तिलहन की खेती, परिचय और व्यापार।

तिलहन उन फसलों को कहते हैं जिनसे वनस्पति तेल का उत्पादन होता है। जिसमें महत्वपूर्ण हैं तिल, सरसो, मूँगफली, सोया, सूरजमुखी, नारियल और कुसम। तिलहन फसलों को कम पानी की आवस्यकता होती है। इसकी खेती अनुपजाऊ भूमि तथा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है। क्षेत्रफल की दृष्टि से खाद्यान्न फसलों के बाद तिलहन का ही स्थान है। 

तिलहन उन फसलों को कहते हैं जिनसे वनस्पति तेल का उत्पादन होता है। जिसमें महत्वपूर्ण हैं तिल, सरसो, मूँगफली, सोया, सूरजमुखी, नारियल और कुसम। तिलहन फसलों को कम पानी की आवस्यकता होती है। इसकी खेती अनुपजाऊ भूमि तथा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है।
तिल

उत्पादन:- सभी प्रकार के तिलहनों के लिए भिन्न-भिन्न तरह की मिट्टी, वर्षा एवं तापमान की आवयश्कता होती है। इसी कारण इसका उत्पादन कमोबेश भारत के प्रत्येक राज्य में होता है। तिलहन के उत्पादन में भारत का स्थान तीसरा है। यहाँ विश्व का 24% मूँगफली, 25% तिल, 20% रेंडी और 17% सरसों उत्पन्न की जाती है। भारत में मध्यप्रदेश तिलहन के उत्पादन में अग्रणी राज्य है। तिलहन में रवि तथा खरीफ दोनों फसलें होती है।

प्रकार:- तिलहन के अंतर्गत दो प्रकार के बीज सम्मिलित किए जाते हैं। एक वे जिनका दाना छोटा होता है, जैसे- सरसों, राई, अलसी और तिल आदि। दूसरा वे ,जिनका दाना बड़ा होता है, जैसे मूँगफली, बिनौला ,सोयाबीन ,सूरजमुखी, महुआ तथा नारियल आदि। छोटे दाने वाले तिलहन अधिकांशतः उत्तरी भारत में की जाती है। बड़े दाने वाले तिलहनों की खेती अधिकांशतः दक्षणी भारत में की जाती है। देश में 1980 के पश्चात सोयाबीन एवं सूरजमुखी के उत्पादन में भी तेजी से वृद्धि हुई परंतु स्थिति अब भी बहुत अच्छी नहीं है।

सरसों, राई, अलसी और तिल आदि। दूसरा वे ,जिनका दाना बड़ा होता है, जैसे मूँगफली, बिनौला ,सोयाबीन ,सूरजमुखी, महुआ तथा नारियल आदि। छोटे दाने वाले तिलहन अधिकांशतः उत्तरी भारत में की जाती है। बड़े दाने वाले तिलहनों की खेती अधिकांशतः दक्षणी भारत में की जाती है। देश में 1980 के पश्चात सोयाबीन एवं सूरजमुखी के उत्पादन में भी तेजी से वृद्धि हुई परंतु स्थिति अब भी बहुत अच्छी नहीं है।
सरसों का खेत

आर्थिक उपयोग:- यह मुख्य रूप से खाने योग्य होता है, इसका उपयोग भोजन में किया जाता है।इनमें से कुछ तेल के बीजों को साबुन, प्रसाधन और उबटन के उद्योग में कच्चे माल के रूप में कीया जाता है। खल जो कि उप-उत्पाद है जो, तेल बीजों से तेल निकालने के बाद प्राप्त होती हैं, मवेशियों का अच्छा भोजन है। खल को खाद के समान भी उपयोग में लिया जाता है।

आज का आर्थिक परिदृश्य।

देश की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए करीब 23 लाख टन वनस्पति तेल की जरूरत होती है। जबकि भारत की पैदावार सिर्फ 8 लाख टन है। बाकी का 15 लाख टन तेल का आयात विदेशों से किया जाता है। इससे करोड़ों विदेशी मुद्रा खर्च होती है। देश के किसानों को उनकी उपज का मूल्य भी नहीं मिल पाता है।

भारत में 2017-2018 में 74,996 करोड़ की वनस्पति तेल का आयात किया गया था। विदेशों से आने वाले 80% तेल पाम आयल होता है जो सेहत के लिए भी खतरनाक है। लेकिन सस्ता होने के कारण यह रेस्टोरेंट, होटलों और अधिकतर किचनों में भी इसका प्रयोग धरल्ले से होता है। जबकि देश में किसान और सेहत दोनों की स्थिति दयनीय होती जा रही है। अब भारतीय किसानों को अपने उत्पादन में वृद्धि करने की आव्यसक्ता है। लोगों के स्वदेशी उपयोग पे बढ़ते विश्वास के कारण, अब इसमें सुधार होने की संभावना है।

फसल बाज़ार

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