परिचय:- शतावरी जिसे अंग्रेजी में एस्परैगस कहते है, एक किस्म की सब्ज़ी है जिसके पैधो के कंदिल जड़ होते हैं। शतावरी के पौधों की जड़ें पहले तो ताजी और चिकनी होती है, लेकिन सूखने पर उसपे अधोमुखी झुर्रियां आ जाती है। इसके फूल जुलाई से अगस्त तक खिलते हैं, यह एक बहुवर्षीय पौधा है।
यह पश्चिमी यूरोपीय तटों का मूल निवासी है, और इसकी ज्यादातर खेती चीन, पेरू, मैक्सिको, जर्मनी आदि में होती है। अब भारत देश के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापारिक रूप से इसकी खेती होती है। भारत में हिमाचल प्रदेश शतावरी का प्राथमिक उत्पादक है।
फायदे:- इसमें कई तरह के पोषण तत्त्व जैसे की कम कैलोरी, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन ए, के, ई , पोटेशियम, फॉस्फोरस, आदि पाये जाते हैं। जिस वजह से यह सब्जी स्वास्थ के लिए बहुत ही लाभदायक है।
शतावरी खाने से वजन घटाने में, दिल की बीमारियों से बचाव में, माइग्रेन के कारण होने वाले दर्द से भी छुटकारा, अनिंद्रा से मुक्ति, रीढ़ की हड्डी संबंधी समस्या, मानसिक समस्याओं से बचाव में मदद करता है।
जलवायु:- शतावरी को अधिक लंबे सर्दियों वाले ठंडे क्षेत्रों में उगाना उचित होता है। शतावरी पौधे का खाने वाला हिस्सा युवा स्टेम शूट है, जो वसंत में मिट्टी के तापमान 50° फ़ारेनहाइट से ऊपर होने के कारण उभरता है।
वसंत की शुरुआत में पौधा लगाया जाता है। आमतौर पे इसका पौधा 23- 30° सेल्सियस तक का तापमान सह सकता है। तापमान में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव पौधे की वृद्धि को बाधित कर सकता है।
मिट्टी:- इसकी खेती के लिए दोमट, चिकनी – दोमट मिट्टी जिसका pH मान 6-8 हो उपयुक्त माना जाता है। इसके साथ ही 600 – 1000 मिमी या इससे कम वार्षिक औसत बारिश की जरूरी होती है।
खेत की तैयारी:- शतावरी की खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले उसे गहरे हल से जोत कर उसे समतल करना चाहिए। लगभग 45 सेमी की दूरी पर मेड़ और कुंड़ बनाये और बीज रोपने से 1 महीने पहले लगभग 10 टन खाद मिट्टी में मिला दें। रोपाई से पहले पंक्तियों में 10 -12 सेमी तक की गहराई में 1/3 नाइट्रोजन, फॉस्फेट , तथा पोटाश की पूर्ण खुराक डाल दें।
निराई-गुड़ाई:- 2/3 नाइट्रोजन को दो बराबर मात्रा में सितम्बर और फरवरी के अंत में मेड़ों पर प्रयोग कर दें। खेत को खरपतवार से बचाने के लिए निराई व गुड़ाई करते रहना चाहिए।
पौध उगाना:- पौधा लगाने के लिए अच्छी मात्रा में बीजों को भलीभांति तैयार नर्सरी क्यारियों में 5 -5 सेमी की दूरी में बोनी चाहिए। बोए हुए बीज को एक पतली बालू की परत से ढँक दें।
1 हेक्टेयर के लिए लगभग 7 किलो बीज उपयुक्त होगा। बीज बोने से पहले उसे मुलायम बनाने के लिए पानी या गोमूत्र से भिगो दें और बीज बोने के बाद 20 दिन में अंकुरण शुरू और 30 दिन में खत्म हो जाता है।
रोपाई:- बीज बोने के 45 दिनों बाद वो पौधे बन जाते है और उन्हें खेतों में रोपा जा सकता है। इन्हे मानसून के प्रारम्भ – जुलाई में रोपा जाता है। इस पौधे को सहारे की जरुरत होती है इसलिए इसे खम्भे या झाड़ियां का सहारा दे।
सिंचाई:- पहली सिचाई पौधा रोपने के तुरंत बाद और दूसरी सिंचाई 7 दिनों बाद की जाती है। अगर 15 दिन से ज्यादा दिन तक बारिश ना हो और सूखे का दौर हो तो एक और बार सिंचाई करनी चाहिए।
सब्सिडी:- शतावरी की विदेशों में बहुत मांग है और इसके निर्यात से देश में विदेशी मुद्रा आता है। इस वजह से सरकार भी शतावरी की खेती को बढ़ावा देती है। शतावरी की खेती करने वाले किसानों को राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की तरफ से 30% अनुदान दिया जाता है।