अलसी या तीसी का पौष्टिक महत्व खेती और व्यापार।

परिचय:- विश्व भर में भारत का तिलहन उत्पादन में एक महत्वपूर्ण योगदान है। तिलहन क्षेत्र, उत्पादन और मूल्य के मामले में अनाज़ के बाद ही आते हैं। तिलहन में अलसी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसे अंग्रेजी में लिनसीड यानी अति उपयोगी बीज भी कहा जाता है। यह विश्व की छठी सबसे बड़ी तिलहन फसल है। यह एक रबी फसल है। यह समशीतोष्ण प्रदेशों का पौधा है। रेशेदार फसलों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है।

तिलहन में अलसी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसे अंग्रेजी में लिनसीड यानी अति उपयोगी बीज भी कहा जाता है। यह विश्व की छठी सबसे बड़ी तिलहन फसल है। यह एक रबी फसल है।
अलसी फसल

विश्व भर में अलसी के उत्पादन में भारत का स्थान प्रथम है। भारत में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और बिहार प्रमुख अलसी उत्पादक राज्य हैं। क्षेत्रफल व उत्पादन की दृश्टिकोण से मध्य्प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है।

पौष्टिक महत्व:- यह एक चमत्कारी आहार है। इसमें दो आवश्यक फैटी एसिड पाए जाते हैं। ये एसिड मनुष्य के लिए अपरिहार्य माना जाता है। इसके नियमित सेवन से कई प्रकार के रोगों से बचा जा सकता है, जैसे कैंसर, टी. बी., हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कब्ज, जोड़ों का दर्द आदि। आयुर्वेद में अलसी को मंदगंधयुक्त, मधुर, बलकारक, किंचित कफवात-कारक, पित्तनाशक, गरम, पौष्टिक, पीठ का दर्द और सूजन मिटाने वाला कहा गया है।

यह एक चमत्कारी आहार है। इसमें दो आवश्यक फैटी एसिड पाए जाते हैं। ये एसिड मनुष्य के लिए अपरिहार्य माना जाता है। इसके नियमित सेवन से कई प्रकार के रोगों से बचा जा सकता है
अलसी

अलसी की खेती एवं उपयोग।

उपयोग:- अलसी का तेल बहुत बहुत गुणकारी होता है। इसके तेल का उपयोग भोजन के साथ- साथ अन्य कार्यों में भी किया जाता है। इसके खल दुधारू पशुओं  के महत्वपूर्ण भोजन हैं। इसके  तेल का उपयोग कई उत्पादों में किया जाता है।उदाहरण के तौर पर पेंट, वार्निश, लिनोलियम, ऑइल क्लॉथ, प्रिंटर की श्याही और चमड़े के उत्पाद। इसका रेशा रंग में हल्का पीला, नरम चमकदार और कम लचीला होता है। कपास की तुलना में इस फसल में वानस्पतिक वृद्धि के समय वातावरण अधिक मजबूत होता है। गर्म मौसम में लिनेन उपयोगी है।

खेती :-  यह एक ठंढे मौसम की फसल है। यह पाले के प्रति अति संवेदनशील है। भारत में अलसी वर्षा ऋतु समाप्त होने पर लगाई जाती है। यह दोमट से मटियार मिट्टी, जिसमें पर्याप्त जल निकास की व्यवस्था हो, उपयुक्त मानी जाती है। अलसी की बुआई पंक्तियों में करनी चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से.मी. और प्रत्येक पौधे के बीच की दूरी 5 से.मी. रखनी चाहिए। यह मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंगफली, लोबिया व सोयाबीन के साथ चक्र में उगाया जाता है।

फसल बाज़ार

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