परिचय:- अंजीर उपोष्ण क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक अन्तर्राष्ट्रीय फल है, जिसे ताजा, अर्द्ध-सूखा और सूखा खाया जाता है। अंजीर को ड्राईफ्रूट और फल दोनों तरह से खा सकते हैं। इस फल की और इससे बने पदार्थों की बाजार में बहुत मांग है जिस वजह से इसकी खेती काफी मुनाफे की खेती होती है।
विश्व में पश्चिमी और दक्षिणी अमरीका, उत्तरी अफ्रीका और मेडिटेरेनियन में और भारत में राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात तथा उत्तर प्रदेश में इसकी खेती की जाती है।
किस्में:- अंजीर तीन प्रजातियों बी एफ- I, II, III में विभाजित किया गया है। इसमें बी एफ- III जिसे बडका अंजीर भी कहते है, सबसे ज्यादा पाई जाती है।
भारत के प्रमुख किस्में:- एलीफैंट ईयर, वीपिंग फिग, इंडियन रौक, कृष्णा, वाइट फिग. और दूसरे देशों में ब्राउन टर्की, ब्रंसविक और ओसबौर्न आदि किस्में मिल जाती है ।
फायदे:- अंजीर में विटमिन ए, बी,सी, के, जिंक, शुगर, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, आयरन, पोटैशियम, कॉपर, मैग्नीशियम, मैंगनीन और कैल्शियम आदि पाया जाता है।
इसे खाने से दिल की बिमारियों में, कलेस्ट्रॉल कम करने में, हड्डियों के लिए, डायबीटीज, कब्ज, अनीमिया, अस्थमा और ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने में मदद करती है।
जलवायु:- अंजीर की खेती अलग अलग तरह की जलवायु में हो सकती है लेकिन गर्म, सूखी और छाया वाली उपोष्ण व गर्म-शीतोष्ण में खेती अच्छे से होती है। पतझड़ी पौधा होने के कारण इस पर पाले का प्रभाव कम पड़ता है।
मिट्टी:- इसकी खेती किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन दोमट, मटियार दोमट और रेतीली मिट्टी जिसका pH मान 7 या उससे थोड़ा कम हो और जिसमे जल निकास प्रभंध हो वाले मिट्टी उत्तम होता है।
पौधे की तैयारी:- इसके पौधे को कलमों द्वारा तैयार किया जाता है। सर्दियों में 15-20 सेंटीमीटर लम्बी, 1-2 सेंटीमीटर मोटी कलमों को लेकर इन्हें 1-2 महीनो तक कैल्सिंग के लिए मिट्टी में दबाया जाता है। फिर फरवरी-मार्च में जब तापमान बढ़ने लगता है, तब इन्हे निकाल कर 15 x 15 सेंटीमीटर की दूरी पर नर्सरी में रोपा जाता है।
नर्सरी की तैयारी:- अंजीर की खेती क्यारी बना के की जाती है। क्यारियों तैयार करने के लिए प्रति वर्गमीटर 7 किलो गोबर, 20-25 ग्राम पोटाश और 25-30 ग्राम फॉस्फोरस डाल अच्छे से मिट्टी में मिला दें। प्रतिवर्गमीटर 10-15 ग्राम नत्रजन खाद कलमें रोपने के एक महीने बाद और इतनी ही खाद 2 महीने बाद डाल दें।
रोपाई:- पौधा रोपने के लिए गड्ढे खोदें और उसमें उपयुक्त मात्रा में खाद और उर्वरक डाल कर पौधों की 8 x 8 मीटर की दुरी रखते हुए रोप दें। पौधों को दिसम्बर-जनवरी या जुलाई-अगस्त ( जुलाई-अगस्त में पौधा गाची के साथ ) में रोपा जाता है।
सिंचाई:- इसकी खेती में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती लेकिन हफ्ते में 1-2 बार पानी दे दें और समय – समय पर निराई गुड़ाई भी करते रहे।
खाद और उर्वरक:- 1-3 साल के पौधे में में 7-10 किलो गोबर, 3 साल से बड़े पौधों में 15-25 किलो गोबर प्रति पौधा, प्रतिवर्ष दें। अंजीर बिना उर्वरक के प्रयोग के बाद भी अच्छी पैदावार देती है लेकिन मिट्टी की आवश्यकता के अनुसार खाद और उर्वरक देना उत्तम होता है।
सिधाई व छांट-काट:- इसकी सिधाई ऐसे करनी चाहिए जिससे पौधे के हर हिस्से तक सूर्य का प्रकाश पहुंचे और हर दिशा में इसका फैलाव बराबर हो। इसमें फल 1-2 साल पुरानी टहनियों के नई शाखाओं पर लगता है इसलिए शुरू में इस प्रकार की टहनियों पे ध्यान दें। पुराने, सुखी और रोग ग्रस्त शाखाओं की फल तुड़ाई के बाद काट-छांट लाभदायक होता है।
कीट और रोग रोकथाम:- आमतौर पे कोई मुख्य कीट या बीमारी नहीं होती लेकिन कुछ परिस्थितियों में पत्ते और छाल खाने वाले कीड़े का प्रकोप देखा जाता है। इसके लिए 3 मिलीलीटर एंडोसल्फान या क्लोरोफायरीफोस प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें।
कटाई और पैदावार:- उपोष्ण जगहों पे बसन्त ऋतु में लगने वाले फल मई-अगस्त तक पककर तैयार हो जाते है। यदि ज्यादा फलों का तुड़ान हो गयी हो तो इन्हें पानी भरे बर्तन में रख ले जिससे ये तजा रहे।