विश्व में तिलहन वाली प्रमुख फसलें मूंगफली, सरसों, सोयाबीन एवं सूरजमुखी है। भारत में तिलहनी फसलों के रूप में मुख्य रूप से मूंगफली, सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी, कुसुम, अरण्डी, तिल एवं अलसी उगाई जाती है।
परिचय:- खाद्य तेलों में सरसों भारत में किसानों के बीच सबसे अधिक लोकप्रिय है। यह एक वर्षीय शाक जाती का पौधा है। यह फसल कम सिंचाई एवं लागत में दूसरी अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ प्रदान करती है। सरसों के तेल में न्यूनतम वसा,अम्ल तथा लिनोलेनिक तथा लिकोनिक अम्ल की मौजूदगी इसके लाभकारी गुणों को प्रदर्शित करती है। परंतु इसके तेल में इरुसिक अम्ल की अधिक मात्रा अंतराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है। अतः 2% कम इरुसिक अम्ल की मौजूदगी वाली किस्मों का विकास किया जा रहा है।

खेती:- सरसों की अच्छी पैदावार बलुई, दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास की सुविधा हो उसमें की जाती है। सामान्यतः यह दिसंबर में बोई जाती है और मार्च-अप्रैल में इसकी कटाई होती है। यह एक रवि फसल है। भूमि के अनुरूप किस्म के चुनाव से भी अच्छी पैदावार की जा सकती है। क्षारीय भूमि में जिप्सम मिलाकर उसे सरसों की कृषि योग्य बनाया जा सकता है।
बुआई का समय विभिन्न स्थानों पर तापमान ,मानसून की स्थिति या फसल चक्र के अनुसार भिन्न हो सकता है। भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिमबंगाल, और गुजरात में अधिक होती है। विभिन्न क्षेत्रों के लिए विभिन्न प्रकार की किस्मों का चयन करना चाहिए।

सरसों के हरे पौधे से लेकर सूखे तने , शाखायें और बीज उपयोग में आते है। इसकी कोमल पत्तियों का साग के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके बीज में 37%- 47% तक तेल पाए जाते हैं।
देश की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए करीब 23 लाख टन वनस्पति तेल की जरूरत होती है। जबकि भारत की पैदावार सिर्फ 8 लाख टन है। अब भारतीय किसानों को अपने उत्पादन में वृद्धि करने की आवस्यकता है। लोगों के स्वदेशी उपयोग पे बढ़ते विश्वास के कारण, अब इसमें सुधार होने की संभावना है।
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