परिचय:- मसूर एक प्रोटीन युक्त, गहरी संतरी, और संतरी पीले रंग की दाल की फसल है। मुखय रूप से भारत में इसकी खेती उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में की जाती है, खास करके बिहार के ताल क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जाती है। दलहनी वर्ग में यह सबसे प्राचीनतम और सर्वाधिक पौष्टिक मानी जाती है।
मसूर का इस्तेमाल खाने के लिए, विविध नमकीन और मिठाईयाँ बनाने में, गेहूं के आटे में मिलाकर ब्रैड और केक बनाने में, और इसके स्टार्च को कपड़ों और छपाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
फायदे:- मसूर के गुण का फायदा लेने के लिए उसे कई तरह से इस्तेमाल किया जाता है। इसमें फाइबर प्रोटीन, वसा, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, रेशा, कैल्शियम, एंटीऑक्सीडेंट आदि पाये जाते है। इसके इस्तेमाल से पाचन में सहायक, मोटापा, मधुमेह, कैंसर और हृदय रोग, कोलेस्ट्रॉल आदि के जोखिम को कम करने में मदद कर सकती है।
किस्में:- मसूर की किस्मों को दो भागो में डाला गया है;
छोटे दाने वाली किस्में:- जिसमे पूसा वैभव, पी.एल.-5 पन्त मसूर-4, पन्त मसूर-406, पन्त मसूर-639, डी.पी.एल.-32 आदि शामिल है।
बड़े दाने वाली किस्में:- जिसमे नरेन्द्र मसूर-1, जे.एल.एस.-1, जे.एल.एस.-2, के.-75 (मलका)ए, एल.-4076, एल.एच. 84-8, आई.पी.एल.-81 आदि शामिल है।
जलवायु:- इसकी खेती करने के लिए 18°-20° सेल्सीयस तापमान 100 सेंटीमीटर बारिश के दौरान अच्छे से किया जा सकता है। कटाई करने के समय का तापमान 22°-24° सेल्सीयस उपयुक्त होता है।
मिट्टी:- इसकी खेती के लिए नमक वाली, क्षारीय और जल जमाव वाली मिट्टी छोड़, सभी किस्मों की मिट्टी जिसमे मिट्टी भुरभुरी और नदीन रहित हो उपयुक्त होती है।
खेत की तैयारी:- इसकी खेती के लिए खेत तैयार करने के लिए कम जुताई की आवश्यकता होती है। भारी मिट्टी वाली खेत में 1 गहरी जुताई कर 3-4 बार हैरो से क्रॉस जोताई करे जिससे खेत समतल हो जाये। बुवाई के समय खेत में उचित नमी मौजूद होनी चाहिए।
बुवाई का समय:- प्रति एकड़ 12-15 किलो बीज लेकर उसे 3 ग्राम कप्तान या थीरम से प्रति किलो बीज का उपचार कर मध्य अक्तूबर मध्य नवंबर तक बोये।बुवाई के लिए पोरा ढंग या खाद और बीज वाली मशीन का इस्तेमाल क्र या हाथो से बीज छिड़क कर पंक्तियों की दूरी 20-22 सेंटीमीटर और बीज को 3-4 सेंटीमीटर गहराई बोया जाना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक:- अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खेत में प्रति एकड़ 5 किलो नाइट्रोजन (12 किलो यूरिया), 8 किलो फासफोरस (50 किलो सिंगल सुपर फासफेट) बुवाई के समय दे। बीजों को बुवाई से पहले राइज़ोबियम से उपचार कर ले या खेत में फासफोरस की मात्रा दोगुनी कर दे।
सिंचाई:- मसूर की खेती बारानी फसल के तौर पर होती है और उत्तम जलवायु में इसे 2-3 बार सिंचाई की जरुरत होती है। पहली हलकी सिचाई बुआई के तुरन्त बाद, दूसरी सिंचाई 4 सप्ताह बाद और फिर फूल निकलने और फलियां भरने की अवस्था में करनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण:- अक्सर सिंचाई के बाद खेत में कई खरपतवार देखा जाता है। मसूर की खेती के समय भी खेत में बाथू, अणकारी और चटरी मटरी खरपतवार निकल आते है। इसके रोकथाम के लिए 2 गोडाई पहली 30 दिन और दूसरी 60 दिनों के बाद करें। ख़ास ध्यान दे की 45-60 दिनों तक खेत खरपतवार मुक्त रहे। इसके अलावा बुआई के 2-4 दिन के अंदर स्टंप 30 ई सी 550 मि.ली. छिड़काव करें।
कीट, रोग एवं रोकथाम
फली छेदक:- यह सुंडी पत्ते, डंडियां और फूलों को खाती है जिससे उपज को नुकसान पहुंचता है। इसकी रोकथाम के लिए प्रति एकड़, 90 लीटर पानी में हेक्ज़ाविन 900 ग्राम 50 डब्लयु पी को मिलाकर फूल लगने पर छिड़के और जरुरत पड़ने पर दूसरा छिड़काव 3 सफ्ता बाद कर दे।
कुंगी बीमारी:- इस बीमारी में टहनियां, पत्ते और फलियों के ऊपर हल्के पीले रंग के उभरे हुए धब्बे पड़ जाते हैं जो धीरे धीरे बड़े हो जाते है जिससे कई बार पौधा पूरी तरह से सूख जाता है। इसकी रोकथाम के लिए प्रति एकड़, 200 लीटर पानी में 400 ग्राम M-45 को डालकर छिड़काव करें।
झुलस रोग:- इस बीमारी में टहनियां और फलियों के ऊपर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जो धीरे धीरे लंबे या गोलाकार हो जाते है जिससे पौधे को नुकसान पहुंचता है। इसकी रोकथाम के लिए प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में 400 ग्राम बाविस्टिन डालकर छिड़काव करें।
तुड़ाई:- जब फलियां पक जाएं और पौधे के पत्ते सूख जाएं तब फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसे सही समय पर द्राती से काट लेना चाहिए देरी होने पर फलियां झड़नी शुरू हो जाती है। प्राप्त हुए उपज के दानों को साफ कर धूप में सुखा के 12% नमी पर स्टोर कर लें।