परिचय:- कुंदरू एक ऐसी सब्जी है जिसे एक बार लगाने के बाद इसकी बेल 4-5 साल तक फल देती है। इसके बेल करीब 3 से 5 मीटर तक लंबी होती है और यह झाड़ी के सहारे फैलती है।
पहले कुंदरू की खेती एशिया और अफ्रीका के कुछ ही देशों में होती थी लेकिन अब सभी देशों में अलग अलग नाम से इसकी खेती की जाने लगी है। इसमें अनेक पोषक तत्व पायी जाती है जिस वजह से इसे औषधि के रूप में भी उपयोग किया जाता है।

फायदे:- इसमें फाइबर, विटामिन-ए और सी, कैल्सियम, फ्लेवोनोइड्स, एंटी बैक्टीरियल और एंटी-माइक्रोबियल, आयरन आदि पायी जाती है।
इसे खाने से पाचन, कैंसर, मधुमेह, किडनी स्टोन, हृदय रोग और नर्वस सिस्टम से जुड़े रोगों में सहायता मिलती है। इसके साथ ही इससे डिप्रेशन, वजन घटाने में , थकान आदि में भी फायदेमंद है।
किस्मे:- कुंदरू की स्थानीय किस्में ही उगाई जाती है जिसमें फलों के आकार के अनुसार 2 किस्मे है – गोल या अंडाकार वाली किस्में जिनके फल हल्के एवं पीले रंग कि होते है और लम्बे आकार वाली किस्में जिनके फल अपेक्षाकृत बड़े और लम्बे होते हैं।
जलवायु:- इसकी खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु वाले जगह जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 100-150 से.मि. तक हो उपयुक्त होता है। नयी तकनीकियों से हर सिंचित क्षेत्र में कुंदरू की खेती आसानी से की जा सकती है।
मिट्टी:- भारी मिट्टी छोड़कर किसी भी मिट्टी में कुंदरू की खेती की जा सकती है। जीवांशयुक्त रेतीली या दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी प्रबंध हो उपयुक्त मानी जाती है। इसकी लताएं पानी के रुकाव को सह नहीं सकती इसीलिए जल निकास प्रबन्ध होना बहुत जरुरी है।
खेत की तैयारी:- खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले देशी हल से 2-3 बार जुताइ करके पाटा लगा देना चाहिए। 2 पंक्तियों के बीच 1.5 मीटर की दुरी और 2 पौधे के बीच 1.5 मीटर की दूरी रखते हुए 30 सेंटीमीटर लम्बा, चौड़ा और गहरा गड्डा खोद उसमे 4-5 किलो गोबर भर देना चाहिए।
बुआई:- कुंदरू की बुआई जुलाई में 4-12 महीने पुरानी लताओं की 15-20 सेंटीमीटर लम्बी और 1.5 सेंटीमीटर मोटी 5-7 गांठ की कलमें काटकर किया जाता है। इन कलमों को जमीन में, गोबर, मिट्टी मिलाकर भरे हुए पॉलीथीन के थैलों में लगा के सिंचाई कर देखभाल करे इससे लगभग 50-60 दिनों बाद कलमों में जड़े आ जाती है।
पौधरोपण:- सितम्बर- अक्टूबर में कलमों को रोपा जाता है। इसके लिए पहले से तैयार की गई कलमों के पॉलीथीन को हटाकर मिट्टी के साथ ही गड्ढे में रोप दें। 10 मादा पौधों के बीच 1 नर पौधे को लगाने से उपयुक्त फसल प्राप्त होता है।

सिचाई:- पहली सिंचाई कलमों को रोपने के तुरंत बाद दी जाती है और उसके बाद जरुरत के अनुसार देते है। ठंड के दिन सिंचाई की विशेष आवश्यकता नहीं होती लेकिन गर्मी के दिनों में 5-6 दिन के अंतराल पर सिंचाई कर ले। बरसात में जल निकास का प्रबंध होना आवश्यक है।
खाद और उर्वरक:- कुंदरू की खेती में ठंड के दिन में सुषुप्ता अवस्था रहती है और फरवरी–मार्च में इनसे नई शाखाएं आ जाती है। इस समय प्रति थाला में 1-2 किलो गोबर, 1 किलो सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट, 1 किलो भू-पावर, 1 किलो माइक्रो नीम, 1 किलो माइक्रो फर्टी सिटी कम्पोस्ट,1 किलो माइक्रो भू-पावर और 1-2 किलो अरंडी की खली को मिट्टी में मिलाकर के प्रति थाला में भर देना चाहिए।
रोग और रोकथाम:- कुंदरू की फसल में बहुत से कीड़े-मकोड़े की समस्या देखी जाती है। जैसे की फल की मक्खी जो फलों में छेद कर उसमें अंडा दे देती है जिस वजह से फल सड़ जाते है। या फली भ्रंग जो धूसर रंग का गुबरैला होता है जो पत्तियों में छेद करके उन्हें हानि पहुंचाता है।
या फिर चूर्णी फफूंदी जिसके कारण पत्तियों और तनों पर फफूंदी जम जाती है और पत्तियां पीली पड़कर व मुरझा जाती हैं।
इन सब समस्यायों के रोकथाम के लिए गौमूत्र या नीम का काढ़ा को माइक्रो झाइम के साथ मिश्रण बना कर छिड़काव करें।
कटाई और पैदावार:- कुंदरू मार्च-अप्रैल के महीने में उपज देने लगती है जो सिलसिला अक्टूम्बर तक चलती है। इसे पकने के बाद ही तोड़ना चाहिए अन्यथा कच्चे में ही तोड़ने से फल सख्त और अन्दर का गुदा लाल हो जाता है जो खाने के लिए उपयुक्त नहीं होते। इसकी औसत उपज 240 क्विंटल प्रति हेक्टर है।