परिचय:- लोबिया हरी फली व, हरी खाद तथा सुखी बीज के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। यह पूरे भारत में उगाये जाने वाली फसल है, इसका मूल अफ्रीका है। यह सूखे में भी उगने योग्य है एवं जल्दी उत्पन्न होने वाली फसल है। इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है।
लोबिया प्रोटीन, कैल्शियम और लोहे का प्रमुख श्रोत माना गया है। पंजाब के उपजाऊ क्षेत्रों में इसकी अधिक खेती की जाती है।
जलवायु:-लोबिया की खेती के लिए गर्म व आर्द्र जलवायु उपयुक्त है। तापमान 25 -37 डिग्री सेल्सियस तथा वर्षा वार्षिक 750 से 100 cm की आवश्यकता होती है।

मृदा:– इसे अनेक प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। पर यह अच्छे जल निकास वाली बालुई मिट्टी में अच्छे पैदावार देती है।
प्रसिद्ध किस्में तथा पैदावार
कोवपिया 88 – यह किस्म पूरे राज्य में खेती करने के लिए उपयुक्त है। इसके औसतन पैदावार 4.4 क्विंटल प्रति एकड़ तथा हरे चारे के रूप में 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
सी एल 367 – इस किस्म को चारा तथा बीज प्राप्त करने केे उद्देश्य से उगाया जाता है। इसके बीज की पैदावार 4.9 क्विंटल प्रति एकड़ और हरे चारे की पैदावार 108 क्विंटल प्रति एकड़ औसतन है।
ज़मीन की तैयारी:- दाल के फसल की तरह इसके लिए भी सामान्य बीज बैड तैयार किए जाते हैं। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत की दो से तीन बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें।
बुआई का समय:- इस फसल की खेती के लिए मार्च से मध्य जुलाई तक उचित समय है। बुआई के समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 cm तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 cm रखें 3-4 cm गहराई में ड्रिल की सहायता से करें।
लोबिया की सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रन।
बीज की मात्रा:-कोपेरा-88 किस्म के 20-25 किलोग्राम बीजों का प्रयोग और सी.एल-367 किस्म के 12 किलोग्राम बीज हरे चारे के लिए उत्तम माना गया है।

बीजों का उपचार:– बिजाई से पहले उपचार करने हेतु बीजों को एमीसान-6 2.5 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 50 प्रतिशत, डब्लयू पी-2 प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करें।
खाद:- प्रति एकड़ यूरिया 17 kg तथा एस.एस.पी 140 kg उचित है। पोटास जरूरत के अनुसार, नाइट्रोजन 7.5 kg, फास्फोरस 22 kg दें।
खरपतवार नियंत्रन:– फसल को खरपतवार से बचाने के लिए 24 घंटों के अंदर पैंडीमैथालीन 750 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर डालें।
सिंचाई:– फसल की अच्छी वृद्धि के लिए 4-5 सिंचाई आवश्यक हैं। यदि फसल मई के महीने में उगाई जाये तो 15 दिनों के अंतराल पर मॉनसून आने से पहले सिंचाई करें।
किट:- तेला और काला चेपा, बालों वाली सूंड़ी।
बीमारी:- बीज गलन तथा पौधों का नष्ट होना।
फसल की कटाई:– बुआई के 55 से 65 दिनों के बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
Very nice website for farmers. I think every should promote it so that every farmer can get the benefits
Nice website to gain knowledge
👍👍
Very nice website for farmers
Bahut badhiya 👌👌👍
👍👍
👍👍👍
Great work bro 🔥
Shi h 🔥
Keep it up you are helping many ❤