शीशम की खेती, फायदे एवं व्यापारिक लाभ।

शीशम एक मजबूत बादामी या भूरा सफेद रंग की लकड़ी और छोटी पत्ती वाला भारतीय उपमहाद्वीप का वृक्ष है जिसका फैबेशी परिवार से सम्बन्ध है। अनुकूल इलाकों में इसकी ऊंचाई 25 मीटर और गोलाई 2 मीटर से ज्यादा होती है। इसके लकड़ियों से फर्नीचर बनता है और पत्तियाँ पशुओं के लिए चारा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

परिचय:- शीशम एक मजबूत बादामी या भूरा सफेद रंग की लकड़ी और छोटी पत्ती वाला भारतीय उपमहाद्वीप का वृक्ष है जिसका फैबेशी परिवार से सम्बन्ध है। अनुकूल इलाकों में इसकी ऊंचाई 25 मीटर और गोलाई 2 मीटर से ज्यादा होती है। इसके लकड़ियों से फर्नीचर बनता है और पत्तियाँ पशुओं के लिए चारा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

यहाँ तक की इसकी पत्तियाँ व शाखाएँ वर्षा-जल की बूँदों को धीरे-धीरे जमीन पर गिराकर भू-जल भंडार बढ़ाती हैं और जड़ें खेत को ज्यादा उपजाऊ बनाती हैं।

यह पेड़ भारत के हर हिस्से में पाया जाता है लेकिन चूंकि यह एक धीरे धीरे बढ़ने वाला पेड़ है किसान इसे कारोबारी स्तर पर नहीं उगाते। लेकिन अगर इसे निवेश की तरह ऊगा के इन्तजार किया जाए तो ये किसानो के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है क्युकी इसकी लकड़ियों को कई तरह से इस्तेमाल किया जाता है और किसानों को अच्छी खासी रकम मिलती है।

फायदे:- इसका पेड़ 30 साल में 1 फुट से ज्यादा चौड़ा हो जाता है जिससे लगभग आधा घन मीटर लकड़ी मिल जाती है जिसकी बाजार में 5-7 हजार रुपए तक मिल सकती है। इसके अलावा बीच बीच में लकड़ियों से और इसके साथ लगाये दूसरे फसलो से भी आमदनी होती रहती है।

उपयोग:- शीशम के लकड़ी का इस्तेमाल दरवाजे, खिड़की के फ्रेम, बिजली के बोर्ड, रेलगाड़ी के डब्बे आदि बनाने में की जाती है। इसके अलावा फर्नीचर के लिए इस का इस्तेमाल बहुत किया जाता है। शीशम के पेड़ से मिलने वाला हल्के भूरे रंग के तेल को भारी मशीनों की चिकनाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

जलवायु और मिट्टी :- शीशम के पेड़ को अच्छे से बढ़ने के लिए औषत वार्षिक तापमान -4° से 45° सेल्सियस और लगभग वार्षिक वर्षा 500-4500 मिलीमीटर चाहिए होता है। शीशम की खेती के लिए रेतीली मिट्टी जिसमे खेती करने के लिए उपयुक्त नमी हो और जिसका पीएच मान 5-7.7 हो उपयुक्त होता है। इसकी खेती तालाब के पास या जहां पानी हो वहां नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसी जगहों में पेड़ फफूंद से होने वाली बीमारियों का संकट होता है।

शीशम के पेड़ को अच्छे से बढ़ने के लिए औषत वार्षिक तापमान -4° से 45° सेल्सियस और लगभग वार्षिक वर्षा 500-4500 मिलीमीटर चाहिए होता है। शीशम की खेती के लिए रेतीली मिट्टी जिसमे खेती करने के लिए उपयुक्त नमी हो और जिसका पीएच मान 5-7.7 हो उपयुक्त होता है। इसकी खेती तालाब के पास या जहां पानी हो वहां नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसी जगहों में पेड़ फफूंद से होने वाली बीमारियों का संकट होता है।
शीशम का पेड़

खेत की तैयारी:- खेत तैयार करने के लिए उससे 3-4 बार अच्छे से जुताई कर लेना चाहिए जिससे खेत समतल हो जाये और खेत में पानी जमा ना हो।

बीज की तैयारी:- 1 एकर खेत में लगभग 70 ग्राम बीज के हिसाब से बीजों को 12-24 घंटे के लिए पानी में भींगो दें। आमतौर पर इन उपचारित बीजों को पॉलिथीन बैग में (1 बैग में 2-3 बिग) उगाया जाता है। बीज की बुआई से 7-14 दिन में बीज अंकुरण हो जाता है। जब पौधा 10-20 सेंटीमीटर लंबा हो जाए तो उन्हें खेत में रोप दिया जाता है। बीज रोपने के लिए पॉलिथीन में मिट्टी और खाद की मात्रा 2:1 होनी चाहिए।

बुवाई:- जनवरी-फरवरी में बीज इकट्ठा किए जा सकते हैं और पौधशाला में पौध फरवरी-मार्च में पौध सीधी बोआई, पौधारोपण या स्टंप रोपण या फिर वेजीटेटिव प्रोपेगेशन जैसे की कटिंग, कौपिस, रूट सकर तरीको से उगाई जाती है।

शीशम को खेतों की मेंड़ों पर 4-4 मीटर की दूरी या खेतों के बीच में 3-3 मीटर की दूरी पर रोपनी चाहिए। चूँकि यह धीरे धीरे बड़ा होता है इसीलिए इसके साथ साथ मक्का, मटर, अरंडी, सरसों, चना, गेहूं, गन्ना और कपास की खेती की जा सकती है।

सिंचाई:- पहली सिंचाई पौध रोपण के तुरन्त बाद और उसके बाद जरुरत के अनुसार समय समय पर होनी चाहिए। जहाँ वर्षा नहीं होती या पानी की समस्या है वहां 10-15 सिचाई करना चाहिए।

रोग और रोकथाम:- शीशम के पेड़ में कवक जनित रोग देखने को मिलता है जिसके वजह से पेड़ के पत्ते और टहनियाँ सूख जाती है। इस समस्या से बचने के लिए ऐसे जगहों पर इसकी खेती न करे जहाँ पानी जमा हो रहा हो।
इस पेड़ पर लीफ माइनर, तना छेदक, डिफोलिएटर कीट आदि का प्रकोप देखा जाता है। इसको पुरे पेड़ में लगने से पहने उस भगो को काट दे जहाँ यह कीट हमला किये। इसके अलावा समय समय पर खरपतवार नियंत्रण भी करने के लिए निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।

कटाई-छंटाई:- शीशम के पेड़ों के सही विकास के लिए 6 साल, 8 साल और 12 वें साल में कटाई छंटाई करनी चाहिए। 1 साल तक अच्छे से देखभाल के बाद पौध जीवित दर 85-90% तक रहती है।

खाद एवं उर्वरक:- खेत की गुणवत्ता की जांच करके उसमें उपयुक्त मात्रा में खाद और उर्वरक का इस्तेमाल करे यदि खेत की जांच नहीं हो सकती हो खेत तैयार करते समय उसमें जैविक खाद डाले या सड़ी हुई गोबर अच्छे से मिला दे।

कटाई:- शीशम की जीवन आयु 25-30 वर्ष होती है। 10-12 वर्ष के पेड़ की तने की गोलाई 70-75 सेंटीमीटर और 25-30 वर्ष की 135 सेंटीमीटर होती है। इन लकड़ियों को ऑनलाइन, लकड़ी के बाजार में या पूरा का पूरा पेड़ भी बेच सकते है।

फसलबाज़ार

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