परिचय:- ज्वार अथवा जौ को इंग्लिश में सोरघम कहा जाता हैं। मूलतः भारत में इसकी खेती खाद्य तथा पशुओं के लिए चारा के रूप में की जाती है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के प्राध्यापक डॉ. गजेन्द्र सिंह तोमर के अनुसार ज्वार की खेती का भारत में तीसरा स्थान है।
यह उत्तर भारत में खरीफ के मौसम में और दक्षिणी भारत में रबी के मौसम में की जाती है। ज्वार की प्रोटीन में ल्यूसीन अमीनो अम्ल पौष्टिकता की दृष्टि से काफी पाई जाती है।
वहीं ल्यूसीन अमीनो अम्ल की अधिकता होने के कारण ज्वार खाने से लोगों में पैलाग्रा नामक रोग का प्रकोप हो सकता है। इसकी फसल अधिक बारिश वाली क्षेत्रों में होती है।
खेत की तैयारी:- इसकी फसल अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अधिक होती है। परंतु यह कम वर्षा में भी अच्छी उपज दे सकती है और कुछ समय के लिए जल जमाव भी सहन कर लेती है।
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 100 कुंतल प्रति हेक्टेयर गोबर की अच्छे से सड़ी हुई खाद मिला दें।
इसके बाद 4-5 बार देशी हल चलाकर मिट्टी को भुरभुरा कर लें। तथा पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए।
उपयुक्त किस्में:- ज्वार की फसल सभी प्रकार की भारी और हल्की मिट्टियां में भी उगाई जाती है। परन्तु उचित जल निकास वाली भारी मिट्टियां सर्वोत्तम होती है।
असिंचित अवस्था में अधिक जल धारण क्षमता वाली मृदाओं में ज्वार की पैदावार अधिक होती है। ज्वार की फसल के लिए पी एच मान 6.0 से 8.5 के मध्य होना चाहिए।
अच्छी उपज के लिए उन्नतशील किस्मों के शुद्ध बीज का चुनाव करें। बीज प्रमाणित संस्थाओं से लें यदि उन्नत जातियों का स्वयं का बनाया हुआ बीज हो तो सर्वोत्तम है।
ज्वार में दो प्रकार की किस्मों के बीज उपलब्ध हैं, संकर एंव उन्नत किस्में।
संकर किस्म के लिए प्रतिवर्ष नया प्रमाणित बीज ही प्रयोग में लाना चाहिए। उन्नत किस्मों के लिए बीज को प्रतिवर्ष बदलना आवश्यक नहीं है।
ज्वार की बुआई, निराई-गुड़ाई एवं कटाई।
संकर किस्में:- सीएसएच5, सीएसएच9, सीएसएच-14, सीएसएच-18 है। जवाहर ज्वार 741, जवाहर ज्वार 938, जवाहर ज्वार 1041 एसपीवी 1022 और एएसआर-1।
(इन बीजों को ज्वार अनुसंधान परियोजना, कृषि महाविद्यालय इंदौर , से ले सकते हैं)
उत्तर प्रदेश में इस्तेमाल की जाने वाली बीज है:- सीएसएच-16, सीएसएच-14, सीएमएच-9, सीएसबी-15, सीएसबी-13, वषा, र्मऊ टी-1, मऊ टी-2।
बुआई का समय:- इसकी बुआई मध्य जून से मध्य जुलाई के बीच खरीफ़ में की जाती है। औसतन 12 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त है।
उर्वरक:- नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटास उचित मात्रा में जमीन के मिट्टी के गुणवत्ता के आधार पर दें।
बुआई के समय 52 किग्रा यूरिया, 82 किग्रा डी.ए. पी. तथा 82 किग्रा एम. ओ. पी. प्रति हेक्टेयर दें। बुआई के 30 दिन बाद यूरिया 90 किग्रा प्रति हेक्टेयर दें।
निराई-गुड़ाई:- ज्वार की निराई-गुड़ाई 20-25 दिनों के अंतर पर दो से तीन बार करनी चाहिए। प्रथम निराई के 4-5 दिनों के बाद 90 किग्रा प्रति हेक्टेयर खड़ी फसल में डाल कर पौधे पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए।
कटाई:- फूल निकलने के 35 से 40 दिनों के बाद जब बाल पूरी तरह पक जाए तब कटनी करें। बाली को 2-3 दिन धूप में खूब अच्छी तरह सुखाकर इसके दाना को बाली से अलग कर ले।
विशेष सावधानी:- इसमें जहरीला पदार्थ पाया जाता है। जो पशुओं के लिए हानिकारक हो सकता है अतः फूल आने से पहले चारे के लिए इसका प्रयोग उचित नहीं है।
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