मिर्ची की खेती तथा मसालों के रूप में प्रयोग।

जिसे जानने के लिए आप हमारे पिछले पोस्ट को पढ़ सकते हैं। आज हम बात करेंगे उन भारतीय मिर्ची के किस्मों की जो प्रमुख मसाले के रूप में प्रयोग किये जाते हैं।

कैप्सिकम मिर्ची का उपयोग, सब्जी, चटनी, अँचार आदी के रूप में भी किया जाता है तथा इसके विभिन्न प्रकार है।

जिसे जानने के लिए आप हमारे पिछले पोस्ट को पढ़ सकते हैं। आज हम बात करेंगे उन भारतीय मिर्ची के किस्मों की जो प्रमुख मसाले के रूप में प्रयोग किये जाते हैं।

परिचय:- भारतीय मिर्च एक वार्षिक फसल है। इसकी खेती मुख्यत: नगदी फसल के रूप में की जाती है। 87 से 90 हजार रूपए प्रति हेक्टेयर की आमदनी मिर्च के एक फसल से होती है।

किस्म

भारत में उगाई जाने वाली मिर्च को पांच प्रमुख प्रजातियों में रखा जाता है जो की इस प्रकार है।

कैप्सिकम एनुअम, कैप्सिकम फूटेमेंस, कैप्सिकम पेंडुलम, कैप्सिकम प्यूबेसेंस एवं कैप्सिकम चाइनीज।

भारत में उगाई जाने वाली विभिन्न किस्में

बेर्ड्स आई चिल्ली (धनी) – यह मिजोरम और मणिपुर के कुछ इलाकों में उगाई जाती है। इसका रंग लाल तथा स्वाद एकदम तीखा होता है।

इसकी कटाई अक्टूबर से दिसंबर के मध्य होती है। कोलकाता के मंडियों में इसकी बहुत मांग है।

भारत में मिर्ची पुर्तगालो द्वारा पेश किया गया अब एकदम ठंढे जगहों को छोडकर, दुनिया के लगभग सभी जगहों में इसकी खेती की जाती है।
मिर्ची

ब्यादगी(कट्टी) – इसकी खेती कर्नाटक के धारवाड में बड़े पैमाने पर की जाती है तथा यह भी लाल रंग की लेकिन कम तीखी होती है।

इसकी कटाई जनवरी से मई तक की जाती है इसका वार्षिक उत्पादन लगभग 21,000 टन प्रति हेक्टेयर है। इसकी मांग हुब्ली तथा धारवाड मण्डी में अत्यधिक है।

एल्लायीपुर सन्नम एस 4 टाइप – इसकी पैदावार में महाराष्ट्र के अमरावती जिले का बहुत योगदान है। यह गहरे लाल रंग की तथा बहुत तीखी होती है।

इसका वार्षिक उत्पादन लगभग 1800 टन प्रति हेक्टेयर है। इसकी कटाई सितंबर से दिसंबर तक होती है। तथा मांग मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद और नागपुर तक के मंडियों में है।

गुण्टूर सन्नम एस 4 टाइप – इसका उत्पादन आन्ध्रप्रदेश के गुण्टूर, वारंगल, खम्मं जिलों में बड़े पैमाने पर है। इसका छाल घना तीखा और लाल होता है।

वार्षिक उत्पादन लगभग 2,80,000 टन है। यह गुण्टूर मण्डी में उपलब्ध उत्तम किस्मों में से एक है।

हिन्दपुर एस 7 – यह आन्ध्रप्रदेश के हिन्दपुर में उत्पादित होने वाली किस्म है। इसका रंग लाल होता है तथा यह एकदम तीक्ष्ण( तीखा) है।

इसकी कटाई दिसंबर से मार्च तक होती है। यह हिन्दपुर मंडी में हमेसा पाई जाती है।

ज्वाला – यह खेडा, मेहसाना और दक्षिण गुजरात में उगाई जाती है। रंग हल्का लाल एकदम तीखा होता है तथा इसमें छोटे-छोटे बीज भी होते हैं।

इसकी कटाई सितंबर से दिसंबर तक की जाती है। यह उफॅंझा मण्डी में उपलब्ध रहती है।

कान्तारी-सफेद – यह केरल और तमिलनाडु के कुछ इलाकों में उगाई जाती है। यह छोटी, आइवरी सफ़ेद रंगवाली तथा एकदम तीखी होती है।

यह मुख्यत: घर आंगन की फसल के रूप में बढाई जाती है। यह पूरे साल लगभग प्रत्येक मंडियों में उपलब्ध है।

कश्मीर मिर्च – यह हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर जैसे शीतोष्ण क्षेत्रों में तथा उत्तर भारत के उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में ठण्डी मौसम में उगाई जाती है यह लम्बी, मांसल, गहरे लाल रंगवाली।

इसकी कटाई नवंबर से फरवरी तक होती है। यह उत्तर भारत के सभी प्रमुख मंडियों में उपलब्ध है।

मध्यप्रदेश जी टी सन्नम – यह मध्यप्रदेश के इन्दौर, मल्कापुर चिकली और एल्चापुर क्षेत्रों में उगाई जाती है।

यह एक लाल रंगवाली तीखी मिर्च है जिसकी कटाई जनवरी से मार्च तक तथा वार्षिक उत्पादन – 7500 टन प्रति हेक्टेयर है। यह अमूमन मध्यप्रदेश की सभी प्रमुख मण्डियों में उपलब्ध है।

मिर्ची की व्युत्पत्ति, मसाला, दोष तथा भारतीय नाम

व्युत्पत्ति:- दक्षिण अमरीका का मूल माना जाने वाले इस फसल को 15वी सदी में भारत लाया गया। तब इसका भारत सहित सभी उष्ण-उपोष्ण कटिबंधित देशों में व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ।

भारत में मिर्ची पुर्तगालो द्वारा पेश किया गया अब एकदम ठंढे जगहों को छोडकर, दुनिया के लगभग सभी जगहों में इसकी खेती की जाती है।

मसाले के रूप में इसे सूखी मिर्च तथा सुखी मिर्च के चूर्ण के रुप में प्रयोग किया जाता है। इसका बडे पैमाने पर प्रयोग पके व्यंजनों में किया जाता है।
मिर्ची की खेती

मसाला:- मसाले के रूप में इसे सूखी मिर्च तथा सुखी मिर्च के चूर्ण के रुप में प्रयोग किया जाता है। इसका बडे पैमाने पर प्रयोग पके व्यंजनों में किया जाता है।

करी पाउडरों के महत्वपूर्ण घटक व सीसनिंग में भी इसका उपयोग किया जाता है। कालीमिर्च का प्रयोग सॉस तथा ताब्स्को सॉस जैसे तीखे सॉस तैयार करने में बेर्ड चिल्ली का इस्तेमाल किया जाता है।

रंगहेतु:- पैप्रिका, ब्यादगी मिर्च, वारंगल चप्पट्टा और इसी तरह उच्च रंग तथा खाद्य रंग की और तथा कम तीखी किस्मों का प्रयोग रंग निष्कर्षण के लिए बहुतायत किया जाता है।

एक कुदरती पौधरंग होने के कारण, खाद्य तथा पेय निर्माताओं के लिए एक लोकप्रिय रंजक के रूप में यह खूब पसंदीदा है।

दवा के रूप में:- दवा के रूप में यह कटिवात, तंत्रिबंध और वात संबन्धी बीमारियों में इसका उपयोग किया जाता है। इसके एंजाइम से कुछ प्रकार के कैंसरों के उपचार में भी किया जाता है।

दोष:- अधिक मात्रा में मिर्च खाने से गैस संबन्धी बीमारियाँ हो सकती है।

नोट:- हरी मिर्च विटामिन सी का उत्तम श्रोत है।

भारतीय नाम:- हिन्दी- लाल मिर्च, बंगला- लंका, लंकामोरिच गुजराती- मर्चा, कन्नड- मेनसिन काय, मलयालम- मुळकु, मराठी- मिर्ची, उडिया- लंका, पंजाबी- लालमिर्च, तमिल- मिलगई, तेलुगु- मिरप्पा तथा काया उर्दू में लाल मिर्च कहते है।

मसलों में इसकी खेती तथा व्यापार दोनों लाभदायक है।

फसलबाज़ार



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