खजूर की खेती, किस्में एवं व्यापारिक लाभ।

खजूर मध्यम आकार का ताड़ प्रजाति का पेड़ है, जिसकी ऊँचाई 15 मीटर से 25 मीटर तक होती है। इसकी खेती बड़े पैमाने पे की जाती है। खजूर की खेती बहुत समय पहले से जा रही है, जिस कारण से इसका असल मूल स्थान पता करना मुश्किल है।

परिचय:- खजूर मध्यम आकार का ताड़ प्रजाति का पेड़ है, जिसकी ऊँचाई 15 से 25 मीटर तक होती है। इसकी खेती बड़े पैमाने पे की जाती है। खजूर की खेती बहुत समय पहले से की जा रही है, जिस कारण से इसका असल मूल स्थान पता करना मुश्किल है।

लेकिन इसकी खेती, जलवायु के अनुसार शुष्क और अर्द्ध-शुष्क जगह जहां बहुत गर्मी, कम वर्षा और बहुत कम आर्द्रता हो वहां की जाती है। भारत में गुजरात, राजस्थान, केरला और तामिलनाडू में खजूर का मुख्य उत्पादक होता है।

लेकिन इसकी जलवायु के अनुसार शुष्क और अर्द्ध-शुष्क जगह जहां बहुत गर्मी, कम वर्षा और बहुत कम आर्द्रता हो वहां की जाती है। भारत में गुजरात, राजस्थान, केरला और तामिलनाडू में खजूर का मुख्य उत्पादक होता हैं।
खजूर

फायदे:- इसमें काफी पोषक तत्व पाये जाते है जैसे की शूगर, कैल्शियम, सेलेनियम, कॉपर, अमीनो एसिड, फॉस्फोरस, पोटाशियम और आयरन जो हमारे सेहत के लिए अच्छे होते है।

खजूर खाने से हृदय रोग को कम करने, हड्डियों को मजबूत, कब्ज से राहत, गर्भावस्था, वजन बढ़ाने और दस्त को नियंत्रित करने, त्वचा निखारने, सर्दी, जुकाम, जोड़ों का दर्द, पेट दर्द में भी मददगार है।

किस्में

मेडजूल खजूर – यह खजूर शुगर फ्री होता है, जिस कारण से डायबिटीज के मरीज भी इसे खा सकते है। इसमें विटामिन, प्रोटीन और मिनरल्स होता है, जिससे यह शरीर को ऊर्जा देकर शरीर की थकान कम करता है।

कलमी खजूर – इसमें रोग रोक की क्षमता बहुत अधिक होता है और इस खजूर में फ्रक्टोज और ग्लूकोज है, जो इम्यूनिटी बढ़ाने में बहुत मदद करता है। इसे खाने से डायरिया और पेट संबंधी परेशानी नहीं होती है।

खुनेजी खजूर – यह खजूर का पौधा सामान्य रूप से बढ़ता है, जबकि इसके फल जल्दी पक जाते है। इससे लगभग 60 किलो तक फल मिल जाता है और पक जाने पर इसका रंग लाल हो जाता है।

बरही खजूर – यह मध्य अगस्त में पकने वाली किस्म है। इसका आकार अंडाकार, रंग पीला और औसतन भार 12.2 ग्राम होता है।

इसमें टी एस एस की मात्रा 25.4 प्रतिशत होता है, खजूर की अन्य किस्मों में अजवा खजूर, अंबर, खुदरी, सुक्कारी, सफावी, मबरूम और जाहिदी आदि होती है।

उपयुक्त जलवायु:- ज्यादातर खजूर की खेती मरुस्थलीय में की जाती है जहाँ बहुत गर्मी, कम वर्षा और बहुत कम आर्द्रता हो। ठण्ड में रात के समय की ज्यादा ठंड और पाला खजूर के पेड़ के लिए नुक्शान पंहुचा सकती है।

इसीलिए खजूर को ठंड और बारिश वाले जगह में नही लगाते है। इसके पौधे को शुरुआत में 30 डिग्री के आस-पास तापमान चाहिए होता है, और फल लगने पर 45 के आस-पास तापमान चाहिए होता है।

उपयुक्त मिट्टी:- खजूर की खेती के लिए रेतीली किस्म की उचित जल निकासी वाली खेत चाहिए होती है। इसकी खेती उस जगह पर नहीं की जा सकती जिस जगह के 2-3 मीटर तक कठोर पथरीली भूमि होती हो। इसकी खेती के लिए खेत का pH मान 7-8 के बीच होना चाहिए।

खेत की तैयारी:- खजूर की खेती के लिए सबसे पहले खेत की जुताई कर मिट्टी को अलट-पलट कर देना चाहिए।

उसके बाद कल्टीवेटर चलाकर दो तिरछी जुताई कर देना चाहिए। उसके बाद खेत में पाटा चला देना चाहिए जिससे मिट्टी समतल हो जाएगी।

फिर एक मीटर व्यास वाले एक मीटर गहरे गड्डे तैयार लेना है और उसमे पुरानी गोबर खाद, उचित मात्रा में फोरेट या कैप्टान भर देना है। गढ्ढे पौधा लगाने से 1 महीने पहले तैयार कर देना है और उसकी सिचाई भी कर देनी है।

खजूर के खरपतवार नियंत्रण, रोग एवं रोकथाम

पौधे की तैयारी:- खजूर की रोपाई बीज और पौधे दोनों तरीके से की जाती है। बीज से पौधा बनने में और फिर उसपे फल आने में थोड़ा ज्यादा समय लग जाता है, इसीलिए किसान पौधा रोप के इसकी खेती करना ज्यादा पसंद करते है।

किसी सरकारी मान्यता प्राप्त नर्सरी से खजूर का पौधा ख़रीदा जा सकता है। इसके लिए सरकार 70% अनुदान देती है। इसके पौधे को खेत में लगाने के लिए दो गड्ढे के बीच में 6-8 मीटर की दूरी होनी चाहिए।

दो गड्डों के बीच में एक और गड्डा बनाकर उस गड्डे में खजूर के पौधे को रोपा जाता है। एक एकड़ में लगभग 70 खजूर के पौधे लगाए जा सकते हैं। इसके पौधे को खेत में लगाने का सही समय अगस्त होता है।

खजूर की खेती शुष्क और अर्द्ध-शुष्क जगहों पे की जाती है, और इसे ज्यादा पानी की जरुरत भी नही होती है इसीलिए गर्मियों में पौधे को 15-20 दिन के बाद और ठंढ में 1 सिंचाई काफी है।
खजूर की खेती

पौधों की सिंचाई:- खजूर की खेती शुष्क और अर्द्ध-शुष्क जगहों पे की जाती है, और इसे ज्यादा पानी की जरुरत भी नही होती है इसीलिए गर्मियों में पौधे को 15-20 दिन के बाद और ठंढ में 1 सिंचाई काफी है।

पर जब पौधे पे फल आने लगे तब पौधे के पास नमी बनाए रखने के लिए जरुरत के अनुसार सिंचाई कर देनी चाहिए।

उर्वरक की मात्रा:- खजूर के पौधे को शुरुआत में लगातार 5 सालो तक सामान्य रूप से 25-30 किलो पुरानी गोबर की खाद देते रहना चाहिए।

जब पौधे पे फल लगने लगे तो खाद की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। इसके अलावा साल में 2 बार प्रति एकड़ के हिसाब से 4 किलो यूरिया देना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण:- खेत में खरपतवार रोकने के लिए लगातार नीलाई गुड़ाई करते रहना चाहिए। 1 साल में 5-6 नीलाई गुड़ाई कर देने से खरपतवार नियंत्रण में रहता है और पौधा अच्छे से विकास करता है और फल भी अच्छा देता है।

खेत की खाली जगह पे भी जुताई करते रहना चाहिए, इससे जमीन में उगने वाली खरपतवार खत्म हो जाते है।

रोग और रोकथाम

दीमक – दीमक पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाता है, और धीरे-धीरे पूरे पौधे को खत्म कर देता है।

रोकथाम – दीमक लग जाने पर उचित मात्रा में क्लोरपाइरीफास को पानी में मिला कर पौधे के जड़ में डालना चाहिए।

सफ़ेद और लाल किट – यह किट पौधे के पत्तों पे देखा जाता है। इसके कारण पौधे और फल दोनों को नुकसान पहुंचता है।

रोकथाम – पौधों पर उचित मात्रा में एक्टामिप्रिड या इमीडाक्लोप्रिड का छिड़काव करना चाहिए।

पक्षियों का आक्रमण:- पौधों पर फल आने के समय पक्षी फलों को काटकर बहुत नुकसान पहुँचाते हैं जिससे उपज कम हो जाती हैं।

रोकथाम – उपज को पक्षियों का आक्रमण से बचने के लिए पौधों पर जाल लगा देना चाहिए।

फलों को तुड़ाई:- खजूर की तुड़ाई तीन चरणों में होती है और हर चरण के फल का उपयोग अलग-अलग चीजों में किया जाता है।

पहला चरण – जब फल ताज़े और पके हुए हों।

दूसरा चरण – फलों के नर्म पड़ने पर।

तीसरा चरण – फलों के सुख जाने के बाद, मानसून से पहले।

पहले दो चरणों के उपज से पिंडखजूर बनाया जाता है। तीसरे चरण के उपज को छुहारा के रूप में किया जाता है। दूसरे चरण के उपज को धोकर और सुखाकर भी छुहारा बनाया जाता है।

अतिरिक्त कमाई:- खेत में खजूर का पौधा लगाने के 5-6 साल बाद पौधे फल देना शुरू करती है। शुरुआत में तो कम उपज होती है, लेकिन समय के साथ-साथ उपज भी बढ़ने लगता है।

10 साल के उम्र में 50-70 किलो और 15 साल की उम्र में 75-200 किलो उपज देने लगता है। एक एकड़ में लगभग 70 पौधे लगाए जा सकते हैं।

फसलबाज़ार

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