परिचय:- परवल भारत में बहुत ही प्रचलित तथा उपयोगी सब्जी है। आज के समय में किसान परवल की खेती करके अत्यधिक मुनाफा कमा रहे हैं। साधारणतया इसकी खेती पूरे वर्ष की जाती है।
बिहार, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश परवल के प्रमुख उत्पादक राज्य है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, आसाम तथा महाराष्ट्र में भी आंशिक तौर पर इसकी खेती की जाती है। परवल हरी सब्जीयों में अत्यंत लोकप्रिय तथा विटामिन से भरपूर होता है।
जलवायु:- परवल की खेती के लिए गर्म जलवायु आदर्श मानी जाती है।
भूमि का चुनाव:- अच्छी जल निकास वाली उत्तम जीवांशयुक्त रेतीली अथवा दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। इसकी लताएँ जल जमाव को सहन नही कर पाती अतः जल निकास कि उचित व्यवस्था अनिवार्य है।
भूमि की तैयारी:- तीन जुताई देशी हल से करने के बाद पाटा लगा दे। उसके बाद 1.5 मी. पौधे से पौधे की दुरी रखकर 30*30*30 से.मी. गहरा गड्डा खोद ले। प्रत्येक गढ्डे में मिटटी में 5 किलो ग्राम गोबर कि खाद मिलाकर भर दे।
प्रजातियां
मुख्य रूप से परवल की दो प्रजातियाँ पाई जाती है।
क्षेत्रीय प्रजातियां:- जैसे बिहार शरीफ, डंडाली, गुल्ली, कल्यानी, निरिया, संतोखिया एवं सोपारी सफेदा आदि।
उन्नतशील प्रजातियां:- जैसे एफ. पी.1, एफ. पी.3, एफ. पी.4, एच. पी.1, एच. पी.3, एच. पी.4 एवं एच. पी.5।
इसके अलावे कुछ अन्य प्रजातियां हैं – छोटा हिली, फैजाबाद परवल 1 , 3 , 4 ,चेस्क सिलेक्शन 1 एवं 2 , चेस्क हाइब्रिड 1 एवं 2 ,स्वर्ण अलौकिक, स्वर्ण रेखा तथा संकोलिया आदि।
नवीनतम किस्में:- नरेंद्र परवल 260,307,601,604
पौधा रोपण:- परवल का उत्पादन जड़ो द्वारा होता है तथा इसकी रोपाई कटिंग के द्वारा की जाती है। रोपाई में कटिंग अथवा जड़ो की संख्या रोपाई के अनुसार होती है।
यदि रोपाई की दूरी एक मीटर से डेढ़ मीटर हो तो 4500 से 5000 तथा एक मीटर से दो मीटर की दूरी पर 3000 से 4000 कटिंग प्रति हेक्टेयर लगाए जाते हैं।
कटिंग की लम्बाई एक मीटर से डेढ़ मीटर हो, तथा प्रत्येक कटिंग में 8 से 10 गांठो का होना आदर्श है। गड्ढो अथवा नालियो की मेड़ों पर 8 से 10 सेंटीमीटर तथा समतल भूमि पर 3 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर कटिंग की रोपाई करते हैं।
परवल की मादा व नर दोनों होते हैं इनकी कटिंग का अनुपात 10:1 हैं। परवल की बुआई वर्षभर में दो बार कि जाती है।
जून के दुसरे पखवाड़े में तथा अगस्त के दुसरे पखवाड़े में। नदियों के किनारे अक्टूबर से नवम्बर में परवल की रोपाई की जाती है।
परवल की सिंचाई एवं कीट नियंत्रण।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन:- खाद तथा उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के अनुसार ही करें। सामान्यतः परवल में खाद की दर इस प्रकार है।
अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद अंतिम जुताई के साथ मिलाएं। प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा नत्रजन, फास्फोरस 60-70 किग्रा तथा पोटास 50 किग्रा।
खेत की तैयारी के समय गोबर की खाद को अच्छी तरह से मिला लेना चाहिए। उसके बाद नत्रजन , फास्फोरस और पोटास को प्रति खेत में देना चाहिए।
फास्फोरस और पोटास की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा खेत की तैयारी के साथ तथा बाकि बची हुई नत्रजन को पौधे में फूल आने के समय देना चाहिए।
सिंचाई:- रोपाई के बाद नमी की आवयसक्ता अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। ठंड के दिनों में 15 से 20 दिन बाद तथा गर्मियों में 10 से 12 दिन बाद सिंचाई करें।
खरपतवार नियंत्रण:- ठण्ड समाप्त होने पर पौधों कि जड़ों के समीप निराई-गुड़ाई करके मिटटी पोली कर दे। लताओं के ऊपर फैलने के कारण खरपतवार अधिक प्रभावशाली नहीं होती है, परंतु निराई-गुड़ाई कर देने से जड़ में हवा का संतुलन बना रहता है।
कीट नियंत्रण
परवल कि फसल को अनेक कीरो मकरों से हानि होती है जिसमें फल की मक्खी और फली भ्रंग प्रमुख हैं।
फल की मक्खी – यह मक्खी फलों में छिद्र कर उनमे अंडे देती है जिसके फलस्वरूप फल सड़ जाते हैं। यह मक्खी फूलों को भी हानि पहुंचाती है।
रोकथाम के लिए 20 लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती, 3 किलो धतुरा की पत्ती 450 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो गुड़ 25 ग्राम हींग डाल कर अच्छे से मिलाएं इसके बाद 3 दिनों के लिए छाए में रखें, 3 दिनों बाद इसे खेत में छिड़क दें।
फली भ्रंग – यह गुबरैला होता है जो धूसर रंग का होता है,जो पत्तियों में छेद कर हानि पहुँचाता है।
रोकथाम हेतु 20 लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती, 3 किलो धतुरा की पत्ती और 500 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो गुड 30 ग्राम हींग मिलाकर तीन दिनों तक छाया में रखे। इसके बाद खेत में छिडकाव करें।
चूर्णी फफूंदी – यह फफूंदी के कारण लगने वाला रोग है। इसमें पत्तियों और तनों पर फफूंद जम जाती है। पत्तियां पिली हो जाती है तथा मुरझाकर मर जाती है।
रोकथाम हेतु 20 लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती, 3 किलो धतुरा की पत्ती और 460 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो गुड 20 ग्राम हींग डाल कर तीन दिनों के लिए छाया में रखें इसके बाद खेत में छिडकाव करें।
तुड़ाई:- परवल की अधिक पैदावार के लिए समय-समय पर बेलों की छटाई करनी पड़ती है। छटाई करने का उपयुक्त समय नवम्बर-दिसंबर है।
फसल लेने के बाद 20-30 से.मी.कि बेल छोड़कर सारी बेल काट देनी चाहिए। तथा तने के पास 30 से.मी. स्थान छोड़कर पुरे खेत की गुड़ाई कर ले। बेलों में पुनः मार्च में फल लगने शुरू हो जाते है ।
परवल की उपज:- परवल की उपज वर्ष में 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। अच्छे से पौधों का ध्यान रखने पर लगभग 4 साल तक 150 से 190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्राप्त की जा सकती है। जिसकी औसत कीमत बाज़ार में ₹2000 से 4000 तक प्रति क्विंटल है।