भूमिका:- मत्स्य पालन तटीय क्षेत्रों में सदा से आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत रहा है। मीठे जल में भी मत्स्य पालन में जबरदस्त आर्थिक क्षमता है। इसमें कृषि आधारित आजीविका के अन्य स्त्रोतों से बहुत अधिक फायदे हैं। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों के परिवार अधिक कार्यरत हैं।
देश में मीठे जल के मत्स्य पालन से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं।
मछली पानी का उपभोग नहीं करती, लागत कम होती है, मछलियों में प्रजनन क्षमता अधिक होती है तथा श्रम की बहुत कम आवश्यकता होती है।
उपभोक्ता की दृष्टि से, मछली कोलेस्ट्रोल मुक्त विटामिन, वसा, कैल्शियम, फास्फोरस और अन्य पोषक तत्वों से समृद्ध उच्च गुणवत्ता युक्त प्रोटीन से भरपूर है। पानी के अतिरिक्त मछली को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन, भोजन और जगह की आवश्यकता होती है।
प्रजातियाँ:- ताजा पानी में सबसे अधिक उपज देने वाली मत्स्य में तीन भारतीय प्रजातियाँ कतरा, रोहू और मृगल है। तथा तीन चीनी प्रजातियाँ ग्रास, सिल्वर और कॉमन है। आम तौर पर इन्हें तालाब में मौजूद भोज्य जीवों का उपयोग करने के लिए साथ में पाला जाता है।
चारा:– कृषि, बागवानी, मत्स्य पालन, डेयरी और पोल्ट्री की एकीकृत खेती उपयोगी जैविक अपशिष्ट प्रदान करता है, जिसे मछली के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। मवेशी, मुर्गी पालन, सुअर पालन और भेड़/बकरी के अपशिष्ट मछली उत्पादन के लिए उत्तम चारा है।
पानी की टंकी:- मत्स्य पालन के लिए पानी की टंकी या तालाब के निर्माण के दौरान विचार करने योग्य बातें।
मिट्टी की जल प्रतिधारण क्षमता और इसमें उर्वरता उच्च होनी चाहिए। चिकनी मिट्टी तालाब निर्माण के लिए सबसे अच्छी है परंतु अच्छी तरह से जमा बलुई मिट्टी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। तालाब में पानी की आपूर्ति जहाँ तक संभव हो प्राकृतिक हो जैसे बारिश।
तालाब की सतह नदियों से दूर तथा नीची होनी चाहिए ताकि सतही अपवाह को तालाब में जमा किया जा सके। बाढ़ से बचने के लिए उचित तटबंध आवश्यक है। तटबंधों को अच्छी तरह से जमा, रिसाव से मुक्त और मौसम की सभी स्थितियों में स्थिर रहने के लिए काफी मजबूत रखना चाहिए।
मत्स्य पालन के लिए मछली टैंक का निर्माण एवं संरक्षण।
एक मछली टैंक का निर्माण कहां किया जाना चाहिए?
आम तौर पर जहाँ भी भूमि उपलब्ध हो इसके टैंक का निर्माण किया जा सकता है। जिसमें कुछ बातें आवश्यक है। अच्छी जल धारण क्षमता, बहुत गहरी मिट्टी अथवा गहरी कीचड़ युक्त भूमि, पानी की उपलब्धता। पी एच की सीमा 7.5-8.5 के बीच होनी चाहिए।
निर्माण करते समय औसत वर्षा, बाढ़ के जल का प्रवाह, जल निकासी आदि कारकों पर विचार किया जाना चाहिए ।
मछली संरक्षण टैंक के लिए कितने क्षेत्र की आवश्यकता होती है?
लगभग 2-4 हेक्टेयर जगह की आवश्यकता होती है। आर्थिक रूप से लाभकारी और तकनीकी रूप से व्यवहार्य होने के लिए प्रत्येक मच्छली टैंक के लिए न्यूनतम 0.4 हेक्टेयर से 1.0 हेक्टेयर का स्थान होना चाहिए।
संरक्षण टैंक का आकर:- इस टैंक का आकार चौकोर या आयताकार हो सकता है। बांध की ऊँचाई को जल स्तर की गहराई से एक मीटर ऊपर बनाए रखा जाना चाहिए, एक मीटर ऊँचे बांध के निर्माण के लिए नींव की चौड़ाई 1.6 मीटर होनी चाहिए, 1-1.5 की ढलान होनी चाहिए मछली संरक्षण टैंक की आदर्श गहराई 1-2 मीटर होनी चाहिए।
मछली और झींगे की किस्म का चयन करने से पहले किन कारकों पर विचार किया जाना चाहिए?
स्थानीय जलवायु, चयनित किस्म की विकास दर। मछली और झींगे की मांस खाने वाली प्रजातियों से परहेज करें, जिस प्रजाति के लिए बाजार में मांग हो।
सावधानियां:- मांसभक्षी मछलियों और प्लैंक्टानो की नियंत्रण को हटाने के लिए टैंक को पूरी तरह से सुखा दें। अम्लता और क्षारीयता को बनाए रखने और नियंत्रण के लिए टैंक में चूना डालना आवश्यक है।
मछली बीज का परिवहन कैसे किया जा सकता है?
प्रत्यारोपण के लिए मछली के बीज को एक पॉलिथीन बैग में डालकर 20 लीटर क्षमता के एक टिन में रखें। पॉलिथीन बैग के एक तिहाई भाग में पानी और शेष में हवा रहनी चाहिए, प्लास्टिक पॉलिथीन में मत्स्य बीज को खिलाया नहीं जाता है इससे मलमूत्र उत्पन्न हो सकता है। इस प्रकार पानी 2-3 दिनों के लिए स्वच्छ रहता है, और पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन भी बनी रहती है।
मछलियों के रोग, लक्षण और उपचार।
प्रकार – जीवाणु।
रोग – गलफड़ और पुंछ सड़ांध।
लक्षण और उपचार– यह भारतीय मछलियों का सबसे आम संक्रामक रोग है, पूरे पंख को विखंडित कर देता है, कॉपर सल्फेट के घोल के साथ उपचार।
रोग – जलशोध।
लक्षण और उपचार– कतला मछली में इससे प्रभावित होने की सबसे अधिक संभावना होती है।शल्कों में फैलाव, पेट में सूजन, आँखों में उभार और शोफ़। पोटेशियम परमैंगनेट घोल द्वारा उपचार।
रोग – नेत्र रोग।
लक्षण और उपचार– यह कतला की दृष्टि तंत्रिका और मस्तिष्क पर हमला करता है। प्रारंभिक चरण उपचार 3-4 दिनों के लिए 5-10 मिलीग्राम/ लीटर क्लोरो माइसीटीन घोल में स्नान। शेष मछलियों को पोटेशियम परमैंगनेट 1 मिग्रा/ लीटर का रोग निरोधक घोल दिया जाना चाहिए।
प्रकार – कवकीय संक्रमण।
लक्षण और उपचार– गलफड़ में सड़ांध और त्वचा में छाले। संक्रमित मछलियों को 5-10 मिनट के लिए 3-5 प्रतिशत सामान्य नमक के घोल में या 5 पी पी एम पोटेशियम परमैंगनेट के घोल में स्नान कराया जाना चाहिए।
प्रकार – प्रोटोजोआ रोग।
रोग – इचिऑपथिराइसिस।
लक्षण और उपचार– संक्रमित मछली के शरीर, गलफड़ और पंख पर लगभग 1 मिली व्यास के छोटे-छोटे घाव दिखाई देते हैं। मछलियों को 6-7 दिनों तक 2-3 मिनट के लिए 2-3 प्रतिशत आम नमक के घोल में डुबोया जाना चाहिए।
रोग – ट्राइकोडिनोसिस।
लक्षण और उपचार– खाल और गलफड़ के प्रभावित होने के कारण संक्रमित मछलियों में जलन और सांस की परेशानी के लक्षण दिखाई देते हैं। 3-4 दिनों के लिए 5 से 10 मिनट तक 2-3 प्रतिशत आम नमक में डुबकी उपचार दिया जाना चाहिए।
रोग – माइक्सो रिडियासिस।
लक्षण और उपचार– छोटे सफेद या काले लाल धब्बे के रूप में घाव (सिस्ट) दिखाई देते हैं। घाव किसी भी रसायन के विरुद्ध उच्च प्रतिरोधी होते हैं। इसलिए संक्रमित मछली को आम तौर पर मार दिया जाता है। तालाब का पानी बदला जाना चाहिए।
प्रकार – परजीवी।
लक्षण और उपचार– कीड़ा रोग भी मछलियों में होने वाली आम बीमारी है। परजीवी डियोडेक्टीलस एस पी पी मछली की त्वचा और गलफड़ पर हमला करते है और उसके खून पर जीते हैं। 0.2 पी पी एम की सघनता के साथ गेमेक्सीन द्वारा तालाब का उपचार किया जाना चाहिए।
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Fish ke liye plane ke liye kya karna he