शहतूत की खेती, फायदे तथा व्यापारिक लाभ।

शहतूत एक 40-60 फीट लम्बा वृक्ष वाला सदाबहार फल है जिसका वानस्पतिक नाम मोरस अल्बा है जिसकी खेती ज्यादातर रेशम के कीटों के लिए, औषधीय गुण के कारण की जाती है।

परिचय:- शहतूत एक 40-60 फीट लम्बा वृक्ष वाला सदाबहार फल है जिसका वानस्पतिक नाम मोरस अल्बा है जिसकी खेती ज्यादातर रेशम के कीटों के लिए, औषधीय गुण के कारण की जाती है।

भारत में इसकी ज्यादातर खेती पंजाब, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटका, हरियाणा, आंध्रा प्रदेश और तामिलनाडू में की जाती है। इसका जूस सबसे ज़्यादा जापान, कोरिया और चीन में इस्तेमाल किया जाता है।

भारत में इसकी ज्यादातर खेती पंजाब, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटका, हरियाणा, आंध्रा प्रदेश और तामिलनाडू में की जाती है। इसका जूस सबसे ज़्यादा जापान, कोरिया और चीन में इस्तेमाल किया जाता है।
शहतूत

किस्में

एस-36 :- इसके पत्तों का रंग हल्का हरा, मोटा और दिल के आकार जैसा होता हैं जिसके औसतन पैदावार 15-18 हजार किलो प्रति एकड़ होती है।

वी-1 :- इसके पत्ते गहरे हरे रंग का अंडाकार और चौड़े होते है इसकी औसतन पैदावार 20-24 हजार किलो प्रति एकड़ होती है।

फायदे:- शहतूत में पोटैशियम, विटामिन ए और फॉस्फोरस, एंटीऑकसीडेंट के साथ अन्य कई सारे पुष्टिकारक पाया जाता है। शहतूत खाने से पाचन शक्ति में सुधार, यूरि‍न से जुड़ी समस्याओं में, आंखों की रोशनी के लिए, गर्मी में लू से, किडनी और लीवर के लिए फायदेमंद होता है। इसके अलावा इसके पत्ते घाव या फोड़े के लिए, खुजली के लिए अच्छा होता है। इसके पत्ते को पानी में उबाल के बनाये काढ़े से गरारे करने से गले की खराश कम हो जाती है।

जलवायु:- इसकी खेती के लिए 20°-28° सेल्सीयस, 1000-2500 मिमी वर्षा उपयुक्त होती है। इसकी बुआई जून – जुलाई और नवंबर – दिसंबर में करना चाहिए।

मिट्टी:- इसकी खेती के लिए दोमट से चिकनी, घनी उपजाऊ से समतल मिट्टी जिसका पी.एच. मान 6-7 हो उपयुक्त होता है। अगर मिट्टी का पी.एच. मान ज्यादा है तो उसमे तो मिट्टी में थोड़ा सा सल्फर मिला दे जिससे पी.एच. मान कम हो सके। खेत में जल निकास का अच्छा प्रवंधन होना चाहिए।

खेत की तैयारी:- शहतूत की खेती के लिए नदीन और रोड़ियों को खेत से निकाल खेत की अच्छे से जुताई करनी चाहिए जिससे खेत समतल हो जाये। इसके बाद खेत की मिट्टी में जरुरी उर्वरक भी अच्छे से मिला दे।

बीज तयारी:- एक एकड़ के लिए 4 किलो बीज को 90 दिनों के लिए ठंडी जगह पर रखे और फिर उसे 4 दिन के लिए पानी में भिगो दें ( 2 दिन के बाद पानी बदल दें)। उसके बाद उसे पेपर टॉवल में रख दें, जिससे उनमें नमी बनी रहे। जब बीज अंकुरन होना शुरू हो जाएं तो बीजों को नर्सरी बैड में बो दें।

पौधा रोपण:- जब बीज खेत में रोपने लायक पौधा बन जाये तो उसे पौधों के बीच 90*90 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए और गड्ढे में 90 सेंटीमीटर की गहराई में रोपना चाहिए।

सिंचाई:- पहली सिंचाई पौध रोपने के तुरंत बाद और उसके बाद हफ्ते में 80-120 मि.मी. सिंचाई करें।

शहतूत की खेती

खरपतवार नियंत्रण:- पौधा रोपने के बाद समय समय पर निराई गुड़ाई करना चाहिए जिससे खेत में मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाये नही तो वह पौधों के विकास को कम कर सकते है।

खाद एवं उर्वरक:- ज्यादा उपज प्राप्त करने के लिए और खेत की उर्वरता बढ़ाने के लिए उसमे 8 मिलियन टन प्रति साल रूड़ी कि खाद 2 बराबर हिस्सों में डालें। प्रति एकड़ प्रत्येक साल, रूड़ी कि खाद के साथ-साथ V-1 किस्म के लिए 145 किलो नाइट्रोजन, 100 किलो फासफोरस और 62 किलो पोटाशियम जबकि S-36 किस्म के लिए 125 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फासफोरस और 50 किलो पोटाशियम डालें।

कीट, रोग एवं रोकथाम:-

पत्तों पर सफेद धब्बे:– यह फाइलैकटीनियाकोरिली के कारण होती है जिसमे पत्तों के निचले भाग पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे जो बाद में धब्बे बढ़ जाते है और पीले रंग के हो जाते। इसके रोकथाम के लिए पौधे के नीचे वाले भाग पर सलफैक्स 80 डब्लयु पी, 2 ग्राम प्रति लीटर मिट्टी में डालें और पत्तों पर भी स्प्रे करें।

पत्तों की कुंगी:- यह आम तौर पर फरवरी-मार्च के महीने में दिखाई दी जाती है जिसमे पत्तों के निचले भाग पर भूरे दाने और ऊपरी सतह पर लाल भूरे रंग के धब्बे दिखाई दी जाती है। इसके रोकथाम के लिए बलाईटॉक्स 50 डब्लयू पी 300 ग्राम या बविस्टन 50 डब्लयू पी 300 ग्राम की पत्तों पर स्प्रे करें।

सफेद फंगस:- यह अगस्त-दिसंबर के महीने में दिखाई दी जाती है जिसमे पत्तों की ऊपरी सतह पर काले रंग की परत दिखाई दी जाती है। इसके रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस 200 मि.ली. की स्प्रे करें।

पीली और लाल भुंडी:- यह मुख्य रूप से मार्च से नवंबर महीने में पाया जाता है जो पौधों को खोखला कर देती है। रोकथाम के लिए 10 लीटर पानी में कार्बरिल 50 डब्लयू पी 40 ग्राम को मिलाकर स्प्रे करें।

छाल खाने वाली सुंडी:- यह तने में सुरंग बना देती है जिससे पौधे कमजोर हो जाते है। रोकथाम के लिए 10 लीटर पानी में 10 मि.ली. मिथाइल पैराथियॉन (मैटासीड) 50 ई सी या मोनोक्रोटोफॉस (नुवाक्रॉन 36 डब्लयू एस सी) को मिलाकर डालें।

जड़ों में गांठ:- यह सिउडोमॉनास के कारण होती है जिसके कारण पत्तों पर अनियमित काले-भूरे रंग के धब्बों का दिखाई देते है और कुछ समय बाद पत्ते मुरझा के या गल के गिर जाते है। रोकथाम के लिए 150-180 लीटर पानी में फंगसनाशी घोल M-45 300 ग्राम को मिलाकर जड़ों में डालें।

फसल की तुराई:- शहतूत की तुड़ाई फल के गहरे-लाल रंग से जामुनी-लाल रंग के होने पर की जाती है। इसकी तुड़ाई हाथों से या वृक्ष हिलाकर की जाती है लेकिन इसके लिए वृक्ष के नीचे कॉटन या प्लास्टिक की शीट बिछा दी जाती है जिससे फलों को नुकसान न पहुंचे।

फसलबाज़ार

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