ऊन की सफाई तथा ऊनी वस्त्रों का निर्माण।

ऊनी वस्त्र उन से बनाये जाते हैं तथा उन के लिए रेशे भेड़ों से प्राप्त की जाती है। ऊन की कटाई वर्ष में दो बार की जाती है।

परिचय:- ऊनी वस्त्र उन से बनाये जाते हैं तथा उन के लिए रेशे भेड़ों से प्राप्त की जाती है। ऊन की कटाई वर्ष में दो बार की जाती है। उन काटने की अनेक विधियाँ हैं। बलुही भूमिवाले प्रदेश में भोजन से पूर्व, ऊन की कटाई की जाती है। न्यूजीलैंड तथा आस्ट्रेलिया में ऊन की कटाई यंत्र द्वारा होती है। इन देशों में भ्रमणकारी दल रहते हैं जो यंत्र से ऊन काटते हैं। ग्रेट ब्रिटेन और भारत में उन की कटाई होती है।

न्यूजीलैंड तथा आस्ट्रेलिया में ऊन की कटाई यंत्र द्वारा होती है। इन देशों में भ्रमणकारी दल रहते हैं जो यंत्र से ऊन काटते हैं। ग्रेट ब्रिटेन और भारत में उन की कटाई होती है।
ऊन

छँटाई:- ऊन कट जाने पर काम के अनुसार ऊन को छाँट कर अलग-अलग किया जाता है। ऊन का चयन उत्तर से आने वाले प्रकाश में किया जाता है, उन की छटाई में बहुत सावधानी रखनी पड़ती है, क्योंकि पहाड़ी भेड़ों के ऊन में कभी-कभी ऐसे कीटाणु रहते हैं जिनसे मनुष्य को चर्मरोग होने की आशंका होती है। उन को कीटाणु रहित बनाने की अलग-अलग विधियाँ हैं।

जैसे- अलपाका, कश्मीरी, ईरानी तथा अन्य प्रकार के ऊन को जालीदार मेज पर खोलकर रख दिया जाता है और उसके नीचे पंखा चला दिया जाता है, जिससे हवा नीचे जाती रहती है और कार्यकर्ता सुविधा से अपना काम कर सकता है। चयन के पूर्व ईरानी ऊन को भी कीटाणुरहित करना आवश्यक होता है।

योक:- ऊन का चयन उन की बारीकी, लंबाई तथा भेड़ के शरीर पर उसके स्थान के अनुसार किया जाता है। ‘डस्टर’ नामक मशीन से ऊन में मिली हुई धूलि को अलग कर उसकी प्राकृतिक एवं मिश्रित मलिनता साफ़ की जाती है। प्राकृतिक मलिनता में एक प्रकार की भारी चिकनाई अथवा मोम रहता है जिसे अंग्रेज़ी में योक कहते हैं। योक के कारण ऊनी रेश अच्छी हालत में रहता है।

ऊन की सफाई:- सफाई के लिए सबसे पहले ऊन को गुनगुने पानी में भिगोकर तर कर दिया जाता है जिससे भेड़ का सूखा पसीना, बालू तथा धूलि भी अलग हो जाती है। दो या तीन बार इसको गुनगुने पानी से धोने के बाद इसे एक या दो बार साबुन के घोल में धोते है। अंतिम बार उसे बिल्कुल शुद्ध एवं निर्मल जल में धोते हैं।

सफाई के लिए सबसे पहले ऊन को गुनगुने पानी में भिगोकर तर कर दिया जाता है जिससे भेड़ का सूखा पसीना, बालू तथा धूलि भी अलग हो जाती है। दो या तीन बार ऊन को गुनगुने पानी से धोने के बाद उसे एक या दो बार साबुन के घोल में धोते है। अंतिम बार उसे बिल्कुल शुद्ध एवं निर्मल जल में धोते हैं।
भेड़

इसके बाद पूर्व मिश्रित धातुएँ जैसे वानस्पतिक पदार्थ की सफाई के लिये ऊन को गंधक के अम्ल के 3° से 4° बोमे तक के हलके घोल में भिगोकर निकाल लिया जाता है । फिर उसे गरम हवा से 250° फारेनहाइट तक गरम कर दिया जाता है,जिससे उन पर अम्ल का कोई हानिकारक प्रभाव न पड़े।

लैनोलिन:- ऊन के धोवन से एक बहुमूल्य सामग्री उपलब्ध होती है जिसे अंग्रेज़ी में ‘लैनोलिन‘ कहते हैं। लैनोलिन का उपयोग कई औद्योगिक वस्तुओं के निर्माण में भी होता है। मुखलेप, मलिनता हटाने वाले द्रव्य, मलहम, पालिश, स्याही, मुर्चा छुड़ाने वाले पदार्थ, सफ़ेद साबुन आदि में इसका उपयोग होता है।

धुनाई:- धुलाई के बाद ऊन के रेशे को सूत के रूप में परिणत करने के लिए पहले धुनाई की ज़रूरत होती है। इसके लिए ऊन को खोलकर मशीन द्वारा इस मिलाया जाता है । जिससे जाली के समान पतली और मुलायम पट्टी बन जाती है।

जिस मशीन के द्वारा यह काम होता है उसका नाम है ‘कार्डिग इंजन’। तदनंतर ऊन दो बेलनों के बीच से गुजरती है। इन बेलनों को इस प्रकार बनाया गया होता है जिससे ऊन के रेशे बहुत कुछ समांतर हो जाए। इस प्रकार की कुछ और विधियों के बाद हमें ऊनी सूत प्राप्त होते हैं। इससे जो कपड़ा तैयार किया जाता है उसे ऊनी वस्त्र कहा जाता है।

कंघी:- समांतर ढंग से रेशे को निकालने के लिए ऊन के मुट्ठे को दोहरा कर दिया जाता है और दो रोलरों के बीच से उसे निकाला जाता है जिसमें दांत जैसा बना होता है जैसा की कंघी में बना होता है इसके माध्यम से उलझनों को सुलझाया जाता है।

ड्रॉइंग:- इसके माध्यम से मोटे सूत को पतला किया जाता है। इच्छानुसार पतला हो जाने पर कच्चे सूत को बाबिन पर लपेटा जाता है।

कताई:- इसके बाद कच्चे सूत को फिर ऐंठा जाता है जिससे सूत में मजबूती आए। फिर सूत को लच्छियों में लपेटा जाता है। जिस प्रकार का सूत होता है वेसी ही उसमें ऐंठन डाली जाती है। इस कार्यविधि को कताई ( कहते हैं।

करघे:- कपड़ा बुने जाने वाले यंत्र को करघा कहा जाता है। यह हस्तचलित से ले कर स्वचालित तक उपलब्ध है। करघे पर बुनाई का काम बहुत कुछ उसी प्रकार होता है जिस प्रकार सूती ओर रेशमी कपड़े बुने जाते हैं। बुनाई के बाद कपड़े की जाँच की जाती है। इसके बाद कपड़े को धोया जाता है। कपड़े को साबुन के घोल में भिगो कर भारी रोलरों के बीच से चलाया जाता है जिससे साबुन का पानी निकल जाए।

अंत में कपड़े को शुद्ध पानी से धोकर सुखाया जाता है। सुखाने पर कपड़ा कुछ कठोर हो जाता है।अंतत: तैयार हुए कपड़े की तह लगाकर उसे जाती है, बाज़ार में भेज दिया जाता है।

फसलबाज़ार

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