मिर्च कैप्सिकम की खेती एवं व्यापारिक महत्व।

बीजों को आर्द्रगलन से बचाव हेतु एग्रोसन जी.एन अथवा तूतिया के 1.25% घोल से उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को छिंट कर नहीं, बल्कि पंक्तियों में बोना चाहिए जो निकाई-गुड़ाई एवं बिचड़ा निकालने में सहायता करता है।

परिचय:- मिर्च कैप्सिकम (एनम कुल-सोलेनेसी) एक गर्म मौसम का मसाला है। जिसके आभाव में कोई सब्जी कितनी ही मेहनत से तैयार की गयी हो, फीकी होती है। इसमें विटामिन ‘‘ व ‘सी‘ पाया जाता है।

यह भारत की एक महत्वपूर्ण फसल है। इसे कड़ी, अचार, चटनी और अन्य सब्जियों में मुख्य तौर पर प्रयोग किया जाता है। मिर्च का मूल स्थान मेक्सिको माना जाता है। भारत में इसे 17वीं सदी में लाया गया था। ये औषधीय गुणों से भी भरपुर है।

भारत मिर्च उत्पादन में प्रमुख देश है। मिर्च को ताज़ा, सुखाकर या पाउडर बना कर भी प्रयोग किया जाता है। भारत में मिर्च की खेती आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु, बिहार ,उत्तरप्रदेश और राजस्थान में होता है।

मिर्च कैप्सिकम (एनम कुल-सोलेनेसी) एक गर्म मौसम का मसाला है। जिसके आभाव में कोई सब्जी कितनी ही मेहनत से तैयार किया गयी हो, फीकी होती है। इसमें विटामिन 'ए' व 'सी' पाया जाता है।
कैप्सिकम

यह मुख्य रूप से तीन तरह का होता है – मसालों वाली साधारण, आचार वाली व शिमला मिर्च। इसकी कुछ प्रजातियाँ काफी तिक्त व कुछ कम अथवा नहीं के बराबर होती है। इसकी तिक्ता एक रसायन- कैप्सेसीन के कारण होती है जिसका उपयोग औषधि निर्माण के क्षेत्र में भी होता है। इसका चमकीला लाल रंग ‘केप्सैथीन’ नाम रसायन के कारण होता है।

जलवायु:- मिर्च गर्म मौसम की सब्जी है। इसकी सफल खेती वैसे क्षेत्रों में की जा सकती है जहाँ वार्षिक बारिश 60-150 सेंटीमीटर होती हो। ज्यादा बारिश इसे नुकसान पहुंचाती है। तापक्रम समान्य से ज्यादा एवं कम-दोनों अवस्था में इसके उपज को कम करता है। फूल आने के समय गर्म एवं सुखी हवा फूल-फल को गिरा कर उपज कम करती है।

मृदा:- पोषक तत्वों से भरपूर बलुई-दोमट मिट्टी इसके लिए आदर्श है। वैसे यह हल्की से थोड़ी सी भारी हर तरह की मिट्टी में उगाई जाती है। मिट्टी में ऑक्सीजन की कमी इसके उपज को कम करता है। अतः इसके खेतों में जलनिकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

किस्म:- मिर्च – एन. पी, 46 ए, पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार। शिमला मिर्च- पूसा दीप्ती, अर्का मोहिनी, अर्का गौरव, अर्का बसंत। आचार मिर्च- सिंधुर, कैप्सेसीन उत्पादन हेतु- अपर्ना , पचास यलो।

मिर्च – एन. पी, 46 ए, पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार। शिमला मिर्च- पूसा दीप्ती, अर्का मोहिनी, अर्का गौरव, अर्का बसंत। आचार मिर्च- सिंधुर, कैप्सेसीन उत्पादन हेतु- अपर्ना , पचास यलो।
शिमला मिर्च

मिर्च कैप्सिकम की खेत की तैयारी।

खेत की तैयारी:- 4-5 गहरी जुताई और हर बार जुताई के उपरान्त पट्टा देकर खेत को अच्छी तरह तैयार कर लें। इसी समय अच्छी तरह सड़े गोबर की खाद 10 टन प्रति एकड़ के हिसाब से यवहार करें। खाद यदि अच्छी तरह सड़ा न होगा तो दीमक लगने का भय रहेगा।

बीज के लिए खेत की तैयारी एंव समय:- बीज उगने के लिए नर्सरी की क्यारियाँ ऊँची व जल निकास की सुविधायुक्त होनी चाहिए। इस तरह की क्यारियों की मिट्टी अच्छी जुताई कर भुरभुरी बना लेनी चाहिए।

बरसाती मिर्च की खेती हेतु बीज नर्सरी में मई-जून के महीने में बोनी चाहिए। बिचड़ों की रोपाई मध्य जून से मध्य जुलाई तक कर देनी चाहिए। जाड़े की फसल हेतु बीज बोने का समय नवम्बर महिना है। बीज की रोपाई फरवरी के दूसरे पखवाड़े में करते हैं। बीज की मात्रा 200-400 ग्राम प्रति एकड़ होनी चाहिए।

बरसाती मिर्च की खेती हेतु बीज नर्सरी में मई-जून के महीने में बोनी चाहिए। बिचड़ों की रोपाई मध्य जून से मध्य जुलाई तक कर देनी चाहिए। जाड़े की फसल हेतु बीज बोने का समय नवम्बर महिना है। बीज की रोपाई फरवरी के दूसरे पखवाड़े में करते हैं। बीज की मात्रा- 200-400 ग्राम प्रति एकड़ होनी चाहिए।
मिर्च कैप्सिकम की खेती

नर्सरी खेत का क्षेत्रफल:- एक एकड़ में मिर्च लगाने के लिए बिचड़ा तैयार करने हेतु ढाई डिसमिल जमीन में बीज गिराते हैं।

रोपाई की विधि:- 4-8 सप्ताह के मिर्च के बिचड़ों की रोपाई समतल खेत में अथवा मेढ़ों पर किया जा सकता है। पंक्तियों के बीच की दुरी 2 फुट तथा पौधों व बीच की दूरी डेढ़ फुट रखते हैं।

रोपाई के पूर्व नर्सरी में बिचड़ों की सिंचाई 15 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए। रोपने के लिए उखाड़ने के एक दिन पूर्व नर्सरी के क्यारियों की सिंचाई करनी चाहिए। ऐसा करने से जड़ नहीं टूटते। रोपाई हमेशा शाम में अथवा धूप कम रहने या नहीं रहने पर करें। रोपाई के पूर्व व बाद में थालों में पानी दे दें।

नर्सरी में बीज बोने की विधि:- बोने के एक दिन पूर्व बीजों को पाने में भिगों देना चाहिए। भिंगोने के पूर्व इन्हें अच्छी तरह हाथों से रगड़ना चाहिए। बीजों को आर्द्रगलन से बचाव हेतु एग्रोसन जी.एन अथवा तूतिया के 1.25% घोल से उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को छिंट कर नहीं, बल्कि पंक्तियों में बोना चाहिए जो निकाई-गुड़ाई एवं बिचड़ा निकालने में सहायता करता है।

पंक्तियों की दूरी डेढ़ से दो इंच हो। बीजों की बुआई के उपरान्त अच्छी तरह सड़े पत्तों से ढँक देना चाहिए। यदि इसकी व्यवस्था न हो तो बालू का उपयोग किया जा सकता है। क्यारियों के चारों तरफ दीमक मार दवाई का एक घेरा बना देना चाहिए, बीज बुआई के ठीक बाद सिंचाई करें।

फसलबाज़ार

15 thoughts on “मिर्च कैप्सिकम की खेती एवं व्यापारिक महत्व।

  1. Considering ‘chili’…it has a great elemental value…..it carry great amout of Molbdenum…which is a element….so prmoting chili now a days as nutritive value under vegetables gives people information about its importance….great effort keep it up you people….

  2. Bhut khub Aman…..ab capsicum ki jankri Bihar ke chote chote gaon ke kisano ho jaye to usko or profit kr skta hai…

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