परिचय:- मानव के कुछ प्राकृतिक मित्र हैं जो मानव जीवन को आसान बनाते हैं। इसमें से धरती और लकड़ी के बाद पत्थर तीसरे स्थान पर आता है। इतिहास के अनुसार पत्थर मानव के विकास और उपकरण प्रयोग में बढ़ती कुशलता का भी एक प्रतीक हैं।
इतिहास:- पाषाण काल से ही मानव ने पत्थरों के उपयोग को अपने जीवन में स्थान दिया। पत्थरों का उपगोग आवश्यक निर्माण से प्रारंभ हो कर अब साज-सज्जा तक आ गया है।
पाषाण काल से ही पत्थर का प्रयोग खुदाई के औजार के साथ-साथ दैनिक प्रयोग जैसे छुरी, शिकार के लिए भाले की नोक तथा एक हथियार के रूप में भी किया गया।
कालांतर में मानवों के विकास के साथ इसका प्रयोग पूजा-अर्चना और साज-सज्जा के कार्यों के लिए भी किया जाने लगा।
खुदाई में मिले नक्काशीदार पत्थरों से इस बात की पुष्टि होती है की समय के साथ आयी नयी घरेलू सामग्री को अपनाने के बावजूद भी मनुष्य के जीवन में पत्थर आज भी एक अहम हिस्सा है।
पत्थरों का इस्तेमाल तराजू में वज़न की तुलना के लिए, कोल्हू, चक्की, ओखली आदि के लिए किया जाता है, जिस समय भोजन बनाने की प्रक्रिया विकसित हो चुकी थी।
पत्थर को हिन्दुओं द्वारा ज़्यादा शुद्ध माना गया और इसे रसोई एवं भोजन कक्ष में भी स्थान मिला।
पत्थर की कला:- पत्थर के कार्यों में कारीगर को बहुत कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं। पत्थर के वास्तुकला की प्रक्रिया उत्खनन की प्रक्रिया से प्रारंभ होती है।
नक्काशी के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले औज़ार महंगे होते हैं, जिसके कारण इसल कारीगर कुछ छोटे औज़ार खरीदते हैं और आपस में मिल बाँट के प्रयोग करते हैं।
नक्काशी के लिए उपयोग किए जाने वाले पत्थरों को धरती की गहराई से निकाला जाता है, क्योंकी सतही पत्थर बहुत नाज़ुक होता है।
भारत में पत्थर की कला:- भारत में पत्थर के स्मारक सामान्य रूप से पाए जाते हैं। अधिकतर इमारतें अपनी सुन्दर वास्तुकला और मूर्तिकला के लिए विख्यात है जैसे, लालकिला और ताज़महल।
आलीशान महलों या मंदिरों के निर्माण में कमी के कारण पत्थर के नक्काशी के व्यवसाय में कमी आई है। लेकिन पुनः घरों में संगमरमर के उपयोग तथा पत्थर के मूर्तियों और साज-सज्जा के वस्तुओं के उपयोग के विकास से, पत्थर के शिल्प के व्यवसाय में काफी विकास देखने को मिल रहा है।
पत्थर की मूर्तियाँ व्यापार एवं लाभ।
अयोध्या में बढ़ता मूर्ति उद्योग:- यूँ तो रामनगरी का मूर्ति उद्योग सदियों से लोकप्रिय रहा है, लेकिन बीते दसक में कई गुणा आगे बढ़ते हुए यह नया इतिहास गढ़ने लगा है।
यहाँ की मूर्ति कला भारत के साथ-साथ विदेशियों की भी पहली पसंद बनने लगी है। जिसके कारण अयोध्या का नाम अब बनारस के बाद दूसरे पायदान पे आने लगा है।
कभी 3-4 कारीगरों के मध्य सिमटा यह व्यापार आज यह सैकड़ो कारीगरों के मध्य आ गया है। व्यवसायी बताते हैं की हजारों का फायदा देने वाला यह व्यवसाय आज लाखों का फायदा देने लगा है।
मूर्तियाँ तथा क़ीमत:- यहाँ के राम-सीता, हनुमान तथा लड्डुगोपाल के मूर्तियों की बहुत मांग है। 3 फिट से 7 फिट तक है, जिसकी क़ीमत 500 से लाखों तक होती है।
गुलाबी शहर ‘जयपुर‘ पत्थरों पे नक्काशी तथा मूर्ति कला में एक विशेष स्थान रखता है। यहाँ की तरासी गई मूर्तियों तथा पत्थरों का शिल्प अपने आप में एक विशेष स्थान रखता है।
यहाँ की मूर्तियों तथा शिल्प के साथ आज के नए परिवेश में यहाँ के संगमरमर तथा टाइल्स की भी विशेष मांग है। जयपुर को मूर्ति कला की राजधानी के रूप में भी देखा जाता है।
सावधानी:- पत्थरों के तरासने से निकलने वाले धूल-कणों का मानव तथा अन्य जीवों पर बहुत बुड़ा प्रभाव पड़ता है। इससे अनेक प्रकार की बीमारियां जैसे स्थमा, हृदयरोग तथा अन्य सांस की बीमारियां होने का खतरा रहता है। इसलिए इसके कारखानें को चारदीवारी के अंदर तथा बस्तियों से दूर रखा जाता है।
व्यापार तथा लाभ:- बीते कुछ दिनों में इसका व्यवसाय बढ़ा है, इसमें लाखों के महीने की आमदनी के आसार रहते हैं। महंगे औजार आज भी इस व्यवसाय में छोटे कारीगरों के लिय एक बड़ी समस्या है जिसके कारण उन्हें दूसरे पे निर्भर रहना पड़ता है।
मंदी से राम नगरी अब धीरे-धीरे उबर रही है। मूर्तिकला में औद्योगिक रूप में उभरकर नई इबारत लिखनी शुरू कर दी है।
दशक भरपूर तक दो-तीन व्यवसाइयों तक सिमटा रहने वाला मूर्ति कला उद्योग आज दर्जन का आंकड़ा पार कर रहा है।
यहां से प्रतिदिन मूर्ति खरीदारी का लाखों का व्यवसाय हो रहा है। राम नगरी से बनी मूर्तियों की आपूर्ति देश के विभिन्न शहरों से लेकर विदेशों तक की जा रही है।