नींबू की खेती, किस्में, जलवायु एवं मिट्टी।

नींबू, लाईम अथवा लेमन की खेती उष्णकटिबंधीय तथा उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापारिक रूप से की जाती है। जहाँ इस जाति में नींबू तीसरा मुख्य फसल है। नींबू के उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में 5वाँ है।

परिचय:- नींबू, लाईम अथवा लेमन की खेती उष्णकटिबंधीय तथा उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापारिक रूप से की जाती है। जहाँ इस जाति में नींबू तीसरा मुख्य फसल है। नींबू के उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में 5वाँ है।

वहीं एसिड लाईम के उत्पादन में भारत का स्थान पहला है। इसका उत्पादन लगभग भारत के सभी प्रदेशों में होता है। तमिलनाडु, कर्नाटका, गुजरात, बिहार तथा हिमाचल प्रदेश में इसकी खेती वृहत पैमाने पर होती है। भारत में लाईम अधिक लोकप्रिय है।

वहीं एसिड लाईम के उत्पादन में भारत का स्थान पहला है। इसका उत्पादन लगभग भारत के सभी प्रदेशों में होता है। तमिलनाडु, कर्नाटका, गुजरात, बिहार तथा हिमाचल प्रदेश में इसकी खेती वृहत पैमाने पर होती है। भारत में लाईम अधिक लोकप्रिय है।
नींबू

जलवायु एवं मिट्टी:- एसिड लाईम उष्णकटिबंधीय जलवायु की फसल है। यह नींबू की सबसे कोमल फल है जिसके कारण इसकी खेती लगभग देश के सभी भागों में की जाती है। उत्तरी भारत में जहाँ शर्दियों में तापक्रम शून्य से नीचे गिर जाता है यह एसिड लाईम के व्यापारिक उत्पादन को बहुत ज़्यादा प्रभावित करता है। पालारहित क्षेत्र जहाँ वर्षा 750 मि. मि. से अधिक नहीं होती, इस फसल का अच्छा प्रदर्शन होता है।

इसकी खेती अनेक प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है। इसकी खेती काली मिट्टी एवं हल्की दोमट मिट्टी में अच्छी प्रकार से की जा सकती है। लाईम के लिए अच्छी जल-निकास वाली, जैविक पदार्थ सम्पन्न, एवं उर्वरता वाली दोमट मिट्टी जिसका पी. एच 6.5 से 7.0 के मध्य हो उत्तम है। अच्छी होती है।

किस्में

एसिड लाईम:- इसकी कोई उन्नत किस्म उपलब्ध नहीं है साधारणतः ईसे कागजी नींबू कहा जाता है।

प्रभालिनी:- इसके फल गुच्छे में होते हैं तथा यह साधारण कागजी नींबू से 30% अधिक उपज देते हैं।

विक्रम:- इसके फल भी गुच्छे में होते हैं तथा बेमौसमी फल भी प्राप्त हो जाते हैं।

चक्रधर:- इसमें बीज नहीं होता है इसके पौधे सीधे तथाघने होते है। इसके फल गोल होते हैं, इसमें पौधा-रोपण के चार साल पश्चात फल आना प्रारंभ होता है तथा यह जनवरी–फरवरी जून-जुलाई तथा सितम्बर-अक्टूबर में फल देते हैं।

पी०के०एम०1:- इसके फल गोल, मध्यम- बड़े आकार एवं आकर्षक पीले रंग का छिलका लिए होता है ।स्थानीय किस्मों की अपेक्षा इसकी उपज अधिक होती है।

सीडलेस लाईम :- यह लाईम का नया सेलेक्शन है। इसके फल का आकर अंडाकार, छिलका –पताला होता है वहीं स्थानीय प्रभेदों से उपज दो गुणा है।

लेमन:- लेमन को दो समूहों में बांटा गया है – एसिडलेमन एवं स्वीट लेमन। एसिड लेमन की खेती भारत तथा स्वीट लेमन की खेती दक्षिण अमेरिका एवं मिश्र में होती है।

फल एवं पेड़ की विशेषताओं के आधार पर इसे चार समूहों में विभाजित किया गया है जो है – यूरेका, लिसबान, एनामालस एवं स्वीट लेमन।

युरेका:- इसके फल का रंग लेमन पीला, झुरीदा, अंडाकार, मध्य आकार, गोल आधार वाला नींबू है।यह ग्रीवायुक्त, 9-10 हिस्सों में बंटा हुआ, रसदार, गुणवत्तापूर्ण एंव सुहावना होता है जिसमें 6-10 बीज होते हैं। इसमें पैदावार अधिक होती है।

लिसबान:- इसके फल लेमन पीला, चिकना, सतह, फल का आकार अंडाकार, मध्यम आकार की होती है जो 7-10 हिस्सों में बंटा हुआ, अधिक रसदार होता है तथा बीज की संख्या 0-10 होती है।

विलाफ्रांका:- यह यूरेका लेमन जाति का होता है, फल अंडाकार, मध्य-बढ़ा आकार, तेज लेमन पीला रंग का है। यह 10-12 हिस्सों में बंटा हुआ होता है बीजों की संख्या 25-30 है।

लखनऊ सीडलेस:- इसके फल अंडाकार, लेमन पीला, चिकना शीर्षनुकिला, पतला छिलका होता है।यह 10-13 हिस्सों में बंटा तथा लगभग बीज रहित होते हैं।

खेत की तैयारी:- 2-3 बार गहरी जुताई करके पाटा से भूमी को समतल कर, एक मौसम खुला छोड़ दें। तथा उचित मात्रा में गोबर की सड़ी हुई खाद डाल दें।

नींबू की रोपाई एवं देखभाल

रोपाई:- लाईम की रोपाई 4-6 मीटर दूरी पर करें 2 पौधों के मध्य दूरी मिट्टी तथा प्रजाति के अनुरूप बढ़ाई-घटाई जा सकती है। एसिड लाईम के लिए हल्की मिट्टी में 6 मीटर से कम का अंतराल अपर्याप्त है।

लाईम की रोपाई 4-6 मीटर दूरी पर करें 2 पौधों के मध्य दूरी मिट्टी तथा प्रजाति के अनुरूप बढ़ाई-घटाई जा सकती है। एसिड लाईम के लिए हल्की मिट्टी में 6 मीटर से कम का अंतराल अपर्याप्त है।
नींबू की खेती

प्रारंभ में पौधों की दूरी 8-10 वर्षों तक 3*3 मीटर रखी जा सकती है। फिर दो पंक्तियों के मध्य की पंक्ति को काटकर हटा दें।

बुआई के 2-3 सप्ताह पहले 90-100 सेंटीमीटर के गढ़े तैयार करें। गड्ढे को 20-30 दिन तक धूप मिलने के लिए खुला छोड़ दें फिर गढ़े में सूखे पत्तियां या पुआल रखकर रोगाणुमुक्त करने हेतु जला दें।

बुआई 15 दिन पूर्व गढ्ढे से निकाली गई आधी मिट्टी+तालाब का साद+लाल मिट्टी+फार्म यार्ड मैन्युर+हड्डी की खल्ली या सुपर फास्फेट एवं कीटनाशक उचित मात्रा में मिलाकर भर दें।

देखभाल:- नये पौध को 3-4 वर्षों तक अधिक गर्मी आर्द्रता एवं ठण्ड से बचाना पड़ता है। जमीन के स्तर से 60-70 सेंटीमीटर तक पौध की डालियों को काटकर एक ही धड़ रखें, तथा सूर्य जलन के प्रभाव से बचने के लिए इसे स्ट्रेन पेपर या कपड़े से ढँक देना।

पौधों को कम तापमान तथा पाला से बचाने के लिए नियमित अंतराल पे हल्की सिंचाई दे तथा बगीचे को टाट से घेर दे।

ट्रेनिंग एवं छटाई।

लाईम:- छोटे एसिड लाईम पौधों को जमीन से 75-100 सेंटीमीटर तक सभी डालियों को काट दिया जाता है। तथा अच्छी डालियों को मचान के रूप में छोड़ दिया जाता है धड़ पर जमीन से 75 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक आनेवाले नए कोपलों को हटा देना चाहिए।

लेमन:- लेमन के पेड़ लाईम के पेड़ से अलग होते हैं- इन्हें थोड़ी अलग काट-छांट की जाती है। है। पूर्ण विकसित लेमन के पेड़ में ज्यादा काट-छांट करनी पड़ती है। लंबी डालियां जिसके चोटियों में फल आने वाले हैं उसकी कटाई करदें।

जिससे जमीन की नजदीक की डालियों में ज्यादा फल आये। उन डालियों को जिस पर कुछ वर्षों से फल आ गये हैं उन्हें काट देना चाहिए ताकी नए डालियों में उच्च गुणवत्ता वाले फल आ सकें।

खाद एवं उर्वरक:- खाद एवं उर्वरक प्रयोग की प्रक्रिया प्रभेद एवं मिट्टी पर निर्भर करती है। साधारणतया नाइट्रोजन, यार्ड मैन्युर, तेल खल्ली एवं रासायनिक उर्वरक (50%) के रूप में तथा फास्फेट एवं पोटाश का प्रयोग सुपर-फास्फेट एवं म्यूरेट ऑफ़ पोटाश इ रूप में क्रमशः करनी चाहिए।

पूर्ण विकसित एसिड लाईम वृक्ष में 50 किलोग्राम फार्म यार्ड मैन्युर, 300 ग्राम नेत्रजन, 250 ग्राम पोटाश/प्रति वर्ष देने से फसल अच्छी होती है।

सिंचाई:- लाईम एवं लेमन की सिंचाई की नारंगी के अपेक्षा अधिक आवश्यकता होती है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में एसिड लाईम का 870 मि०मी०/ वर्ष जल की आवश्यकता होती है।

विकास की अवधि में अधिक नमी की आवश्यकता होती है अतः नमी की कमी होने पर पेड़ का विकास, फल का आकार छोटा, उत्पादन में कमी तथा फल टूटकर गिरने की गति में वृद्धि हो जाती है। इसलिए उचित्त सिंचाई की व्यवस्था आवश्यक है।

खरपतवार नियंत्रण:- नींबू के बाग में खरपतवार नियंत्रण भी आवश्यक है अतः समय समय पर निदाई गुड़ाई करनी चाहिए। रासायनिक नियंत्रण हेतु मैराडॉना, ड्युरॉन एवं ग्रामोजोन के प्रयोग से किया जाता है।

अंतरवर्तीय फसल इसकी खेती में दोहरा लाभ दे जाती है, अंतरवर्तीय फसलों का चुनाव जलवायु तथा मिट्टी को ध्यान में रख कर करें।

फसलबाज़ार

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