पशुपालन एक व्यवसाय और अर्थव्यवस्था मेंं महत्व।

भारतीय परंपराओं में भी पशुपालन को विशेष स्थान दिया गया है। कई जगहों पे पशुओं को ईश्वर का दर्जा दिया गया है। तो अर्थव्यवस्था में पशुओं को पशु धन कहा जाता है। यही कारण है की भारतीय संविधान में भी राज्य के नीतिनिदेशक सिद्धांत के अंतर्गत दुधारू पशुओं के संरक्षण की बात की गई है।

परिचय:- पशुपालन कृषि विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा है। इसके अंतर्गत पालतू पशुओं के प्रत्येक पक्षों का अध्ययन किया जाता है। जैसे भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि।

आज के परिदृश्य में पशुपालन का पठन-पाठन विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय के रूप में किया जा रहा है।

भारत में महत्व:– भारतीय परंपराओं में भी पशुपालन को विशेष स्थान दिया गया है। कई जगहों पे पशुओं को ईश्वर का दर्जा दिया गया है। तो अर्थव्यवस्था में पशुओं को पशु धन कहा जाता है।

यही कारण है की भारतीय संविधान में भी राज्य के नीतिनिदेशक सिद्धांत के अंतर्गत दुधारू पशुओं के संरक्षण की बात की गई है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन का बहुत महत्व है। यदि सकल घरेलू कृषि उत्पाद की बात करें तो इसमें पशुपालन का 28-30 प्रतिशत का योगदान है। दुग्ध एक ऐसा उत्पाद है जिसका योगदान सकल घरेलू उत्पाद में सबसे अधिक है।

अनुमानतः भारत में विश्व की कुल संख्या का 17 प्रतिशत गायें तथा 56 प्रतिशत भैंसें हैंं, जो यह दर्शाता है की भारत की एक बड़ी आवादी पशुपालन पे निर्भर है।

भारत में विश्व की कुल संख्या का 17 प्रतिशत गायें तथा 56 प्रतिशत भैंसें हैंं, जो यह दर्शाता है की भारत की एक बड़ी आवादी पशुपालन पे निर्भर है।
पशुपालन

हमारे देश के कुल दुग्ध उत्पादन का लगभग 53 % भैंसों, 43 % गायों और 3% बकरियों से प्राप्त होता है। भारत दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है, यह एक मिसाल है।

यह उपलब्धि पशुपालन से जुड़े प्रत्येक पहलुओं में लगातार किये जा रहे अनुसंधान का नतीजा है। जैसे- मवेशियों की नस्ल, पालन-पोषण, स्वास्थ्य एवं आवास प्रबंधन आदि। लेकिन आज भी कुछ अन्य देशों की तुलना में हमारे पशुओं का दुग्ध उत्पादन कम है। इस दिशा में सुधार की बहुत संभावनायें है, और लगातार प्रयाश भी किया जा रहा है।

छोटे, भूमिहीन तथा सीमान्त किसान जिनके पास फसल उगाने के लिय बहुत अधिक जमीन नहीं है पशुपालन उनके लिए अत्यंत लाभदायक है। जिन किसानों को पालने के अवसर भी सीमित है वह छोटे पशुओं जैसे भेड़-बकरियाँ, सूकर एवं मुर्गीपालन रोजी-रोटी का साधन है, ये अत्यंत लाभदायक भी है।

छोटे, भूमिहीन तथा सीमान्त किसान जिनके पास फसल उगाने के लिय बहुत अधिक जमीन नहीं है पशुपालन उनके लिए अत्यंत लाभदायक है। जिन किसानों को पालने के अवसर भी सीमित है वह छोटे पशुओं जैसे भेड़-बकरियाँ, सूकर एवं मुर्गीपालन रोजी-रोटी का साधन है, ये अत्यंत लाभदायक भी है।
बकरी पालन

विश्व में भारत का स्थान बकरियों की संख्या में दूसरा तथा भेड़ों की संख्या में तीसरा हैै, एवं मुर्गा उत्पादन में सातवाँ है। कम खर्चे में, कम स्थान एवं कम मेहनत से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए छोटे पशुओं का योगदान अहम है।

पशुपालन का भारतीय अर्थव्यवस्था मेंं महत्व।

भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी कृषि,पशुपालन एवं कृषि से जुड़े अन्य व्यापार पे निर्भर है। छोटे व सीमांत किसानों के पास कुल कृषि भूमि बहुत कम है। लेकिन छोटे किसानों का एक बड़ा हिस्सा पशुपालन व्यवसाय से जुड़ा है।

छोटे किसानों के पास कुल पशु धन का लगभग 80 प्रतिशत भाग मौजूद है। यदी बड़ी तस्वीर को देखी जाए तो देश का अधिकांश पशुधन, आर्थिक रूप से कमजोर किसानों के पास है। भारत में लगभग 20 करोड़ गाय, 11 करोड़ भैंस, 15 करोड़ बकरी, 8 करोड़ भेड़, 1 करोड़ सूकर तथा 69 करोड़ मुर्गी का पालन किया जा रहा है।

छोटे किसानों के पास कुल पशुधन का लगभग 80 प्रतिशत भाग मौजूद है। यदी बड़ी तस्वीर को देखी जाए तो देश का अधिकांश पशुधन, आर्थिक रूप से कमजोर किसानों के पास है। भारत में लगभग 20 करोड़ गाय, 11 करोड़ भैंस, 15 करोड़ बकरी, 8 करोड़ भेड़, 1 करोड़ सूकर तथा 69 करोड़ मुर्गी का पालन किया जा रहा है।
मुर्गी पालन

भारत दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम, अण्डा उत्पादन में तृतीय तथा मांस उत्पादन में सातवें स्थान पर है। कृषि क्षेत्र में हम मात्र 1-2 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त कर रहे हैं तो पशुपालन में 4-5 प्रतिशत।

इस तरह पशुपालन व्यवसाय में ग्रामीणों को रोजगार प्रदान करने तथा उनके सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने की सम्भावनायें भी हैं और व्यवस्था भी।

भारत सरकार भी पशुपालन में अनेक प्रकार की सब्सिडी के साथ इसके विकास के लिए अनेक योजनाओं में तेजी ला रही है। जिससे अधिक से अधिक किसान इससे जुड़ें।

फसलबाज़ार

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