कोरोना:-
यह एक वैश्विक त्रासदी है। प्लेग के पश्चात ऐसी त्रासदी पहली बार आई है। जिससे पूरा विश्व ग्रस्त है। ना तो इसके विषय में अधिक जानकारी है न ही कोई दवा की उपलब्धता। बस हमें एक बात की जानकारी है सोशल डिस्टेंसिंग जिससे कोरोना से बचा जा सकता है।
इसका तात्पर्य यह है की व्यक्ति को एक दूसरें से एक निश्चित दूरी बनाकर रखनी पड़ेगी। दो गज़ दूरी को जीवन का मंत्र बताया गया है। कम से कम लोगो के संपर्क में रहेंगे तो ज्यादा से ज़्यादा सुरक्षित रहेंगे। अब इस दौर में यदी उपभोक्ता छोटे मंडियों और बाज़ारों का रुख करते हैं। तो अपने साथ परिवार और समाज को भी संकट में डाल देंगे। और यदी बाज़ारों से दूर रहें तो न उनकी जरुरतें पूरी हो सकती है, ना व्यापारियों की।
ऐसा नहीं है की कोरोना संकट महीने, दो महीने या छह महीने में समाप्त होने जा रहा है। अब हमें कोरोना के साथ जीने की आदत बनानी होगी। कोरोना से बचने के तरीकों को जीवन का हिस्सा बनाना होगा। ऐसे में आपको क्या लगता है? क्या मंडियों और बाजारों का यह स्वरूप कितना कारगर होगा?
क्या जब तक कोरोना संकट है तब तक बाजारों को बंद रखा जा सकता है? ये कहीं से संभव नहीं है।
अनाज, फल और सब्जियों पर प्रभाव।
अनाजों का भंडारण तो किया भी जा सकता है। लेकिन क्या फलों और सब्जियों का भंडारण लंबे समय तक के लिए संभव है? क्या लोगों की जरूरतें समाप्त हो गई हैं? क्या मौसमी फलों और सब्जियों का भविष्य बाज़ार तय करेगा? इसके साथ और भी अनेक सवाल हैं और सबका एक ही जबाब है “नहीं”।
न तो जरूरते समाप्त हुई हैं, न आपका भविष्य पारंपरिक बाजार के हाथों में है। ज़रूरत है आपको ख़ुद को बदलने की समय से हाथ मिलाने की।
स्वामी विवेकानंद जी ने एक बात कही थी। “यदी प्यासा कुआँ के पास नहीं जाएगा तो कुआँ खुद प्यासे के पास आएगा”।
जी बिलकुल यदी लोग बाज़ार नहीं आ सकते तो हम बाज़ार को लोग तक पहुंचाएंगे। और इसका एक ही माध्यम है डिजिटल बाज़ार सिर्फ एक एप में पूरा बाजार। जहाँ लोग अपने जरूरतों को पूरी कर सकते हैं चाहे वो क्रेता हो या विक्रेता। और डिजिटल बाज़ार ही साधन है सरकारी निर्देशों का पालन करते हुए जरूरत पूरी करने की।
ये जरूरत उपभोक्ता की भी है और उत्पादक की भी। ये भविष्य की माँग है हमें इसके साथ कदम मिलाकर चलना ही होगा।