इतिहास,
माना जाता है कि लीची सबसे पहले चीन में 1059 में जंगली पौधे से बागों तक पहुंची। चीन में लीची को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।
करीब 700 साल तक बाकी दुनिया में लीची को लेकर कोई जानकारी नहीं थी। 18वीं सदी की शुरुआत में फ्रांसीसी यात्री पियरे सोन्नरे ने दक्षिणी चीन की अपनी यात्रा के दौरान इस फल को चखा और इसके बाग देखे। इसके बाद यह मैडागास्कर और भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिण अफ्रीका, वियतनाम, ब्राजील, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका तक पहुंची।
![त्रिपुरा में लीची की खेती 1700 के आखिर में शुरू हो गई थी। फिर वहां से कुछ सालों बाद असम, बंगाल और बिहार तक पहुंची।](https://fasalbazaar.in/wp-content/uploads/2020/05/litchitree-1024x768.jpg)
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशाल नाथ बताते हैं कि भारत में लीची 1770 के आसपास चीन से आई। इतिहास बताता है कि यह पहले पूर्वोत्तर इलाके में आई। त्रिपुरा में लीची की खेती 1700 के आखिर में शुरू हो गई थी। फिर वहां से कुछ सालों बाद असम, बंगाल और बिहार तक पहुंची। बिहार में लोगों के पास जमीन के बड़े-बड़े टुकड़े थे, ऐसे में यहां इसकी बागवानी की जाने लगी।
भारत में अभी करीब साढ़े छह से सात लाख टन लीची का उत्पादन हो रहा है। दुनिया में चीन के बाद भारत ऐसा देश है, जहां सबसे ज्यादा लीची उगाई जाती है। 50 लाख से ज्यादा लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हुए हैं। देश में लीची उत्पादन में बिहार का हिस्सा लगभग 50 फीसदी है।
लीची के बाज़ार पर कोरोना का प्रभाव।
लीची के बाज़ार,
वैसे तो लीची हर शहर में मिल जाती है। लेकिन दिल्ली, अहमदाबाद, पुणे, हैदराबाद, चेन्नई, बनारस ऐसे शहर हैं। जहां बड़ी मात्रा में माल बिकता है। यहां 200 से 250 रुपए किलो तक भाव है। देश के अलावा मिडिल ईस्ट और यूरोप में भी लीची का निर्यात होता है।
![वैसे तो लीची हर शहर में मिल जाती है। लेकिन दिल्ली, अहमदाबाद, पुणे, हैदराबाद, चेन्नई, बनारस ऐसे शहर हैं। जहां बड़ी मात्रा में माल बिकता है।](https://fasalbazaar.in/wp-content/uploads/2020/05/litchi-2.jpg)
हालांकि सही गाइडलाइन न होने से चीन के मुकाबले एक्सपोर्ट ज्यादा नहीं है। लेकिन इस कोरोना महामारी के कारण बाज़ारें सिमट गई है। इससे जुड़े लाखों लोग रोजगार से वंचित हो रहे हैं।
लीची की फसल तो आ गई है। लेकिन कोरोना के प्रकोप से बाज़ारों के पुरानें स्वरूपों पे संकट के बादल मंडरा रहें हैं। पारंपरिक बाज़ारों के वापस अपने स्वरूप में आने का अभी कोई अनुमान नहीं है।
लेकिन फसल को तो अपने समय से ही आना और पकना है। ऐसे में आवश्यक है ऑनलाइन बाजार की जिससे उपभोक्ताओं तक सीधे सामानों को पहुँचाया जा सके।
आप सोचेंगे की क्या यह उतना बड़ा बाजार दे पाएगा ? यकीन मानिए समय रहते यदी आपने बाज़ार को आज दिया तो बाज़ार आपको बेहतर कल देगा।
Litchi Ka time aa gaya h par aise waqt mein hum jaise logon tak ye pahunch nhi pa raha h.
Nice content