पपीता की वैज्ञानिक खेती एवं व्यापारिक महत्व।

पपीते का फल गोलकार तथा लंबा होता है। इसके गुद्दे पीले तथा गुद्दों के मध्य काले बीज होते हैं। यह एक सदाबहार मधुर फल है, पपीता स्वादिष्ट और रुचिकर होने के साथ स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है। यह हमारे देश में सभी जगह उत्पन्न होता है।

परिचय:- पपीते का फल गोलाकार तथा लंबा होता है। इसके गुद्दे पीले तथा गुद्दों के मध्य काले बीज होते हैं। यह एक सदाबहार मधुर फल है, पपीता स्वादिष्ट और रुचिकर होने के साथ स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है। यह हमारे देश में सभी जगह उत्पन्न होता है।

वृक्ष के ऊपरी हिस्से में पत्तों के घेरे के नीचे पपीते के फल लगता है। कच्चे पपीते का रंग हरा तथा पकने के बाद हरे पीले रंग का हो जाता है। नयी जातियों में बिना बीज के पपीते की कई किस्में ईजाद की गई हैं।

एक पपीता का वजन 400 ग्राम से लेकर 2 किलो ग्राम तक होता है। पपीते के पेड़ नर और मादा दोनों रुप में अलग-अलग होते हैं। कभी-कभी एक ही पेड़ में दोनों तरह के फूल खिलते हैं।

एक पपीता का वजन 400 ग्राम से लेकर 2 किलो ग्राम तक होता है। पपीते के पेड़ नर और मादा दोनों रुप में अलग-अलग होते हैं। कभी-कभी एक ही पेड़ में दोनों तरह के फूल खिलते हैं।
पपीता

भूमिका:- पपीता औषधीय गुणों से भरपूर तथा स्वास्थ वर्धक फल है। इसमें विटामिन ए भरपूर मात्रा में होता है। पपीता के पके व कच्चे दोनो फल अत्यंत उपयोगी होते हैं।

कच्चे फल से बने पपेन का सौन्दर्य तथा उद्योग जगत में प्रयोग किया जाता है। इसका कच्चा फल हरा और पकने पर पीले रंग का हो जाता है। पका पपीता मीठा, भारी, गर्म, होता है।

पपीता पित्त का नाश तथा भोजन में रुचि उत्पन्न करता है। इसकी बागवानी लगातार बढ़ता जा रहा है।

तमिलनाडु, बिहार, असम, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू एवं कश्मीर, उत्तरांचल, मिजोरम और आंध्रप्रदेश में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है।

इसके सफल उत्पादन के लिए वैज्ञानिक पद्धति और तकनीकों का उपयोग करके कृषक अधिक लाभ ले सकते हैं।

समय:- वैसे तो भारत में यह बारह महीने उगाया जाता है लेकिन सेप्टेंबर, अक्टूबर के महीनें में इसकी खेती अत्यंत उपयोगी है।

यह एक उष्ण कटिबंधीय फल है, परंतु इसकी खेती समशीतोष्ण स्थानों में भी की जा सकती है। ज्यादा ठंड से पौधे के विकास प्रभावित होता है। फलों के पकने व मिठास बढ़ने के लिए गरम मौसम उत्तम है।

पपीता की किस्में तथा मृदा का चुनाव।

पपीता की मुख्य किस्में

पूसा डोलसियरा – यह अधिक ऊपज देने वाली गाइनोडाइसियश प्रजाति का है। ईसमें मादा तथा नर दोनों पुष्प एक ही वृक्ष पे लगते हैं।

पूसा मेजेस्टी – यह गाइनोडाइसियश प्रजाति का है।

रेड लेडी 786 – यह एक संकर किस्म है, यह विशेष तौर पे पंजाब के लिए विकसित किस्म है। जिसे हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और राजस्थान में भी उगाया जा रहा है।

पूसा जाइन्ट – यह बहुत अधिक वृद्धि वाली किस्म है। ईसमें नर तथा मादा फूल अलग-अलग पौधे पर पाये जाते हैं, यह तेज़ हवा भी झेल लेता है।

पूसा नन्हा – इस प्रजाति के पौधे बहुत छोटे होते हैं जो गृहवाटिका के लिए उपयोगी है।

हनीइयू (मधु बिन्दु) – इस पौधे में नर पौधों की संख्या बहुत कम होती है, तथा इसके बीज के प्रकरण अधिक लाभदायक होते हैं। इसका फल मध्यम आकार का अत्यंत मीठा तथा ख़ुशबू वाला होता है।

मृदा:- पपीते के सफल उत्पादन के लिए हल्की दोमट मिट्‌टी अच्छी होती है, जिसका पी. एच. 6.5 से 7.5 के मध्य हो।

खेत में जल निकाश की अच्छी व्यवस्था हो क्योंकि पानी भरा रहने से पौधे का तना सड़ने लगता है।

तापमान 22-26 डिग्री से०ग्रे० के बीच और 10 डिग्री से०ग्रे० से कम नहीं होना चाहिए।

बुआई की विधि तथा रोपण।

बुआई:- पपीते का व्यवसाय उत्पादन बीजों द्वारा किया जाता है। इसके सफल उत्पादन के लिए यह जरूरी है की अच्छी क्वालिटी की बीज ली जाय।

बीज के मामले में निम्न बातों पर ध्यान दे:- बीज जुलाई से सितम्बर और फरवरी-मार्च के बीच बोयें बीज अच्छी किस्म की तथा स्वस्थ फलों से लें। चूंकि यह नई किस्म संकर प्रजाति की है, लिहाजा हर बार इसका नया बीज ही बोना चाहिए।

 पपीते का व्यवसाय उत्पादन बीजों द्वारा किया जाता है। इसके सफल उत्पादन के लिए यह जरूरी है की अच्छी क्वालिटी की बीज ली जाय।
पपीता की खेती

बीज को क्यारियों, लकड़ी के बक्सों, मिट्‌टी के गमलों व पोलीथीन की थैलियों में सफलता पूर्वक बोया जा सकता है, नर्सरी में पौधों का उगाना बहुत महत्वपूर्ण है।

एक हेक्टेयर भूमि के लिए 500 ग्राम बीज पर्याप्त होती है। बीज पूर्ण पका हुआ, अच्छी तरह सूखा हुआ तथा 6 महीने से पुराना न हो का चयन करें। बोने से पहले बीज को 3 ग्राम केप्टान से एक किलो बीज को उपचारित करना चाहिए।

बीज बोने के लिए क्यारी जो जमीन से ऊँची रहनी चाहिए इसके अलावा बड़े गमले या लकड़ी के बक्से में भी बुआई कर सकते हैं।

क्यारी जमीन से ऊँची रखें तथा बोई गयी क्यारियों को सूखी घास या पुआल से ढक दें तथा सुबह शाम पानी दें।

बोने के लगभग 15-20 दिन भीतर बीज जम जाते हैं, 4-5 पत्तियाँ और 25 से.मी. तक ऊँची हो जाने के 2 महीनें बाद खेत में प्रतिरोपण करना चाहिए।

उत्तरी भारत में नर्सरी में बीजई मार्च-अप्रैल,जून-अगस्त में उगाने चाहिए।

रोपण:- मई के महीनें मेंअच्छी तरह से तैयार खेत में 2*2 मीटर की दूरी पर 50*50*50 सेंटीमीटर आकार के गड्‌ढे बनाये।

गढ्डे खोद कर 15 दिनों के लिए खुला छोड़ दे ताकि गड्‌ढों में अच्छी तरह धूप लगे और हानिकारक कीड़े-मकोड़े, रोगाणु वगैरह नष्ट हो जाएँ।

पौधे लगाने के बाद गड्‌ढे को मिट्‌टी और गोबर की खाद 50 ग्राम एल्ड्रिन मिलाकर इस प्रकार भरे कि वह जमीन से 10-15 सेंटीमीटर ऊँचा रहे।

गड्‌ढे की भराई के बाद सिंचाई कर दे। अमूमन पौधे जून-जुलाई या फरवरी-मार्च में लगाए जाते हैं, लेकिन ज्यादा बारिश व सर्दी वाले इलाकों में सितंबर या फरवरी-मार्च में लगाने चाहिए। पौधों के अच्छी तरह पनपने तक रोजाना दोपहर बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण, खाद व उर्वरक।

खाद व उर्वरक:- पपीता जल्दी फल देना शुरू कर देता है। इसलिए इसे अधिक उपजाऊ भूमि की आव्यशकता है।

अच्छी फ़सल लेने के लिए औसतन 200 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फ़ॉस्फ़रस एवं 500 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की लाभदायक है।

इसके अतिरिक्त प्रति वर्ष प्रति पौधे 20-25 कि०ग्रा० गोबर की सड़ी खाद, एक कि०ग्रा० बोनमील और एक कि०ग्रा० नीम की खली की तीन बार बराबर मात्रा में मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त और अक्तूबर महीनों में देनी चाहिए।

नाइट्रोजन की मात्रा को 6 भागों में बाँट कर 2 महीने के अंतराल पर डालना चाहिए तथा फास्फोरस व पोटाश 2 बार में देनी चाहिए।

उर्वरकों को तने से 25-30 सेंटीमीटर की दूरी बनाते हुए पौधें के चारों ओर बिखेर कर मिट्‌टी में मिला दें।

पाले से रक्षा:- पौधे को पाले से बचाने के लिए नवम्बर के अंत में तीन तरफ से फूंस से अच्छी प्रकार ढक दें तथा पूर्व या दक्षिण दिशा में खुला छोड़ दें।

बाग़ के चारों तरफ हवाओं से बचने के लिए रामाशन से हेज लगा दें तथा समय-समय पर धुआँ कर दे।

सिंचाई:- पपीते के अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई जरूरी है। गर्मियों में 6-7 दिनों के अंतराल पर और सर्दियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।

बारिश के मौसम में जब लंबे समय तक बरसात न हो तो सिंचाई की जरूरत पड़ती है। ध्यान रहे कि पानी तने के सीधे संपर्क में नहीं आना चाहिए, इसके लिए तने के पास चारों ओर मिट्‌टी चढ़ा दे।

पपीते में कीट व बीमारी:- प्रमुख रूप से किसी कीड़े से नुकसान नहीं होता है परन्तु वायरस, रोग फैलाने में सहायक होते हैं।

खरपतवार नियंत्रण:- खरपतवार से बचाव तथा पोषक तत्वों के बचाव के लिए जरूरत के मुताबिक निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।

बराबर सिंचाई करते रहने से मिट्‌टी की सतह कठोर हो जाती है, जिससे पौधे की बढ़वार पर असर पड़ता है अतः 2-3 सिंचाई के बाद थालों की निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए।

पपीते की उपज:- आमतौर पर पपीते की उन्नत किस्मों से प्रति 35-50 किलोग्राम प्रति पौधा उपज मिल जाती है, जबकि नई किस्म से 2-3 गुणा ज्यादा उपज मिल जाती है।

फसलबाज़ार

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