जबुतिकाबा की खेती, फायदे तथा व्यापारिक लाभ।

जबुतिकाबा, मायर्टेसी के परिवार का एक पेड़ है जो ब्राजील के मूल निवासी है। इसके बैंगनी-काले, सफेद गूदे वाले फल सीधे तने पर उगते हैं। इसका फल बैंगनी रंग का एक मोटी चमड़ी वाली स्लिप-स्किन अंगूर के जैसी होती है। इस फल के चार बड़े बीज होते हैं।

परिचय:- जबुतिकाबा, मायर्टेसी के परिवार का एक पेड़ है जो ब्राजील के मूल निवासी है। इसके बैंगनी-काले, सफेद गूदे वाले फल सीधे तने पर उगते हैं। इसका फल बैंगनी रंग का एक मोटी चमड़ी वाली स्लिप-स्किन अंगूर के जैसी होती है। इस फल के चार बड़े बीज होते हैं।

यह फल पकने के बाद 2-3 दिन में ही ख़राब हो जाते है इसलिए इन्हे दूर-दूर देशों में आसानी से निर्यात नहीं किया जा सकता। इसी कारण से इसकी खेती अन्य देशों में भी होने लगी है। हलाकि भारत में इसकी खेती ज्यादा नहीं होती लेकिन यह भारत में कई जगहों पर इसे व्यावसायिक रूप से उगाया जाने लगा है।

इस्तेमाल:- जबुतिकाबा को ज्यादातर कच्चा खाया जाता है। इसका उपयोग जेली, मुरब्बा, चीज़केक और शराब बनाने के लिए भी किया जाता है। फल के खाल को धूप में सुखा के उसके कसैला काढ़ा का इस्तेमाल हेमोप्टाइसिस, दस्त, अस्थमा और पेचिश के उपचार के लिए किया जाता है। इसके अलावा इसका इस्तेमाल टॉन्सिल की पुरानी सूजन के लिए एक गार्गल के रूप में भी किया जाता है।

फायदे:- यह विटामिन बी और सी, अमीनो एसिड और कई खनिजों जैसे कैल्शियम, फास्फोरस और आयरन आदि से भरपूर है। यह कैंसर को रोकने में, दस्त, मधुमेह और हृदय रोग के विकास को रोक में, जिगर के तनाव से राहत और गले के खराश में मदद करता है।

जलवायु:- यह उपोष्णकटिबंधीय पौधा है और हल्के, संक्षिप्त ठंढों को सहन कर सकते हैं लेकिन -3° सेल्सियस (26° फारेनहाइट) से कम तापमान नहीं।

मिट्टी:- इसकी खेती अच्छी तरह से सूखा, नम, समृद्ध, हल्की अम्लीय मिट्टी पर सबसे अच्छे से होती हैं। हालांकि, यह व्यापक रूप से अनुकूलनीय है, इसे क्षारीय समुद्र तट-रेत प्रकार की मिट्टी में भी उगाया जा सकता है जब तक इसे अच्छे से सिंचाई करते रहे।

खेत की तैयारी:- खेती की तैयारी के लिए खेत की अच्छे से जुताई करे जिससे खेत समतल हो जाये और खेत में मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाये। जुताई के वक़्त ही खेत में जरुरी उर्वरक भी मिला दे। खेत में जल निकासी प्रबंध भी कर दे।

यह फल पकने के बाद 2-3 दिन में ही ख़राब हो जाते है इसलिए इन्हे दूर-दूर देशों में आसानी से निर्यात नहीं किया जा सकता। इसी कारण से इसकी खेती अन्य देशों में भी होने लगी है। हलाकि भारत में इसकी खेती ज्यादा नहीं होती लेकिन यह भारत में कई जगहों पर इसे में व्यावसायिक रूप से उगाया जाने लगा है।
जबुतिकाबा की खेती

पौधा रोपण:- इसकी खेती आमतौर पर बीज रोपण के द्वारा की जाती है और प्रति बीज 4 से 6 पौधे पैदा करते हैं। ये लगभग हमेशा पॉलीएम्ब्रायोनिक होते हैं, और 20 से 40 दिनों में अंकुरित हो जाते हैं। कुछ चयनित उपभेदों को ग्राफ्टिंग या एयर-लेयरिंग द्वारा किया जा सकता है लेकिन इस तरीके से छाल के पतलेपन और लकड़ी की कठोरता के कारण बडिंग आसानी से नहीं होती है। पौधों को कम से कम 4.5-9 मीटर की दूरी पर रोपना चाहिए।

सिंचाई:- हालांकि जबुतिकाबा हल्के सूखे के प्रति सहिष्णु हैं लेकिन इससे फलों का उत्पादन कम हो सकता है, विस्तारित या गंभीर सूखे में सिंचाई की करना जरुरी होता है। अच्छे उत्पादन के लिए 18 महीने तक में हर 2 दिन में और उसके बाद जरुरत के अनुसार, ड्रिप सिस्टम द्वारा सिंचाई करते रहे । बरसात के मौसम में फूलों के हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए और शुष्क मौसम में ज्यादा फूल आने के लिए सिंचाई करना उपयुक्त होता है।

खाद एवं उर्वरक:- जबुतिकाबा खेती के शुरुआत में, इसको उर्वरक नहीं दिया जाता था क्योंकि यह प्रचलित धारणा है यह जड़ के लिए प्रतिकूल हो सकता है। बाद में यह सुझाव दिया गया कि खेत तैयार करते समय, 1 भाग अमोनियम सल्फेट, 2 भाग सुपरफॉस्फेट, और 1 भाग पोटेशियम क्लोरेट से समृद्ध कार्बनिक पदार्थ देना सुरक्षित है।

समस्या:- जबुतिकाबा के कई फूल सूखे के दौरान सूख जाते हैं और भारी बारिश के दौरान कवक के कारण जंग से प्रभावित हों जाते है जिससे उपज कम हो जाती है। इसके अलावा पँछियों द्वारा फल खा जाना भी एक मुझ्या समस्या देखा गया है। फसलों को इन संकटों से बचाने का प्रयास करें।

फसल की तुराई:- फल के पक जाने पर उसे हाथों से तोड़ना चाहिए। फल जल्दी से विक्षोभ हो जाते हैं, इसीलिए इसे तुराई के तीन या चार दिनों के भीतर ही खा लेना चाहिए।

फसलबाज़ार

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