परिचय:- मधुमक्खीयाँ मोन समुदाय में रहने वाली कीटें हैं। मधुमक्खी एक जंगली जीव है इन्हें इनकी आदतों के अनुकूल कृत्रिम ग्रह (हईव) में पाला जाता है। उसी हइव में उनकी वृधि करने तथा शहद एवं मोम आदि प्राप्त करने की तकनीक विकसित की गई है।
कृषि लघु व्यवसाय से बड़े व्यवसाय में बदलती जा रही है। कृषि और बगवानी का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। जबकि कुल कृषि योग्य भूमि जनसंख्या दबाव के कारण घटती जा रही है।
कृषि के समुचित विकास के लिए फसल, सब्जियां और फलों के भरपूर उत्पादन के साथ- साथ दुसरे कृषि जनित व्यवसायों से भी अच्छी आय जरुरी है।
मधुमक्खी पालन एक ऐसा ही व्यवसाय है, जो किसानों को अच्छी लाभ दे रहा है। यह एक कम खर्च में शुरू किया जाने वाला घरेलु उद्योग है।
यह आय, रोजगार के साथ वातावरण शुद्ध रखने में भी सहायक है। मधुमक्खी पालन के माध्यम से कृषि व बागवानी उत्पादन की क्षमता भी बढ़ाई जा सकती है।
मधुमक्खी पालन के लाभ:- मधुमक्खी पालन से शहद एवं मोम के अतिरिक्त कुछ अन्य पदार्थ, जैसे:-गोंद (प्रोपोलिस, रायल जेली, डंक-विष) भी प्राप्त किए जाते है।
इसके साथ ही मधुमक्खियों से फूलों में परप्रगन भी अधिक होता है। जिसके फलस्वरूप फसलो की उपज में लगभग एक चैथाई अतिरिक्त बढ़ोतरी होती है।
मधुमक्खी पालन से जुड़े व्यवसाय:- यह कम लागत वाला एक उपयोगी कुटीर उद्योग है। यह ग्रामीण भूमिहीन किसानो के लिए आमदनी का एक महत्वपूर्ण साधन है।
इससे जुड़े कुछ अन्य कार्य जैसे बढईगिरी, लोहारगीरी में भी अतिरिक्त रोज़गार के अवसर मिलते हैं। तथा मधु, मोम, डंक आदी की मांग तो बाजार में बहुतायत है हीं।
मधुमक्खी की किस्में, उचित रखरखाव एवं प्रबंधन।
परिवार:- मधुमक्खी के एक परिवार में एक रानी तथा कई हजार कमेरी होती है। इसके अतिरिक्त उसमें 100-200 नर होते हैं।
रानी मधुमक्खी:- यह पूर्ण विकसित मादा मधुमक्खी होती है तथा यही परिवार की जननी भी होती है। रानी मधुमक्खी का कार्य अंडे देना होता है।
अच्छे पोषण वातावरण में इटैलियन जाती की रानी एक दिन में 1500-1700 अंडे देती है। तथा देशी रानी करीब 700-1000 अंडे देती है। इनकी औसत उम्र 2 से 3 वर्ष होती है।
कमेरी या श्रमिक:- यह अपूर्ण मादा मधुमक्खीयां होती है। यह प्रत्येक कार्य जैसे अण्डों और बच्चों का पालन पोषण करना, फलों तथा पानी का पता लगाना, पराग एकत्र करना, परिवार तथा छतो की देखभाल करना, शत्रुओं से रक्षा आदि करती हैं। इनकी उम्र लगभग 2-3 महीने होती है।
नर मधुमक्खी:- रानी मधुमक्खी के साथ सम्भोग के सिवा इसका कोई कार्य नही होता। सम्भोग के तुरंत बाद इनकी मृत्यु हो जाती है। इसकी औसत आयु करीब 2 महीनें होती है।
मधुमक्खियों की किस्में
भारत में मधुमक्खी की मुुख्य 4 प्रजातियाँ पाई जाती है।
छोटी मधुमक्खी (एपिस फ्लोरिय), भैंरो या पहाड़ी मधुमक्खी ( एपिस डोरसाटा), देशी मधुमक्खी (एपिस सिराना इंडिका) तथा इटैलियन या यूरोपियन मधुमक्खी (एपिस मेलिफेरा)।
इनमे से देशी तथा इटेलियन/ यूरोपियन जाती की मधुमक्खियों को आसानी से लकड़ी के बक्सों में पाला जा सकता है।
देशी मधुमक्खी के एक परिवार से प्रतिवर्ष औसतन 5-10 किलोग्राम शहद तथा इटैलियन मधुमक्खी 50 किलोग्राम तक शहद प्राप्त की जा सकती है।
अवश्यक सामग्री:- मौन पेटिका, मधु निष्कासन यंत्र, स्टैंड, छीलन छुरी, छत्ताधार, रानी रोक पट, हाईवे टूल (खुरपी), रानी रोक द्वार, नकाब, रानी कोष्ठ रक्षण यंत्र, दस्ताने, भोजन पात्र, धुआंकर ब्रुश है।
उचित रखरखाव एवं प्रबंधन:- मधुमक्खी परिवारों की सामान्य गतिविधियाँ 100 से 370 सेंटीग्रेट तापमान के मध्य होती है, अतः उचित प्रबंध द्वारा प्रतिकूल परिस्तिथियों में भी इसे बनाए रखें।
अच्छी रखरखाव से परिवार शक्तिशाली एवं क्रियाशील बने रहते है। मधुमक्खी के रोगों एवं शत्रुओं के प्रकोप का निदान उचित प्रबंधन द्वारा किया जा सकता है। जिससे अच्छी मात्रा में मधु एवं मोम मिल सके।
शरद, बसंत एवं ग्रीष्म ऋतुओ में मधुमखियों का प्रबंधन।
शरदऋतु में प्रबंधन:- शरद ऋतु में तापमान कभी-कभी 10 सेन्टीग्रेट से निचे तक चला जाता है। ऐसे में मौन वंशो का सर्दी से बचाव आवश्यक हो जाता है।
इसके लिए टाट की बोरी(कट्टा) को दो तह बनाकर अंदर ढक्कन के नीचे अक्टूबर के महीनें में बिछा देनी चाहिए। तथा पॉलीथिन से पूरे बक्से को ढक दें ध्यान रहे की प्रवेश द्वार बंद न हो।
इस समय बक्सों को धूप वाले स्थान पर रखें। यदि रानी पुरानी हो तो उस परिवार को नई रानी दें।ये अक्टूबर में हीं करें।
भोजन की कमी:- यदि मौनो के भोजन की कमी जानने के लिए शहद की मात्रा देखें यदी शहद कम है तो मौन वंशों को 1:1 के अनुपात में चीनी और पानी का घोल बनाकर उबालकर ठंडा होने के पश्चात मौन गृहों के अंदर रख देना चाहिये।
जिससे मौनो को भोजन की कमी न हो। पुराने या टूट गये मोनगृहों की मरम्मत अक्टूबर नवम्बर तक अवश्य करा लेना चाहिए। जिससे इनको सर्दियों से बचाया जा सके।
इस समय मौनगृह को फुल वाले स्थान पर रखना चाहिये। जिससे अधिक से अधिक मकरंद और पराग एकत्र कर पाना आसान हो। अधिक ठंढ में मौन गृहों को नही खोलना चाहिए।
बसंत ऋतु में प्रबंधन:- बसंत ऋतु मौन पालको के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। इस समय प्रयाप्त मात्रा में पराग और मकरंद की उपलब्धता रहती है।
जीससे मौनों की संख्या दुगनी तक बढ़ जाती है। शहद का उत्पादन भी बढ़ जाता है। इस समय देख रेख की आवश्यकता उतनी ही पड़ती है जितनी अन्य मौसमो में होती है।
शरद ऋतु समाप्त होने पर धीरे-धीरे मौन गृह की पैकिंग हटा दें। मौन गृहों को अच्छी तरह से खाली कर उनकी सफाई कर लें, बाहर से सफेद पेंट लगा दें।
जिससे बहार से आने वाली गर्मी में मौन गृहों का तापमान कम रह सके। बसंत ऋतु के प्रारम्भ में मौन वंशो को कृत्रिम भोजन देने से उनकी संख्या और क्षमता बढ जाती है तथा अधिक से अधिक उत्पादन लिया जा सकता है।
ग्रीष्म ऋतु प्रबंधन:- ग्रीष्म में मौनो की देख भाल अधिक आवश्यक है। तापमान 40 डिग्री सेंटीग्रेट से उपर पहुँचने पर मौन गृहों को छायादार स्थान पर रखना चाहिए।
लेकिन सुबह की सूर्य की रौशनी मौन गृहों पर पड़नी आवश्यक है इसका ध्यान रखे। इस रौशनी से वे सुबह से ही सक्रीय होकर अपना कार्य करना प्रारम्भ कर देती हैं।
इस समय कुछ स्थानों जहाँ पर बरसीम, सूर्यमुखी इत्यादि की खेती होती है इनके लिए उत्तम है। इस समय मधुमक्खियों को साफ एवं बहते हुए पानी की आवश्यकता होती है।
इसलिए पानी की उचित व्यवस्था मधुवातिका के आस-पास होना चाहिये। तथा लू से बचने हेतु छ्प्पर का प्रयोग करें।
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Badiyaa. Bhhaii