परिचय:- डेयरी उद्योग के तहत पशुपालन हमारे देश में ग्रामीणों के लिए सिर्फ आमदनी का उत्तम जरिया भी रहा है। सही जानकारी के अभाव में अक्सर लोग पशुपालन का पूरा फायदा नहीं उठा पाते हैं। पशुपालन से संबंधित थोड़ा सा ज्ञान और सही दिशा में की गयी प्लानिंग बेहतरीन मुनाफे का रास्ता दिखा सकती है।
डेयरी उद्योग में दुधारू पशुओं को पाला जाता है, इसके तहत भारत में गाय और भैंस पालन को ज्यादा महत्व दिया जाता है। इस उद्योग में मुनाफे की संभावना को बढ़ाने के लिए पाली गयी गायों और भैंसों की नस्ल, उनकी देखभाल व रख-रखाव की बारीकियों पर ध्यान देना आवश्यक है।
शैक्षणिक योग्यता:- डेयरी उद्योग की बारीकियों को समझने के लिए प्रशिक्षण भी ली जा सकती हैं। कई संस्थान डेयरी उद्योग का प्रशिक्षण देते हैं। प्रशिक्षण लेने के लिए कोई निश्चित शैक्षणिक योग्यता अथवा आयु सीमा निर्धारित नहीं है।
डेयरी उद्योग को स्वरोजगार के रूप में अपनाने की इक्षा रखनेवाले इन संस्थानों में दाखिला ले सकते हैं। यदि डेयरी प्रोडक्शन के पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश लेना हो तो उम्मीदवार का 60 प्रतिशत अंकों के साथ बीएससी पास होना आवश्यक है।
फायदेमंद प्रजातियां:- भारत में लगभग 32 तरह की गायें पाली जाती हैं। गाय की प्रजातियों को तीन रूप में जाना जाता है, ड्रोड ब्रीड, डेयरी ब्रीड तथा ड्यूअल ब्रीड। नाम से ही पता चलता है की डेयरी ब्रीड को ही इस उद्योग के लिए चुना जाता है।
भारत दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से तीन तरह की भैंसें मिलती हैं, जिनमें मुर्रा, मेहसाणा और सुरती प्रमुख हैं। मुर्रा भैंसों की प्रमुख ब्रीड है, यह अधिकतर हरियाणा और पंजाब में पायी जाती है। मेहसाणा मिक्सब्रीड है तथा गुजरात और महाराष्ट्र में पायी जाती है।
इस नस्ल की भैंस प्रति माह में 1,200 से 3,500 लीटर दूध देती हैं। सुरती छोटी नस्ल की भैंस है, यह अमूमन गुजरात में पायी जाती है। इसकी क्षमता एक महीने में 1,600 से 1,800 लीटर दूध की है।
अक्सर डेयरी इन नस्लों की उचित जानकारी न होने के चलते किसान व्यापार में भरपूर मुनाफा नहीं कमा पाते। इसकी शुरुआत पांच से 10 गायों या भैंसों के साथ की जा सकती है। बाद में पशुओं की संख्या बढ़ायी जा सकती है।
डेयरी उद्योग में पशुओं की देखभाल तथा सरकारी मदद।
देखभाल विशेष जरूरी:- उचित मात्र में दुग्ध का उत्पादन करने के लिए गाय तथा भैंसों के स्वास्थ संबंधी हर छोटी-बड़ी बात का ख्याल रखना जरूरी है। पशु जितने स्वस्थ होते हैं, उनसे उतने ही दूध की प्राप्ति होती है तथा कारोबार अच्छा चलता है।
जानवरों को रखने के लिए खास जगह तैयार करनी होती है, जहां हवा के आवागमन की उचित व्यवस्था हो तथा सर्दी के मौसम में जानवर ठंड से बचे रहें। फिर बारी आती है पशुओं के आहार की, गायों या भैंसों को निर्धारित समय पर भोजन देना अत्यंत आवश्यक है।
इन्हें दो वक्त खली में चारा मिला कर दिया जाता है, तथा बरसीम, ज्वार व बाजरे का चारा दिया जाता है। बिनौले का इस्तेमाल करना दूध की वृद्धि के लिए अच्छा रहता है।
इस बात का ख्याल रखना भी जरूरी है कि पशुओं को दिया जानेवाला आहार बारीक, साफ-सुथरा हो, जिससे मवेशी भरपूर मात्र में भोजन करें। व चारे के साथ पानी की मात्रा पर ध्यान देना भी आवश्यक है।
गाय व भैंस 30 लीटर पानी प्रति दिन पी सकती हैं। इसके अलावा किसान को पशुओं की बीमारियों व दवाओं की समझ भी होनी चाहिए।
ले सकते हैं सरकारी मदद:- कई सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाएं डेयरी उद्योग के लिए 10 लाख रुपये तक की लोन उपलब्ध कराती हैं। इसके एनओसी, एसडीएम का प्रमाणपत्र, बिजली का बिल, आधार कार्ड, डेयरी का नवीनतम फोटो आदि जमा करना होता है।
वेरीफिकेशन के बाद संबंधित प्राधिकरण संतुष्ट हो जाता है, तो डेयरी मालिक को डेरी और पशुओं की संख्या के हिसाब से पांच से 10 लाख रुपये तक की राशि मुहैया करायी जाती है। समय- समय पर किस्तों का भुगतान करने पर कुछ किस्तें माफ भी कर दी जाती हैं।
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Pashupaln ke liye lon chaye
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