लेट्यूस की खेती, फायदे तथा व्यापारिक लाभ।

लेट्यूस को सलाद की तरह कच्चा खाया जाता है इसलिए इसकी खेती को सलाद की खेती भी कहा जाता है। इसे सैंडविच और सूप बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

परिचय:- लेट्यूस को सलाद की तरह कच्चा खाया जाता है इसलिए इसकी खेती को सलाद की खेती भी कहा जाता है। इसे सैंडविच और सूप बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

विश्व में लेट्यूस की सबसे ज्यादा खेती चीन में की जाती है। इसकी ज्यादातर खेती इसके पत्तो के लिए होती है, लेकिन कई बार बीज और तना के लिए भी इसकी खेती की जाती है।

विश्व में लेट्यूस की सबसे ज्यादा खेती चीन में किया जाता है। इसकी ज्यादातर खेती इसके पत्तो के लिए किया जाता है लेकिन कई बार बीज और तना के लिए भी इसकी खेती की जाती है।
लेट्यूस

फायदे:- लेट्यूस को इसके आहार और औषधीय मूल्यों के कारण जाना जाता है क्योंकि इसमें विटामिन के, ए, सी, क्लोरोफिल, लोहा आदि उचित मात्रा में होते हैं।

सलाद खाने से वजन घटाने में, बेहतर नींद के लिए, मुंह व गले के कैंसर से बचाव के लिए, ह्रदय और कोलेस्ट्रॉल के लिए, मधुमेह में, हड्डियों को मजबूत करने में और पाचन में मदद मिलती है।

जलवायु:- लेट्यूस की खेती के लिए ऐसी जगह उपयुक्त है जहां का तापमान 20-30° सेल्सियस तक हो। बुवाई के समय का तापमान 25°-30° सेल्सियस और कटाई के समय का तापमान 20°-28° सेल्सियस हो। साथ ही 100-150 सें.मी. वर्षा की भी जरुरत होगी।

मिट्टी:- इसकी खेती कई तरह की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन रेतली दोमट और दानेदार दोमट मिट्टी जिसका pH मान 6-6.8 तक हो अच्छा परिणाम देती है। ज्यादा पानी रोकने वाली और अम्लीय मिट्टी इसकी खेती के लिए अच्छी नहीं होती। मिट्टी में जैविक पदार्थ, नाइट्रोजन और पोटैशियम होने से परिणाम अच्छा मिलेगा।

खेत की तैयारी:- इसकी खेत तैयार करने के लिए मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की 2-3 बार जोताई करें। उसके बाद मिट्टी की जांच करवाएं ताकि मिट्टी के पोषक तत्वों का पता चल सके। इसके बाद मिट्टी में जो भी पोषण की कमी हो सूक्ष्म पोषक तत्वों का इस्तेमाल करें।

बुआई:- लेट्यूस को पौधा और बीज रोपण के तरीके से बोया जाता है। बीज को रोपने के लिए पंक्ति से पंक्ति के बीच 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए।

लेट्यूस को पौधा और बीज रोपण के तरीके से बोया जाता है। बीज को रोपने के लिए पंक्ति से पंक्ति के बीच 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए।
लेट्यूस की खेती

इसको सितंबर के मध्य से नवंबर के मध्य तक नर्सरी में तैयार किया जाता है। बोये गये बीजों के बीच 15-20 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए। बीज बोने के 3-4 दिन में बीज अंकुरित हो जायेगा। जब बीज रोपा 4-6 सप्ताह हो जाये तो इन्हे खेत में रोप दें।

खाद:- प्रति एकड़ यूरिया 55 किलोग्राम , एकल सुपर फास्फेट उर्वरक 75 किलोग्राम, पोटैशियम, नाइट्रोजन 25 किलोग्राम, फॉस्फोरस 12 किलोग्राम, अच्छी तरह गली हुई रूड़ी की खाद 15 टन प्रति एकड़ में डालें।

पौध रोपण से पहले नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस की सारी मात्रा डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को पौध रोपण के 6 हफ्ते बाद डालें।

सिंचाई:- पौधा रोपने से 2 दिन पहले नर्सरी बैड की सिंचाई बंद कर दें और पौधा रोपने से आधा घंटा पहले खेत की अच्छे से सिंचाई कर दें। पौध रोपण के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर दें, दूसरी सिंचाई हल्की मिट्टी में 5-6 दिनों के अंतराल पर और भारी मिट्टी में 8-10 दिनों के अंतराल पर करें।

कीट और रोकथाम:- अगर रस चूसने वाले कीड़े का हमला दिखे तो 150 लीटर पानी में इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 60 मि.ली को मिलाकर प्रति एकड़ छिड़क दें।

कटाई:- जब लेट्यूस के पत्ते का पूरी तरह से विकास हो जाये और बेचने लायक हो जाये तो उसे काट लेना चाहिए। मार्च के अंत से अप्रैल के शुरू तक पूरी कटाई कर देना चाहिए। बीज लेने के लिए फसल की कटाई मई में खत्म कर दें।

यह प्रति एकड़ 50 किलोग्राम बीज देती है, फसल की कटाई सुबह में करे जिससे पत्ते ताजे रहेंगे।कटाई के बाद इन्हे बक्सों और डिब्बों में पैक कर कर दें। लेट्यूस को 3 हफ्तों के लिए 4°-5° सैल्सियस और 95% नमी पर स्टोर करके रखा जा सकता हैं।

फसलबाज़ार

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