गेहूं की खेती, भूमि का चयन तथा व्यापारिक महत्व।

दुनिया के सभी भाग में कुल 23% जमीन पे गेहूं की खेती की जाती है। सबसे अधिक क्षेत्रफल मेंं गेहूं उगाने वाले प्रमुख राष्ट्र चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और रशियन फैडरेशन है। चीन के बाद भारत गेहूं का दूसरा विशालतम गेहूं उत्पादक देश है।

परिचय:- दुनिया के सभी भाग में कुल 23% जमीन पे गेहूं की खेती की जाती है। सबसे अधिक क्षेत्रफल मेंं गेहूं उगाने वाले प्रमुख राष्ट्र चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और रशियन फैडरेशन है। चीन के बाद भारत गेहूं का दूसरा विशालतम गेहूं उत्पादक देश है। धान की तरह गेहूं भी भारत का एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल है।

भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश मुख्य गेहूँ उत्पादक राज्य हैं। दुनिया भर में, मक्का के बाद गेहूं दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाले फसल है जिसे पीस कर प्राप्त हुआ आटा से रोटी, कुकीज, पास्ता, केक, दलिया, डबलरोटी (ब्रेड), रस, नूडल्स, सिवईं आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
गेहूं

भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश मुख्य गेहूं उत्पादक राज्य हैं। दुनिया भर में, मक्का के बाद गेहूं दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाले फसल है जिसे पीस कर प्राप्त हुआ आटा से रोटी, कुकीज, पास्ता, केक, दलिया, डबलरोटी (ब्रेड), रस, नूडल्स, सिवईं आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। गेहूं और इसके भूसे को पशुओं के चारे के रूप में या छत/छप्पर बनाने के लिए सामग्री के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। गेहूं में आयुर्वेदिक गुण भी पाये जाते है।

फायदे:- गेहूं के अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाकर उनका सेवन करने से कई रोगों से बचा जा सकता है। जैसे की गेहूँ के बारीक चूर्ण को दूध, शहद और घी के साथ मिलाकर सेवन करने से कई तरह की खांसी में लाभ।

गेहूं की चोकर को पीस कर लगाने से छाती दर्द में लाभ। गेहूं और अर्जुन की छाल के चूर्ण को गुड़, घी तथा तेल में पकाकर खाने से हृदय के रोगों में लाभ। पुराने गेहूं के चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से पेट संबंधी समस्याओं में लाभ।

गेहूं से बने आहारों से डायबिटीज में सुधार तथा गेहूं और चने का काढ़ा से किडनी और मूत्राशय की छोटी पथरी गलकर निकल जाती है। गेहू के कई और भी फायदे है।

उपयुक्त जलवायु:- गेहूं ठण्डी एवं शुष्क जलवायु की फसल है जिसे बोने के समय 20° – 22° सेल्सियस, बढ़वार के समय इष्टतम ताप 25° सेल्सियस, पकने के समय 14° – 15° सेल्सियस तापमान और 60-100 से.मी. वार्षिक वर्षा वाले जगह अच्छा होता है।

इससे ज्यादा तापमान होने से फसल जल्दी पक जाते है लेकिन उपज कम हो जाती है और पाले से फसल को नुकसान होता है। बाली लगने के समय पाला पड़ने पर बीज की अंकुरण शक्ति खत्म हो जाती है और उसका विकास बंद हो जाता है। वातावरण में 50% – 60% आर्द्रता पौधों की विकास के लिए उपयुक्त पाई गई है।

गर्म ग्रीष्मकाल और ठण्डा शीतकाल गेहूं की अच्छी फसल के लिए उपयुक्त माना जाता है। गेहूं के लिए गर्म एवं नम जलवायु अच्छी नहीं होती, क्योंकि ऐसे जगहों में फसल में बहुत रोग लगते है।

गेहूं की खेती के लिए भूमि का चयन

भूमि का चयन:- गेहूं की खेती किसी भी किसी भी कृषि योग्य खेत में की जा सकती है लेकिन दोमट से भारी दोमट और जलोढ़ मृदाओ में फसल अच्छी होती है। अगर खेत में जल निकासी प्रबंध हो तो काली मिट्टी और मटियार दोमट में भी इसकी अच्छी तरह खेती की जा सकती है। खेत का pH 5 – 7.5 होना फसल के लिए अच्छा है क्योंकि ज्यादा क्षारीय या अम्लीय मिट्टी गेहूं के लिए अनुपयुक्त होती है।

खेत की तैयारी:- गेहूं की खेत की तैयारी के लिए सबसे पहले खेत में जुताई कर दे जिससे खेत में नमी हो, खरपतवार मुक्त हो, मिट्टी भुरभुरी हो जाये ताकि बोआई आसानी से उचित गहराई तथा समान दूरी पर की जा सके।


खरीफ की फसल काटने के बाद खेत को पहले मिट्टी पलटने वाले हल से, फिर आवश्यकतानुसार 2-3 बार देशी हल बखर या कल्टीवेटर से जुताइयाँ करनी चाहिए। हर जुताई के बाद पाटा देकर खेत समतल कर लेना है।

बोआई का समय:- गेहूं एक रबी फसल है जिसे सामान्य तौर पर शीतकालीन यानि की अक्टूबर – दिसंबर तक बोआई और फरवरी – मई तक कटाई तक की जाती है। जिन गेहूं की किस्मों की जीवन काल 135 – 140 दिन है, उन्हें नवम्बर के पहले पखवाड़े में और जिनकी जीवन काल 120- 125 दिन है, उन्हें 15 – 30 नवम्बर तक बोना चाहिए।

गेहूं की बुआई जल्दी कर लेने पे बालियाँ पहले निकल जाती है जिससे उत्पादन कम होता है जबकि तापक्रम पर बुआई करने पर अंकुरण देर से होता है। बौनी किस्मों के गेहूँ लगभग 15 नवम्बर के आसपास जबकि लंबी किस्मो के गेहूं अक्टूबर के उत्तरार्द्ध में बोयी जाते है जिससे फसल अच्छी होती है।

असिंचित अवस्था में गेहूं बोने का समय बरसात खत्म होने के बाद अक्टूबर के बीच में है और अर्द्धसिंचित अवस्था मे जहाँ पानी सिर्फ 2 – 3 सिंचाई के लिये ही उपलब्ध हो, वहाँ 25 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक गेहूं बोने का समय उपयुक्त माना जाता है।

30 नवम्बर के बाद बोनी में देर नहीं करना चाहिए। देर से बोने वाली किस्मो को दिसम्बर के पहले हफ्ते तक बोनी कर देना चाहिए जिससे इसे पकने से पहले सूखी और गर्म हवा का सामना ना करना पड़े नहीं तो इसके दाने सिकुड़ जाएंगे और उपज कम हो जाएगी।

बिज रोपाई और गहराई:- खेती करने के लिए चुने गए बीज चुनी हुई किस्म के बड़े-बड़े साफ, स्वस्थ्य और विकार रहित होनी चाहिए।

बोने गेहूं के लिए प्रति हेक्टर 100-120 किलो, देशी गेहूं के लिए प्रति हेक्टर 70-90किलो, असिंचित गेहूं के लिए 100 किलो प्रति हेक्टेर, समय पर बोये जाने वाले सिंचित गेहूं 100 – 125 किलो प्रति हेक्टेयर और देर वाली सिंचित गेहूं 125 – 150 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बोतें है। मिट्टी के कम उपजाऊ होने पर या खेत में खरपतवार होने की सम्भावना होने पर बीज अधिक मात्रा में डाले जाते है और बीज को रात भर पानी में भिंगोकर बोना लाभदायक है।

सामान्य तौर पर कतारो के बीच की दूरी लगभग 20-23 से. मी. रखनी चाहिए। देर वाली सिंचित गेहूं की बोआई के लिए पंक्तियों के बीच 15 – 18 से. मी. की दूरी काफी है। गेहूं को पूर्व-पश्चिम व उत्तर-दक्षिण क्रास बोआई करने पर यानि की कुल बीज व खाद की मात्रा को आधा-आधा करके पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण दिशा में बोआई करने पर अधिक उपज प्राप्त होती है।

बीज बोने की गहराई:- बौने गेंहू में प्राकुंरचोल की लम्बाई 4 – 5 से.मी. होती है इसीलिए इन्हे 3-5 से.मी.गहराई में बोना चाहिए नहीं तो अगर इन्हे गहरा बो दिया जाये तो अंकुरण बहुत कम होता है। देशी (लम्बी) में प्राकुंरचोल की लम्बाई 7 से.मी. होती है इसीलिए इन्हे 5-7 से.मी. गहराई में बोना चाहिए।

बोआई की विधियाँ, खाद एवं उर्वरक

बोआई की विधियाँ:- सामान्य तौर पर गेहूं की बोआई 4 विधियाँ से (छिटककर, हल के पीछे कूड़ में बोआई या सीड ड्रिल से तथा डिबलिंग) से की जाती है। बोआई की विधि स्थान विशेष की परिस्थिति अनुसार अलग अलग होती है।

सामान्य तौर पर गेहूं की बोआई 4 विधियाँ से (छिटककर, हल के पीछे कूड़ में बोआई या सीड ड्रिल से तथा डिबलिंग) से की जाती है। बोआई की विधि स्थान विशेष की परिस्थिति अनुसार अलग अलग होती है।
गेहूँ की खेती

खाद एवं उर्वरक:- गेहूं की खेती में खाद एवं उर्वरक की मात्रा गेहूं की किस्म, बोने की विधि, सिंचाई की सुविधा आदि पर निर्भर करता है। इसकी खेती में हरी, जैविक एवं रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है।

अच्छी उपज के लिए खेत में बुवाई से पहले कम से कम 35-40 क्विंटल अच्छे से सड़ी हुई गोबर, 50 किलो नीम की खली और 50 किलो अरंडी की खली आदि अच्छी तरह मिलाकर समान मात्रा में बिखेर लें फिर खेत की जुताई कर दे और बुवाई करें।

बौनी किस्में गेहूं बोने के समय प्रति हेक्टेयर 125 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो सल्फर व 40 किलो पोटाश और देशी किस्मों में 60:30:30 किलो के अनुपात में उर्वरक देना चाहिए। असिंचित गेहूँ की देशी किस्मों मे प्रति हेक्टेयर 40 किलो नाइट्रोजन, 30 किलो सल्फर व 20 किलो पोटाश बोआई के समय हल की तली में देना चाहिये। बौनी किस्मों में बोआई के समय देना लाभप्रद पाया गया है।

सिंचाई:- सिंचाईयो की संख्या और पानी की मात्रा बोई गई किस्म, मृदा के प्रकार, वातावरण का तापमान पर निर्भर करती है। गेहूँ की बौनी किस्मों को कुल 30-35 हेक्टर से.मी. पानी की जरुरत और देशी किस्मों को कुल 15-20 हेक्टर से.मी. पानी की जरुरत होती है। गेहूँ में सिंचाई क्यारियाँ बनाकर करनी चाहिये।

पहली सिंचाई शीर्ष जड़ प्रवर्तन अवस्था पर( गेहूं बोने के 20 से 25 दिन बाद) और लम्बी किस्मों में गेहूं बोने के लगभग 30-35 दिन बाद करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई दोजियां निकलने के समय (बोआई के लगभग 40-50 दिन बाद) तीसरी सिंचाई सुशांत अवस्था (बोआई लगभग 60-70 दिन बाद), चौथी सिंचाई फूल आने के समय ( बोआई के 80-90 दिन बाद), पाचवी सिंचाई दूध बनने तथा शिथिल के समय ( बोने के 100-120 दिन बाद) करनी चाहिये।

अगर सिर्फ 2 सिंचाई की ही सुविधा है, तो पहली सिंचाई बोआई के 20-25 दिन बाद करनी चाहिए। गेहूँ की देशी किस्मों मे पहली सिंचाई बोआई के 20-25 दिन बाद, दूसरी सिंचाई बोआई के 60-65 दिन बाद और तीसरी सिंचाई बोआई के 90-95 दिन बाद किया जाता हैं।

खरपतवार नियंत्रण:- गेहूं के खेत में बोआई से 30-40 दिन तक का समय खरपतवार प्रतिस्पर्धा के लिए अधिक क्रांतिक रहता है जिससे गेहूँ की उपज मे 10-40 प्रतिशत तक हानि हो सकता है।

• चैड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे की हिरनखुरी, सैंजी, कृष्णनील, चटरी-मटरी, बथुआ, जंगली गाजर आदि से बचाने के लिए बोनी के 25-30 दिन के अन्दर प्रति हेक्टर, 2,4-डी इथाइल ईस्टर 36% (ब्लाडेक्स सी, वीडान) की 1.4 किलो अथवा 2,4-डी लवण 80%(फारनेक्सान, टाफाइसाड) की 0.625 किलो को 700-800 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें।

• सँकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे की जंगली जई व गेहूँसा से बचाने के लिए बोआई के 2-3 दिन बाद प्रति हेक्टेयर 800-1000 ग्रा. पेन्डीमिथेलिन 30 ईसी (स्टाम्प) अथवा 1.5 किलो आइसोप्रोटयूरॉन 50 डब्लू.पी. को 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

• मिश्रित खरपतवार की समस्या के लिए प्रति हेक्टेयर 800 ग्रा. आइसोप्रोट्यूरान और 0.4 किलो 2,4-डी को मिलाकर छिड़काव करें। बोआई के 30-35 दिन बाद खड़ी फसल में प्रति हेक्टेयर 1.5 किलो मेटाक्सुरान को 700 से 800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

कटाई-गहाई:- गेहूं के पक कर सख्त हो जाने पर और उसमे 20-25 % नमी का अंश आ जाने पर फसल को हँसिये से कटाई करनी चाहिये। बोनी किस्म के गेहूँ को पकने के बाद उसे तुरंत काट देना चाहिए नहीं तो दाने झड़ जाते है और उससे पंछी खा जाते है इससे फसल का नुकसान हो जाता है। कटाई के बाद फ़सल को 2-3 दिन तक खलिहान में सुखा दे।

उपज एवं भंडारण:- तकनिकी प्रयोग से खेती करने से सिंचित अवस्था में बौनी किस्मो के गेहूँ से प्रति हेक्टर लगभग 50-60 क्विंटल और 80-90 क्विंटल भूसा प्राप्त होता है। असिंचित अवस्था में देशी किस्मो से प्रति हेक्टर 15-20 क्विंटल उपज प्राप्त होती है।

फसलबाज़ार

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