अमरूद की खेती, उपयुक्त जलवायु, किस्में तथा पैदावार।

अमरूद बहुतायत में पाया जाने वाला एक लोकप्रिय फल है। इसकी बागवानी भारतवर्ष के लगभग सभी राज्यों में की जाती है। बिना अधिक संसाधनों के भी हर वर्ष अधिक उत्पादन देने के कारण यह पर्याप्त आर्थिक लाभ देता है। लाभ को देखते हुए बड़े पैमाने पर किसान अमरूद की व्यावसायिक बागवानी करने लगे हैं।

परिचय:- अमरूद बहुतायत में पाया जाने वाला एक लोकप्रिय फल है। इसकी बागवानी भारतवर्ष के लगभग सभी राज्यों में की जाती है। बिना अधिक संसाधनों के भी हर वर्ष अधिक उत्पादन देने के कारण यह पर्याप्त आर्थिक लाभ देता है। लाभ को देखते हुए बड़े पैमाने पर किसान अमरूद की व्यावसायिक बागवानी करने लगे हैं।

अमरूद विभिन्न प्रकार की जलवायु में असानी से उगाया जा सकता है। हालाँकि, गर्मी इसे प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।
अमरूद

मृदा:- सामान्यतः अमरूद हर मृदा में उगाई जा सकती है। परंतु बलुई दोमट मिट्टी उत्तम पाई गई है। जिसका पी एच 4.5 से 9.5 के मध्य हो।

जलवायु:- अमरूद विभिन्न प्रकार की जलवायु में असानी से उगाया जा सकता है। हालाँकि, गर्मी इसे प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।

उष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों की अपेक्षा यह स्पष्ट रूप से सर्दी या गर्मी वाले क्षेत्रों में प्रचुर एवं उच्च गुणवत्तायुक्त फल देता है।

अधिक वर्षा वाले क्षेत्र इसके लिए आदर्श नहीं हैं। अन्य फलों की अपेक्षा अमरूद में सूखा सहने की क्षमता अधिक होती है।

भूमि की तैयारी:- अमरूद की खेती हेतु पहली जुताई गहराई से करनी चाहिए। इसके साथ दो जुताई देशी हल से करें, तथा पाटा लगाकर खेत को समतल और खरपतवार मुक्त कर ले।

इसके बाद यदि भूमि कम उपजाऊ हो तो 5*5 मीटर और उपजाऊ हो तो 6.5*6.5 मीटर की दूरी पर रोपाई हेतु पहले 60 सेंटीमीटर चौड़ाई, 60 सेंटीमीटर लम्बाई, 60 सेंटीमीटर गहराई के गड्ढे तैयार करें।

उन्नत किस्में:- इलाहाबाद सफेदा और सरदार (एल- 49) व्यावसायिक दृष्टि से बागवानी के लिए उन्नत किस्म है।

इलाहाबाद सफेदा उच्च कोटि का अमरूद है, इसके फल मध्यम आकार के गोल होते हैं तो अमरूद अत्यधिक फलत देने वाले होते हैं

कुछ अन्य किस्में:- ललित, श्वेता, पन्त प्रभात, धारीदार, अर्का मृदुला व तीन संकर किस्में, अर्का अमूल्य, सफेद जाम एवं कोहिर सफेदा विकसित की गयी हैं।

प्रवर्धन की विधि:- अमरूद का प्रसारण बीज द्वारा करने पर वृक्षों में भिन्नता आ जाती है, इसलिए आवश्यक है कि वानस्पतिक विधि द्वारा पौधे तैयार किये जाएं।

अमरूद प्रसारण की अनेक विधियां हैं। जिसमें मुख्य रूप से कोमल शाख बन्धन एवं स्टूलिंग कलम का प्रयोग किया जाता है।

पौध रोपण विधि:- सामान्य अवस्था में पौधा रोपण का मुख्य समय जुलाई से अगस्त तक है, लेकिन सिंचाई की अच्छी सुविधा होने पर पौधे को फरवरी-मार्च में भी लगाये जा सकते हैं।

बाग लगाने के लिये तैयार किये गये गड्ढों को तैयार गोबर की खाद, सुपर फॉस्फेट तथा मिथाईल पैराथियॉन पाऊडर को अच्छी तरह से मिट्टी में मिला कर पौधे लगाने के 15 से 20 दिन पहले भर दें और सिंचाई कर दे।

इसके बाद पिंडी के अनुसार गड्ढ़े खोदकर उसके बीचो बीच पौधा लगाकर चारो तरफ से अच्छी तरह दबा दें, फिर हल्की सिंचाई कर दें।

अमरूद की सिंचाई प्रबंधन एवं खरपतवार नियंत्रण।

सघन बागवानी पौध रोपण:- सघन बागवानी के रोपण में प्रति हैक्टेयर 500 से 5000 पौधे तक लगाये जा सकते हैं। जिनका समय-समय पर कटाई-छँटाई तथा वृद्धि नियंत्रकों का प्रयोग करके पौधों का आकार छोटा रखा जाता है।

इस तरह की बागवानी से 30 से 50 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन लिया जा सकता है।

अमरूद बहुत सहनशील पौधा है, किन्तु पोषण का फल उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अतः खाद और उर्वरक के माध्यम से हम अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं।
अमरूद की खेती

सघन बागवानी हेतु मानक 3 मीटर लाइन से लाइन की दुरी और 1.5 मीटर पौधे से पौधे की दुरी इस प्रकार 1 हेक्टेयर में 2200 पौधे लगाए जा सकते हैं।

खाद एवं उर्वरक:- अमरूद बहुत सहनशील पौधा है, किन्तु पोषण का फल उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अतः खाद और उर्वरक के माध्यम से हम अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं।

खाद तथा उर्वरक की मात्रा पौधों की आयु, दशा व मृदा के प्रकार पर निर्भर करती है। उर्वरक डालने की प्रक्रिया पौधे रोपण के साथ ही शुरू हो जाती है।

इसके मिश्रण को दो भागों में बाँटकर जून तथा सितम्बर माह में दिया जाता है। म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा तथा यूरिया की आधी मात्रा जून तथा यूरिया की शेष मात्रा और सिंगल सुपर फॉस्फेट की पूरी मात्रा सितम्बर में देते हैं।

उर्वरक पौधे के तने से 30 सेंटीमीटर दूरी पर तथा पेड़ द्वारा आच्छादित पूरे क्षेत्र में डालते हैं। उर्वरक देने के बाद 8 से 10 सेंटीमीटर गहरी गुड़ाई की जाती है ताकि खाद जड़ को मिल सके।

सूक्ष्म पोषक तत्व:- सामान्यतः अमरूद में जिंक या बोरॉन की कमी देखी जाती है।

जिंक – इसकी कमी से पौधों की बढ़त रुक जाती है। टहनियाँ सूखने लगती हैं, फूल बनते हैं और फल फट जाते हैं। इससे फल की गुणवत्ता और उपज में भारी कमी आती है।

प्रबंधन – सर्दी व वर्षा ऋतु में फूल आने के 10 से 15 दिन पहले मृदा में 800 ग्राम जिंक सल्फेट प्रति पौधा दें। फूल खिलने से पहले दो बार 15 दिनों के अन्तराल पर जिंक सल्फेट का छिड़काव करें।

बोरॉन – इसकी कमी से फालों का आकार छोटा रह जाता है तथा पत्तियों का गिरना आरम्भ हो जाता है।

प्रबंधन – फूल आने के पूर्व 0.3-0.4 प्रतिशत बोरिक अम्ल का छिड़काव करें। फल की अच्छी गुणवत्ता के लिए बोरेक्स का जुलाई से अगस्त में छिड़काव करना लाभदायक है।

सिंचाई प्रबंधन:- सर्दियों में 25 दिनों एवं गर्मियों में 10 से 15 दिनों के अन्तराल पर की गई सिंचाई पौधों के उचित विकास एवं फलन में सहायक है। सिंचाई की नई तकनीकों का इस्तेमाल लाभदायक है।

खरपतवार नियंत्रण:- प्रथम 2 से 3 वर्षों के दौरान खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है, इसके बाद पौधे की छाया के कारण खरपतवार पनप नहीं पाते।

कटाई-छंटाई:- अधिकतम उत्पादन हेतु पौध रोपण के ठीक 3 से 4 माह के अन्दर ही अमरूद के पौधों को कटाई-छंटाई की आवश्यकता पड़ती है।

रोग एवं नियंत्रण

उकठा रोग – इसका पहला बाहरी लक्षण ऊपरी टहनियों की पत्तियों का पीला पड़ना और उनके किनारों का थोड़ा मुड़ना है। इससे पुराने पेड़ों को अधिक क्षति होती है।

उकठा दो प्रकार का होता है, धीमा उकठा और शीघ्र उकठा।

नियंत्रण – बाग को साफ-सुथरा रखना चाहिए, रोगग्रसित पौधों को हटा दे। पौधों को रोपने से पहले गड्ढों को फार्मलीन से उपचारित करना चाहिए।

कीट एवं नियंत्रण

फल मक्खी – अमरूद के उत्पादन में फल मक्खी सबसे अधिक हानिकारक कीट है, विशेषकर वर्षा ऋतु के मौसम में यह अत्यन्त हानिकारक है। फल मक्खी की संख्या जुलाई से अगस्त में सबसे अधिक होती है।

नियंत्रण – रोगी फलों को फल मक्खी के मैगट सहित एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए।

फसलबाज़ार

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