नमस्कार किसान भाइयों फसल बाजार आपके बीच अपने पूरे सप्ताह के रेशम विशेष विवरण के साथ उपस्थित हैं। जिसमें हम आपसे अपने पूरे सप्ताह पर दिए गए सारे जानकारियों से परिचय करवाते हैं, तथा आपके विचार एवं सलाह लेते हैं।
हम आज भी एक-एक कर आपको अपने पूरे सप्ताह की विवरणों से परिचित करवाएंगे तथा अपने सप्ताह भर में आपके लिए की गई नवीन कार्यों एवं आपके सहयोग से प्राप्त सफलता एवं सेवा के अवसर की बात करेंगे।
मधुमक्खी पालन:- मधुमक्खीयाँ मोन समुदाय में रहने वाली कीटें हैं। यह एक जंगली जीव है इन्हें इनकी आदतों के अनुकूल कृत्रिम ग्रह (हईव) में पाला जाता है।
उसी हइव में उनकी वृधि करने तथा शहद एवं मोम आदि प्राप्त करने की तकनीक विकशित की गई है। कृषि लघु व्यवसाय से बड़े व्यवसाय में बदलती जा रही है।
पपीता:- पपीते का फल गोलकार तथा लंबा होता है। इसके गुद्दे पीले तथा गद्दों के मध्य काले बीज होते हैं। यह एक सदाबहार मधुर फल है। यह स्वादिष्ट और रुचिकर होने के साथ स्वस्थ के लिए भी उपयोगी है। यह हमारे देश में सभी जगह उत्पन्न होता है।
वृक्ष के ऊपरी हिस्से में पत्तों के घेरे के नीचे पपीते के फल लगता हैं। कच्चे पपीते का रंग हरा तथा पकने के बाद हरे पीले रंग का हो जाता है।
नयी जातियों में बिना बीज के पपीते की कई किस्में ईजाद की गई हैं। एक पपीते का वजन 400 ग्राम से लेकर 2 किलो ग्राम तक होता है। पपीते के पेड़ नर और मादा दोनों रुप में अलग-अलग होते हैं । कभी-कभी एक ही पेड़ में दोनों तरह के फूल खिलते हैं।
सेरीकल्चर:- कच्चा रेशम के लिए रेशम के कीटों का पालन किया जाता है इसे सेरीकल्चर या रेशम कीट पालन कहते है। रेशम वस्त्रों की रानी के नाम से विख्यात है इसे विलासिता, मनोहरता, विशिष्टता एवं आराम का सूचक माना जाता है।
रेशम, रेशमकीट जिसे इल्ली कहते हैं ,के द्वारा निकाले जाने वाले एक प्रोटीन से बना होता है। ये रेशमकीट विशेष पौधों पर पलते हैं इसलिए इन्हें कृषि के साथ जोड़ा जाता है। ये अपने जीवन को बनाए रखने के लिए ‘सुरक्षा कवच’ के रूप में कोसों का निर्माण करते हैं इनका जीवन-चक्र 4 चरणों का होता है, अण्डा, इल्ली, प्यूपा तथा शलभ।
सुरन की खेती:- भारत में किसान ओल की खेती औषधीय फसक के रूप में की जाती है। इसे जिमीकंद या सूरन के नाम से भी जाना जाता है। हमारे घरों में इसकी सब्जी और चटनी के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, खनिज, कैल्शियम, फॉस्फोरस समेत अनेक तत्व पाए जाते है।
आयुर्वेदिक दवाओं के उत्पादन में इसका उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता हैं। इसके फल जमीन के अंदर ही कंद के रूप में विकशित होते हैं। इसको खाने से गले में खुजली हो जाती है, लेकिन अब इसकी प्रतिरोधी कई नई किस्मों का ईजाद किया गया है जिसको खाने से खुजली नहीं होती है।
ज्वार(जौ):- ज्वार अथवा जौ को इंग्लिश में सोरघम कहा जाता हैं। मूलतः भारत में इसकी खेती खाद्य तथा पशुओं के लिए चारा के रूप में की जाती है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के प्राध्यापक डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर के अनुसार ज्वार की खेती का भारत में तीसरा स्थान है।
यह उत्तर भारत में खरीफ के मौसम में और दक्षिणी भारत में रबी के मौसम में की जाती है। ज्वार की प्रोटीन में लाइसीन अमीनो अम्ल पौष्टिकता की दृष्टि से काफी पाई जाती है। वहीं ल्यूसीन अमीनो अम्ल की अधिकता होने के कारण ज्वार खाने से लोगों में पैलाग्रा नामक रोग का प्रकोप हो सकता है। इसकी फसल अधिक बारिश वालों क्षेत्रों में होती है।
नींबू की खेती:- नींबू ,लाईम अथवा लेमन की खेती उष्णकटिबंधीय तथा उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापारिक रूप से की जाती है। जहाँ इस जाति में नींबू तीसरा मुख्य फसल है। नींबू के उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में 5वाँ है।
वहीं एसिड लाईम के उत्पादन में भारत का स्थान पहला है। इसका उत्पादन लगभग भारत के सभी प्रदेशों में होता है। तमिलनाडु, कर्नाटका, गुजरात, बिहार तथा हिमाचल प्रदेश में इसकी खेती वृहत पैमाने पर होती है। भारत में लाईम अधिक लोकप्रिय है।
धन्यवाद।
अनुराग ठाकुर!