चायोट की खेती, फायदे तथा व्यापारिक लाभ।

चायोट ककड़ी वंश के सदस्य की सब्जी है जिसे वेजिटेबल नाशपाती, मर्लिटोन, चोको और कस्टर्ड मैरो आदि के नाम से भी जाना जाता है। यह लैटिन अमेरिका, विशेष रूप से दक्षिणी मेक्सिको और ग्वाटेमाला के मूल निवासी है, लेकिन अब फ्लोरिडा, लुइसियाना, दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, नेपाल और कई अन्य देश में भी उगाया जाता है। वैसे तो यह एक मौसमी सब्जी है लेकिन कुछ जगहों पर इसकी खेती पूरे साल की जाती है।

परिचय:- चायोट ककड़ी वंश के सदस्य की सब्जी है जिसे वेजिटेबल नाशपाती, मर्लिटोन, चोको और कस्टर्ड मैरो आदि के नाम से भी जाना जाता है। यह लैटिन अमेरिका, विशेष रूप से दक्षिणी मेक्सिको और ग्वाटेमाला का मूल निवासी है, लेकिन अब फ्लोरिडा, लुइसियाना, दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, नेपाल और कई अन्य देश में भी उगाया जाता है। वैसे तो यह एक मौसमी सब्जी है लेकिन कुछ जगहों पर इसकी खेती पूरे साल की जाती है।

चायोट की फल, युवा पत्ते, उपजी और यहां तक ​​कि कंद को या तो स्टीम्ड करके या उबाल कर जूस, बेबी फ़ूड, सॉस और पास्ता में खाया जाता है। इसके तने से टोकरियाँ और टोपियाँ भी बनाया जाता है। भारत में, इसका उपयोग मानव भोजन के साथ-साथ चारे के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
चायोट

इस्तेमाल:- चायोट की फल, युवा पत्ते, उपजी और यहां तक ​​कि कंद को या तो स्टीम्ड करके या उबाल कर जूस, बेबी फ़ूड, सॉस और पास्ता में खाया जाता है। इसके तने से टोकरियाँ और टोपियाँ भी बनायीं जाती हैं। भारत में इसका उपयोग मानव भोजन के साथ-साथ चारे के लिए भी किया जाता है।

फायदे:- चायोट स्क्वैश विभिन्न आवश्यक विटामिन, खनिज, और फाइबर प्रदान करता है और इसमें कैलोरी, वसा, सोडियम और कुल कार्ब्स में कम होता है। यह हृदय स्वास्थ्य में सुधार, रक्त शर्करा को नियंत्रित करने, गर्भावस्था के लिए स्वस्थ, कैंसर विरोधी प्रभाव, जिगर स्वास्थ्य में सुधार आदि में मदद करता है।

जलवायु:- चायोट के लिए सबसे उपयुक्त औसत तापमान 15° – 25° सेल्सियस है। गीले, उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे उठी हुई पहाड़ियों या टीले में लगाया जाता है। इसकी खेती उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में अच्छे से होती है लेकिन तराई में भी इसे उगाया जा सकता है।

मिट्टी:- कोई भी मिट्टी जिसमे ओलिटिक चूना पत्थर अधिक हो, अच्छी तरह से सूखा हो और पीएच मान 6-7 हो, चायोट की खेती के लिए उपयुक्त होता है।

खेत की तैयारी:- खेती की तैयारी के लिए खेत की अच्छे से जुताई करे जिससे खेत समतल हो जाये। जुताई करते वक़्त ही खेत की मिट्टी में जरुरी उर्वरक भी अच्छे से मिला दे।

पौधा रोपण:- चायोट की खेती स्वस्थ, बेदाग, परिपक्व फल को अंकुरित कर के किया जा सकता है। एक स्वस्थ फल लें और तने को 45 ° के कोण काट के 4 लीटर मिट्टी के बर्तन में रोप दें, और उस गमले को 27-29 ° सेल्सियस तापमान वाले क्षेत्र में रखे और कभी-कभार पानी दें। एक बार तीन से चार पत्ती के सेट विकसित हो जाये तो एक शाखा बनाने के लिए धावक की नोक को चुटकी लें।

चायोट की खेती स्वस्थ, बेदाग, परिपक्व फल को अंकुरित कर के किया जा सकता है। एक स्वस्थ फल लें और तने को 45 ° के कोण काट के 4 लीटर मिट्टी के बर्तन में रोप दें, और उस गमले को 27-29 ° सेल्सियस तापमान वाले क्षेत्र में रखे और कभी-कभार पानी दें। एक बार तीन से चार पत्ती के सेट विकसित हो जाये तो एक शाखा बनाने के लिए धावक की नोक को चुटकी लें।
चायोट की खेती

पाले का खतरा टलने के बाद इस पौधे को खेत में 8-10 फीट की दूरी रखते हुए रोपें और लताओं को सहारा देने के लिए एक जाली या बाड़ प्रदान करें। पुरानी बारहमासी लताओं को एक मौसम में 9 मीटर बढ़ने देना चाहिए।

सिंचाई:- पहली सिंचाई पौध रोपने के तुरंत बाद और इसके बाद हर 10 से 14 दिनों में गहराई से सिंचाई करें और हर 2-3 सप्ताह में फिश इमल्शन के साथ खुराक दें।

खरपतवार नियंत्रण:- पौधा रोपने के बाद समय समय पर निराई गुड़ाई करना चाहिए जिससे खेत में मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाये नही तो वह पौधों के विकास को कम कर सकते है।

खाद एवं उर्वरक:- खेत में प्रति हेक्टेयर, 3-5 टन बेसल उर्वरक और 2 बोरी, तिहरा 14 या तिहरा 16 प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए।

कीट, रोग एवं रोकथाम:- इसकी खेती में कोई गंभीर बीमारी नहीं देखि जाती है लेकिन एफिड्स इस पर हमला कर सकता है। इसकी रोकथाम के लिए उन्हें हाथ से या पानी के एक जोरदार विस्फोट के साथ हटाया जा सकता है। अगर कोई अन्य परेशानी दिखे तो उसके अनुसार कीटनाशक छिड़क दे। यदि कोई कीट जो अन्य स्क्वैश को प्रभावित करता है, हमला करे तो कीटनाशक साबुन या नीम का प्रयोग सफेद मक्खियों सहित कीड़ों को नियंत्रित कर सकता है।

फसल की तुराई:- इसके फूल आमतौर पर सितंबर के आसपास फूलता है। फूल आने से लेकर फलने तक, लगभग एक महीने तक इसे ठंढ से मुक्त मौसम की जरुरत होती है। अक्टूबर और नवंबर की शुरुआत में जब फल लगभग 4 से 6 इंच व्यास के हो और नरम हो, तो इसकी की कटाई चाकू या हैंड-प्रूनर से करनी चाहिए। मांस के सख्त होने से पहले कटाई कर देनी चाहिए।

फसलबाज़ार

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