परिचय:- तरबूज जायद मौसम का फल है जिसकी खेती करने के लिए कम समय, कम खाद और कम पानी की जरुरत पड़ती है। तरबूज के कच्चे फलों को सब्जी और पकने पे फल के रूप में खाया जाता है।
गर्मियों में तरबूज की मांग बहुत बढ़ जाती है जिससे किसान इसकी खेती कर अच्छा कमाई कर सकते है। तरबूज की खेती ज्यादातर कर्नाटक, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में की जाती है।
फायदे:- तरबूज में लाइकोपिन, विटामिन, पोटेशियम, सिट्रलीन (citrulline), पानी, कैल्शियम, सोडियम, विटामिन ए , लाइकोपीन, बीटा कैरोटीन, मैग्नीशियम और अमीनो एसिड आदि पाया जाता है।
तरबूज खाने से शरीर एवं त्वचा को हाइड्रेटेड रखने में, कैंसर से बचाव, वजन को कम करने में, शरीर में रक्तचाप, स्ट्रोक, दिल के दौरे और एथेरोस्क्लेरोसिस, आँखो के लिए, शरीर से हानिकारक विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में, लिवर को स्वच्छ, और रक्त में यूरिक एसिड को कम करने में मदद करता है।
किस्में:- तरबूज की फसल अच्छी हो इसके लिए उसके किस्म का चयन जगह के अनुसार करे। सुगर बेबी, दुर्गापुर केसर, अर्को मानिक, दुर्गापुर मीठा,काशी पीताम्बर, पूसा वेदना, न्यू हेम्पशायर मिडगट आदि कुछ खास किस्में है।
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी:- तरबूज की खेती गर्म और औसत आर्द्रता वाले जगहों पे की जाती है।तरबूज के बीज के जमाव के लिए और पौधे को बढ़ने के समय लगभग 25° – 32° सेल्सियस तापमान अच्छा माना जाता है।
तरबूज की खेती के लिए रेतीली और रेतीली दोमट भूमि सबसे अच्छी होती है। इसकी खेती गंगा, यमुना और नदियों के आस-पास की खाली जगहों में क्यारियां बनाकर की जाती है।
खेत की तैयारी:- खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले उसकी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और फिर देसी हल या कल्टीवेटर से कर दे। खेत में पानी की मात्रा कम ज्यादा नहीं हो इस बात का ध्यान रखना है।
इसके बाद नदियों के आस-पास की खाली जगहों में क्यारियां बना लें। अब खेत में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिला दें अगर रेत की मात्रा ज्यादा है तो ऊपरी सतह को हटाकर नीचे की मिट्टी में खाद मिलाना चाहिए।
बुआई का समय:- उत्तर भारत के मैदानी जगहों में तरबूज की बुवाई फरवरी में, नदियों के किनारों पर खेती के समय बुवाई नवम्बर – मार्च में, और पहाड़ी में खेती के समय बुवाई मार्च – अप्रैल में की जाती है।
बुआई की विधि:- तरबूज की बुवाई इसकी किस्म और भूमि उर्वरा शक्ति के आधार पर दूरी तय की जाती है और इसकी बुवाई मेड़ों पर लगभग 250 – 300 सेंटीमीटर की दूरी पर 40 – 50 सेंटीमीटर चौड़ी नाली बना कर की जाती हैं।
नालियों के दोनों किनारों पर लगभग 60 सेंटीमीटर की दूरी पर गड्डे बनाकर उसमें गोबर की खाद, मिट्टी और बालू का मिश्रण थालें में भर दें और उसमे 2 बीज लगाएं। अंकुरण के लगभग 10-15 दिन बाद एक जगह पर 1 – 2 स्वस्थ पौधों को छोड़ दें और बाकि को हटा देना चाहिए।
सिंचाई:- तरबूजे की खेती में पहली सिंचाई बुवाई के लगभग 10-15 दिन के बाद होती है। अगर खेती नदी के किनारे कर रहे है तो सिंचाई की जरुरत नही पड़ती क्यूंकि पौधों की जड़ें बालू के नीचे से पानी को शोषित कर लेते है।
तुड़ाई:- तरबूजे के फलों को बुवाई से लगभग 3 महीने बाद तोडा जा सकता है। तरबूज का रंग और आकार उसके किस्म पर भी निर्भर करता है।
फल पक गया या नहीं इस बात को जानने के लिए फल को दबा के देखा जा सकता है। अगर फल को बेचने के लिए रखना है तो उससे थोड़ा कच्चा ही तोड़ लेना चाहिए।
फल तोड़ने के लिए चाकू का इस्तेमाल करना चाहिए और इसे तोड़ कर किसी ठंडी जगह पर रखना चाहिए।
पैदावार:- तरबूज की पैदावार इसके किस्म, मिटटी, खाद, देखभाल आदि पर निर्भर करता है।औसतन पैदावार प्रति हेक्टर लगभग 800 से 1000 क्विंटल पैदावार दे सकता है।