग्राम पोटाश डाले। 2-3 साल बाद इसकी मात्रा दुगुना कर दे और फिर जरुरत के अनुसार खाद दे।
सिंचाई:- सितफल के पौधे को काफी कम सिंचाई की जरूरत होती हैं लेकिन फिर भी पहली सिंचाई पौध रोपने के तुरंत बाद और फिर गर्मी में 15 दिन पर और ठण्ड में 1 महीने में अच्छे से सिंचाई कर देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण:- पौधा रोपण से पहले खेत तैयार करते वक़्त एक बार जुताई करे और पौधा रोपने के बाद भी समय समय पर निराई गुड़ाई करना चाहिए जिससे खेत में मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाये।
कीट, रोग एवं रोकथाम:- इस पौधे से विशेष महक के कारण बहुत कम कीड़े लगते है और किसी प्रकार के रोग न के बराबर ही होती हैं। कभी कभी मिली बग पौधों की शाखाओ और पत्तियों को नुकसान पहुँचाते हैं रोकथाम के लिए 15 दिन के अंतर से 2-3 बार पैराथीयान का छिड़काव करे।
ध्यान दें:- अगर पौधों से फूल झड़ने लगे तो पानी देना बंद कर दे और फल पकने के बाद सड़ने लगते हैं इसलिए इन्हे सड़ने से पहले तोड़ ले। कभी कभी कीड़े न होने की वजह से फूलों में निषेचन क्रिया अच्छे तरीके से नहीं हो पाती इसके लिए रोयेंदार कपड़े को हाथ में पहन कर फूलों पर हल्का हाथ घूमा कर हस्त परागण करे। गर्मी मे नियमित सिंचाई करे।
फसल की कटाई:- सीताफल लगने के 2-4 वर्ष बाद देना शुरू कर देते है और 14-15 वर्ष तक अच्छी उपज देते हैं। इसके फूल मार्च में जुलाई अगस्त तक आते हैं, फलों की तुड़ाई सितंबर – नवंबर में जब फल पक जाये तब करनी चाहिए।
पैदावार और लाभ:- शुरुआत में इसके पौधे से लगभग 50-60 फल आते हैं जो समय के साथ बढ़कर 100 हो जाते हैं। एक एकड़ में लगभग 500 पौधे लगाए जा सकते हैं जिसके अनुसार साल में लगभग 30-35 क्विंटल पैदावार हो सकती हैं। बाजार में चल रहे दाम को ध्यान में रखते हुए आपकी कमाई सालाना प्रति एकड़ से 1-1.5 लाख तक की कमाई हो सकती हैं।
सीताफल का पेड़ पूर्ण रूप से विकसित 4-5 साल में होता हैं इन कुछ सालों तक खेत में बची खाली जगहों पर कुछ सब्जी फसल, मुली, गाजर, धनिया इत्यादि लगाकर भी अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं।