परिचय:- हरे प्याज को कंदीय फसल भी कहते हैं जिसकी जड़ या कंद छोटी होती है। इसकी पत्तियाँ लहसुन की पत्तियों के जैसे लम्बे चौड़े सीधी और नुकीले और तना सफेद होता है।
इसका इस्तेमाल सूप, सलाद, और सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। यह यूरोपियन देशों की प्रमुख फसल है जिसे अब हिंदुस्तान में भी उगाया जाता है।

हरे प्याज की खेती सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में और इसके अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात व कर्नाटक आदि में की जाती है। इसकी खेती साल में 2 बार– नवम्बर और मई में की जाती है।
फायदे:- हरे प्याज में कई पोषक तत्व जैसे की कैल्सियम, विटामिन, आयरन, कॉपर, मैग्नीशियम, पोटैशियम, मैगनीज थाइमीन आदि पाये जाते है। प्राचीन समय से चीन में इसका इस्तेमाल दवाइयों के रूप में किया जाता रहा है।
हरे प्याज खाने से आंखे स्वस्थ, दिल स्वस्थ, डायबिटीज कंट्रोल, कैंसर की रोकथाम, हड्डियां मजबूत करने में मदद मिलती है।
हरे प्याज की खेती के लिए जलवायु एवं भूमि का चयन।
भूमि:- इसकी खेती के लिए दोमट या हलकी बलुई दोमट, जीवांश युक्त मिट्टी जिसका pH मान 6-7 हो उपयुक्त माना जाता है।
जलवायु:- ठंडी जलवायु इस फसल के लिए उपयुक्त होता है। लम्बे समय तक की ठंढ में इसकी वृद्धि अच्छी होती है।
खेत की तैयारी:- खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले हल से या ट्रेक्टर से 2-3 जुताई कर दें जिससे सभी घास नष्ट हो जाये और मिट्टी बारीक हो जाये। 1-2 जुताई और कर दे जिससे मिट्टी भुरभुरा हो जाये और खेत में ढेले ना रहे।

बुआई का समय:- हरे प्याज के बुआई का समय सितंबर के मध्य से नवम्बर तक रहता है। पहाड़ी जगहों पे मार्च- अप्रैल तक का समय उचित होता है। सही समय पर खेती करने के लिए 5-6 किलो प्रति हेक्टर बीज प्राप्त होता है।
पौधा तैयारी:- हरे प्याज का पौधा बीज के द्वारा तैयार क्यारियों में बोआ जाता है। दो पंक्तियों के बीच 4-5 सेंटीमीटर की दुरी और दो बीज के बीच 1-2 मिलीमीटर की दूरी होनी चाहिए।
इसके बाद पंक्तियों में बारीक़ पत्ति का खाद छिड़क कर बीज को ढक दे और नमी होने तक सिंचाई करते रहे। 10-15 दिन में बीज अंकुरित और 25-30 दिन में रोपने के लिए तैयार हो जायेगा।
रोपाई की विधि:- जब पौधे 8-10 सेंटीमीटर के हो जाये तो उन्हें पंक्तियों में लगाना चाहिए। दो पंक्तियों के बीच 25-30 सेंटीमीटर की दुरी और दो पौधे के बीच 15 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए। हलकी नाली बना के भी इस पौधे को रोपा जा सकताहै।
सिंचाई:- पहली सिंचाई पौध रोपाई के बाद और उसके बाद हर 10-12 दिन के बाद करना चाहिए। इस तरह 10-15 सिचाई की जरुरत पड़ती है।
खाद एवं उर्वरक:- प्रति हेक्टर 8-10 टन सड़ी गोबर, 100 किलो यूरिया, 60 किलो पोटाश, 80 किलो फास्फोरस आदि डाले। गोबर को खेत की जुताई के समय मिलाये और यूरिया की आधी मात्रा और पोटाश, फास्फोरस की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय दे और अच्छे से मिट्टी में मिला दे। यूरिया की बचि मात्रा को 25-25 दिन के बाद 3 हिस्सो में डाले।
रोग एवं नियंत्रण:- इस पौधे में अधिक रोग नहीं होते। जरुरत के हिसाब के खाद और कीटनाशक छिड़क दे। समय समय पर खरपतवार को भी नष्ट करते रहे।
कटाई एवं उपज:- जब प्याज का तना 2-3 सेंटीमीटर मोटा हो जाये तो उखाड़ लेना चाहिए। पत्तियाँ सहित प्रति पौधे से 125-150 ग्राम उपज प्राप्त होता है। प्रति हेक्टर 400-500 क्विंटल उपज प्राप्त किया जा सकता है।