अजमोद की खेती, किस्में तथा व्यापारिक लाभ।

अजमोद जिसे अंग्रेजी में पार्सले कहा जाता है, अपियासी परिवार की प्रजाति की एक जड़ी बूटी है जिसे एक सब्जी के रूप में भी खेती की जाती है। यह ठंडे मौसम की फसल है, जो समृद्ध, नम मिट्टी में अच्छे से उगाया है। यह उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों का वार्षिक जड़ी बूटी है। सामान्य रूप से इसके बीज की परिपक्व होने के बाद पौधा मर जाता है।

परिचय:- अजमोद जिसे अंग्रेजी में पार्सले कहा जाता है, अपियासी परिवार की प्रजाति की एक जड़ी बूटी है, जिसकी सब्जी के रूप में भी खेती की जाती है। यह ठंडे मौसम की फसल है, जो समृद्ध, नम मिट्टी में अच्छे से उगाया जा सकता है। यह उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों का वार्षिक जड़ी बूटी है। सामान्य रूप से इसके बीज के परिपक्व होने के बाद पौधा मर जाता है।

जिन जगहों पर यह द्विवार्षिक के रूप में बढ़ता है, पहले वर्ष में, यह कई पत्तियों के साथ एक त्रिपिनेट रोसेट बनाता है। दूसरे वर्ष में यह विरल पत्तियों के साथ 30 इंच लंबा तना बनाता है जिसमे पीले से पीले-हरे रंग के फूल लगते है। इसका जड़ सर्दियों में खाने के लिए इकट्ठा करके रखा जाता जाता है। इसके बीज 2-3 मिलीमीटर लंबे अंडाकार के होते हैं और शीर्ष पर प्रमुख शैली के अवशेष होते हैं।

इसका अधिकतर इस्तेमाल सूप, सलाद, सब्जियां सुगंधित एवं सुशोभित करने के लिए किया जाता है | इसकी सुगंध से प्याज की दुर्गंध कम हो जाती है। यह काफी महंगी होती है और इसका ज्यादातर इस्तेमाल रेस्टोरेन्ट, होटल, रेस्टोरेन्ट तथा उच्च स्तर के शहरी क्षेत्रों में किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों के लोग कम पसन्द करते हैं।

किस्में:- अजमोद की विभिन्न किस्में हैं जिनमे क्लर्ड लीयन, मास क्लर्ड, डबल क्लर्ड, चैपियन आदि शामिल है।

फायदे:- अजमोद में कई शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट तत्व गुण, एंटीबैक्टीरियल गुण, विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, कैल्सियम, प्रोटीन व खनिज-लवण आदि मौजूद होते हैं जो स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाते हैं। यह हड्डियों के लिए, पाचन में, हृदय के लिए, इम्यूनिटी मजबूत करने के लिए और रक्त शर्करा को विनियमित आदि के लिए अच्छा होता है।

जलवायु:- यह ठंडे जलवायु का पौधा है जिसे ठंड के मौसम में कम आर्द्रता और 22° – 30° सेल्सीयस तापमान उपयुक्त होता है।

मिट्टी:- इसकी खेती के लिए भूमि दोमट या हल्की बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होता है लेकिन हल्की व भारी सभी प्रकार के नम मिट्टी में, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी, पूर्ण सूर्य के साथ की रौशनी भी उगाया जा सकता है।

खेत की तैयारी:- खेत की तैयारी के लिए सबसे पहले खेत को अच्छे से देशी हल या ट्रैक्टर हैरो, कल्टीवेटर द्वारा 2-3 बार जुताई करें। भारी मिट्टी में 1-2 जुताई ज्यादा करे। ध्यान रखे की अन्तिम जुताई के समय खरपतवार, ढेले, घास बिकुल भी न रहें। इसके साथ ही खेत में जल निकासी प्रबंध करे।

अजमोद में कई शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंटतत्व गुण, एंटीबैक्टीरियल गुण, विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, कैल्सियम, प्रोटीन व खनिज-लवण आदि मौजूद होते हैं जो स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाते हैं। यह हड्डियों के लिए, पाचन में, हृदय के लिए, इम्यूनिटी मजबूत करने के लिए और रक्त शर्करा को विनियमित आदि के लिए अच्छा होता है।
अजमोद की खेती

पौधा रोपण:- अजमोद आमतौर पर बीज के द्वारा उगाया जाता है। बीज कोट में फुरानोकौमरिन के कारण अक्सर इसका अंकुरण धीमा होता है और इसमें 4-6 हफ्ते लगते हैं। बीज बोने के लिए सितम्बर-अक्टूबर और पहाड़ी जगहों में अप्रैल-मई उचित समय होता है।

प्रति एकड़ 200-300 ग्राम बीज को 24 घंटे पानी में भिगोकर रखने के बाद ही बोए जिससे उसके अंकुरण आसानी से हो सके। बीज बोने के लिए नर्सरी में 10-15 सेंटीमीटर उठी क्यारियां तैयार करें और खाद को अच्छे से मिट्टी में मिला कर 6-8 सेंटीमीटर दूर पंक्तियों में बोए। पौधों के 10-15 सेंटीमीटर होने पर पौधशाला में 30 सेंटीमीटर दुरी पर रोपाई करना चाहिए।

सिंचाई:- इसकी पहली सिंचाई पौध रोपण के तुरन्त बाद और बाद में हर 10-12 दिन के बाद 6-7 बार करे।

खाद एवं उर्वरक:- अजमोद की खेत में 15 टन सड़ा हुआ गोबर, 60 किलो नत्रजन, 80 किलो फास्फोरस तथा 60 किलो पोटाश दें। नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय ही और नत्रजन बाकी मात्रा दो बार में पौधों को रोपाई के 25 दिन व 60 दिन में देना चाहिए। नत्रजन की पूर्ति किसान खाद फास्फोरस को सिंगल सुपर फास्फेट तथा पोटाश को म्यूरेट आफ पोटाश से पूरा करें।

कटाई-छटाई:- पौधों में वृद्धि होने पर पहले बड़े पत्ते जो बाहर को फैले हुए हो उन्हें परिपक्व होने होने से पहले ही तेज चाकू या कैंची से काट देना चाहिए। साथ ही खरपतवार जैसे- घास, मोथा, व शरद ऋतु के जंगली पौधे को खेत से बाहर निकाल देना चाहिए और पौधों की जड़ के पास मिट्‌टी भी चढ़ा दे।

कीट, रोग एवं रोकथाम:- अजमोद के पौधे पर कीटों का अधिक प्रकोप नहीं होता लेकिन कभी-कभी एफिडस का प्रकोप दिखाई दे सकता है जिसके रोकथाम के लिए रोगोर, मेटोसिस्टाक्स का 1% का घोल बनाकर स्प्रे करें।

देर से बोने वाली फसल में पाउडरी मिलड्‌यू का प्रकोप दिखाई दे सकता है जिसके रोकथाम के लिए बेवस्टिन का 1 ग्रा. प्रति लीटर के घोल का स्प्रे करने से हो जाता है।

उपज:- अजमोद के पौधे से प्रति पौधा लगभग 500-800 ग्राम तथा प्रति हैक्टर 150 क्विंटल तक पत्तियों की उपज प्राप्त की जा सकती है जो कि बाजार में काफी महंगे बिकते हैं, लगभग 50-80 रुपये किलो या 10-15 रुपये की 200 ग्राम।

फसलबाज़ार

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